प्याज की महंगाई से एक तरफ देश के आम उपभोक्ता परेशान हैं तो दूसरी तरफ दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं, क्योंकि राजनीतिक दल विगत में राष्ट्रीय राजधानी में प्याज का रुतबा देख चुके हैं और प्याज की महंगाई का अंजाम केंद्र की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भुगत चुकी है, जब 1998 में पार्टी को प्रदेश की सत्ता गंवानी पड़ी थी. देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाके में पिछले दो दिनों से उपभोक्ताओं को 80-120 रुपये प्रति किलो प्याज खरीदना पड़ रहा है और प्याज की महंगाई को काबू करने में सरकार नाकाम साबित हो रही है. वहीं, दिल्ली सरकार प्याज की महंगाई का ठीकरा केंद्र पर फोड़ रही है.
दिल्ली में 1998 में प्याज का दाम 60 रुपये किलो तक चला गया था जब विदेशी अखबारों में भी प्याज की महंगाई ने सुर्खियां बटोरी थीं. न्यूयार्क टाइम्स में 12 अक्टूबर 1998 को प्याज की महंगाई को लेकर खबर छपी थी जिसमें प्याज को भारत का सबसे गर्म मुद्दा बताया गया था. उस समय केंद्र और दिल्ली दोनों की सत्ता में भाजपा काबिज थी, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्याज की महंगाई का मुद्दा जब गरमाया तो पार्टी ने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन भाजपा दिल्ली की सत्ता बचा नहीं पाई और विधानसभा चुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ी. कांग्रेस विधानसभा चुनाव में प्याज की महंगाई को जोर-शोर से उठाकर जीत हासिल करने में कामयाब रही.
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इससे पहले 1980 में भी देश में प्याज की महंगाई चुनावी मुद्दा बनी थी जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की सरकार पर प्याज के दाम को काबू में रखने में विफल बताया था. इंदिरा गांधी 1980 में लोकसभा चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में आई थी. इस प्रकार प्याज की महंगाई ने विगत में दिल्ली के साथ-साथ केंद्र की सरकार की भी बलि ली है. इस बार हालांकि केंद्र में जहां भाजपा की सरकार है वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्र पर जानबूझकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्याज की किल्लत पैदा करने का आरोप लगाया है.
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उधर, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान का कहना है कि प्रदेश सरकारों द्वारा बफर स्टॉक से प्याज नहीं खरीदने के कारण काफी परिमाण में प्याज स्टॉक में ही खराब हो गया. केंद्र सरकार ने प्याज के दाम को थामने के लिए 1.2 लाख टन प्याज का आयात करने का फैसला लिया है और केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार इस महीने 12 दिसंबर तक 6,090 टन प्याज मिस्र से आने वाला है. इसके अलावा 11,000 टन प्याज तुर्की से मंगाया जा रहा है जो अगले महीने के पहले सप्ताह तक आएगा.
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विदेश व्यापार की देश की सबसे बड़ी कंपनी एमएमटीसी सरकार की ओर से मिस्र और तुर्की के अलावा अन्य देशों से प्याज का आयात करने की कोशिश में जुटी है और इसके लिए कंपनी ने कई टेंडर जारी किए हैं. हालांकि कृषि विशेषज्ञों और बाजार के जानकारों की माने तो जब तक देश में प्याज की नई फसल की आवक जोर नहीं पकड़ेगी तब तक प्याज की महंगाई को काबू करना मुश्किल होगा क्योंकि इस समय देश में प्याज की जितनी खपत है उसके मुकाबले आपूर्ति काफी कम है. दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने वाला है क्योंकि मौजूदा विधानसभा चुनाव का कार्यकाल 22 फरवरी 2020 को समाप्त हो रहा है.
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ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले प्याज की महंगाई का फायदा कौन सा दल उठा ले जाएगा और किसको इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा यह आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन बहरहाल प्याज को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का माहौल बना हुआ है. उधर, सोमवार को फिर दिल्ली में प्याज के थोक भाव में 5-7.50 रुपये प्रति किलो का इजाफा हुआ. दिल्ली की आजादपुर मंडी एपीएमसी की कीमत सूची के अनुसार, देश की राजधानी में सोमवार को प्याज का थोक भाव 25-70 रुपये प्रति किलो था और आवक शनिवार के 828 टन से घटकर 656.2 टन रह गई. इस साल मानसून सीजन के आखिर में हुई भारी बारिश के कारण खेतों में प्याज की फसल खराब हो गई, जिसके कारण कीमतों में उछाल आया है.