Advertisment

क्या राहुल से डर रही हैं राज्यों की बीजेपी सरकारें! योगी सरकार के बाद शिवराज सरकार ने नहीं दी दौरे की मंजूरी

मध्य प्रदेश सरकार ने मंदसौर में पुलिसिया गोलीबारी में मारे गए किसानों के परिवार वालों से कांग्रेस वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी को मिलने से रोक दिया। मंदसौर के पहले उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राहुल गांधी जातीय हिंसा से ग्रस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का दौरा करने से रोक दिया था।

author-image
Abhishek Parashar
एडिट
New Update
क्या राहुल से डर रही हैं राज्यों की बीजेपी सरकारें! योगी सरकार के बाद शिवराज सरकार ने नहीं दी दौरे की मंजूरी

कांग्रेस प्रेसिडेंट राहुल गांधी (फाइल फोटो)

Advertisment

मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों की मौत पर 'राजनीति' नहीं करने और हिंसा भड़कने की आशंका का हवाला देते हुए मंदसौर में पुलिसिया गोलीबारी में मारे गए किसानों के परिवार वालों से कांग्रेस वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी को नहीं मिलने दिया। इस दौरान गांधी के साथ कांग्रेस के करीब 100 से अधिक नेता भी हिसासत में लिए गए।

हिरासत में लिए जाने के बाद राहुल गांधी ने मंदसौर में मारे गए किसानों के परिजनों से मिले बगैर जमानत लेने से साफ कर दिया। मामला तूल पकड़ता देख राज्य सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश-राजस्थान की सीमा पर पीड़ित किसान के परिवार वालों से मिलने की अनुमति दी, जिसके बाद राहुल वापस लौट आए।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी राज्य की बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) सरकार ने राहुल गांधी को किसी अशांत इलाके का दौरा करने से रोका है। मंदसौर के पहले उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राहुल गांधी को जातीय हिंसा से ग्रस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का दौरा करने से रोक दिया था।

और पढ़ें: योगी आदित्यनाथ सरकार ने अखिलेश यादव को सहारनपुर जाने की नहीं दी इजाजत

सहारनपुर में राजपूतों ने दलितों के घरों को आग लगा दी थी जबकि मध्य प्रदेश में किसान कर्ज माफी की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। 

उत्तर प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को बीजेपी ने जबरदस्त शिकस्त दी। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से भी कांग्रेस को मदद नहीं मिली और वह महज 7 सीटों पर सिमट गई। जबकि 2012 के विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के 28 विधायक थे। 

2017 के विधानसभा चुनाव के बाद यूपी में कांग्रेस की हैसियत अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह है। वहीं मध्य प्रदेश में कांग्रेस पिछले 14 साल से सत्ता से बाहर है। 1998 में दिग्विजय सिंह की अगुवाई में बनी सरकार में कांग्रेस के 164 विधायक थे, जो 2013 के चुनाव में घटकर 58 हो चुकी है।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमजोर हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दोनों ही राज्यों में सत्ता विरोधी रुझान होने के बावजूद वह विधानसभा चुनावों में फिसड्डी ही साबित हुई।

उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस विपक्ष की भूमिका के लायक भी नहीं बची है वहीं मध्य प्रदेश में तकनीकी तौर पर यानी विधायकों की संख्या की वजह से भले ही विपक्ष में है, लेकिन लगातार तीन चुनावों में वह बीजेपी से हारती रही है। 

कमजोर संगठन, आंतरिक गुटबाजी और कोई चेहरा नहीं होने की वजह से कांग्रेस व्यापम जैसे घोटाले को मुद्दा तक नहीं बना पाई। 

फिर ऐसा क्या है जो योगी सरकार से लेकर शिवराज सरकार तक को राहुल गांधी के दौरे पर रोक लगाने के लिए प्रेरित रही है? अपनी मांगों के साथ किसानों का सड़कों पर उतरना राजनीतिक कदम है, ऐसे में विपक्ष के नेता का उन किसानों से मिलना क्या राजनीतिक फायदा उठाना मात्र है? 

राहुल नहीं किसानों की गोलबंदी से डर रही सरकार

मध्य प्रदेश में किसानों के भीतर उपज रहे असंतोष का अंदाजा लगाने में विफल रही शिवराज सरकार ने देर किए बिना आंदोलन के 'हिंसक' होने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया।

लेकिन बीजेपी यह बात अच्छे से समझती हैं कि देश का विपक्ष इन दिनों मुद्दा विहीन है। ऐसे में वह किसान आंदोलन जैसे संवेदनशील मुद्दे को बैठे-बिठाए कांग्रेस को देने के पक्ष में नहीं है। इससे पहले भी राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान किसानों की कर्ज माफी को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस के प्रचार अभियान की शुरुआत की थी, जिसके बाद मजबूर होकर प्रधानमंत्री मोदी को भी यूपी में किसानों की कर्ज माफी का वादा करना पड़ा। 

और पढ़ें: किसान आंदोलन: मध्यप्रदेश के कई ज़िलों में फैली हिंसा, 8 किसानों की मौत

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन हो चुका है। पटेल समुदाय खराब किसानी का हवाला देते हुए आंदोलन कर चुका है। नाराज पटेल गुजरात में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं और इस आंदोलन के नायक रहे हार्दिक पटेल मोदी मोदी विरोधी राजनीति के अगुआ बने हुए हैं। यह अनायास ही नहीं है जब पटेल बिना देर किए मध्य प्रदेश के मंदसौर जाने की घोषणा कर दी।

मोदी सरकार के खिलाफ सबसे पहला किसानों का आंदोलन दिल्ली में जंतर-मंतर पर हुआ, जो कर्ज माफी को लेकर था। तमिलनाडु के किसानों के प्रदर्शन की वजह से केंद्र सरकार को देश और विदेशी मीडिया में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था क्योंकि उन्होंने अपनी मांगों को मनवाने के लिए मूत्र तक पी लिया था।

इसके बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों का सड़कों पर आना सरकार की किसानों के प्रति उदासीन नीति को लेकर जारी असंतोष को देश भर में हवा दे सकता है, जिसमें राहुल गांधी की मौजूदगी अभी तक टुकड़ों में बंटे इस आंदोलन को न केवल एकजुट कर सकता है, बल्कि उसे राष्ट्रीय स्वरुप दे सकता है।

अभी तक देश के अलग-अलग राज्यों में चल रहा किसान आंदोलन बिखरा हुआ है। किसान आंदोलन का राष्ट्रीय स्वरूप नहीं होने की वजह से मोदी सरकार को इन आंदोलनों से निपटने में किसी खास दिक्ततों का सामना नहीं करना पड़ा। ऐसे में मोदी सरकार की पूरी कोशिश राहुल गांधी को इन आंदोलनों से दूर रखने पर है।

बद से बदतर हुई किसानों की हालत

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद किसानों की हालत में कोई खास सुधार नहीं आया है। किसानों को लेकर मोदी सरकार ने जो वादे (लागत से अधिक दाम दिलाना आदि) किए थे, उसे अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है।

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसानों के कर्ज को माफ कराए जाने का वादा किया था और जब विधानसभा चुनाव बाद योगी आदित्यनाथ सरकार की पहली कैबिनेट बैठक हुई तब राज्य के किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ कर दिया गया।

यूपी सरकार का कर्ज माफी का फैसला राज्य सरकार का फैसला था और इसके लिए फंड का इंतजाम भी राज्य सरकार ने किया लेकिन वह जाहिर तौर पर मोदी के कहने पर हुआ और पार्टी ने कर्ज माफी का श्रेय भी उन्हीं को दिया।

और पढ़ें: योगी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में राज्य के किसानों को मिली बड़ी सौगात, 35 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ

उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले ने अन्य राज्यों के किसानों की कर्ज माफी की उम्मीदों को जिंदा कर दिया है। राहुल गांधी यहां केंद्र के लिए मुसीबत बनते दिखाई देते हैं।

यूपीए की सरकार ने करीब देश भर के किसानों का 80,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था और राहुल इसी तर्ज पर मोदी सरकार से देश भर के किसानों का कर्ज माफ किए जाने की मांग करते हैं।

हालांकि कृषि मंत्री राधामोहन सिंह यह साफ कर चुके हैं केंद्र सरकार की किसानों की कर्ज माफी की कोई योजना नहीं है।

नीतियों की मदद से मोदी सरकार पिछले तीन सालों में किसानों की स्थिति को बदलने में लगभग विफल रही है। 2014 के मुकाबले 2015 में किसानों की आत्महत्या में 41.7 फीसदी की बढ़ोतरी इस दावे की पुष्टि करता नजर आता है। आंकड़े इस बात की पुष्टि करते दिखाई देते हैं कि तीन सालों में किसानों की जमीनी हालत में पिछली सरकार के मुकाबले कुछ नहीं बदला है।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआऱबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में कुल 8007 किसानों ने आत्महत्या की जबकि 2014 में यह संख्या 5650 थी। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि जिन दो राज्यों में किसानों के आंदोलन की शुरुआत हुई है, वह आत्महत्या करने वाले शीर्ष पांच राज्यों में शुमार है।

2015 में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 3,030 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि तेलंगाना में 1,358, कर्नाटक 1,197, छत्तीसगढ़ 854 और मध्य प्रदेश में 516 किसानों ने आत्महत्या की।

और पढ़ें: किसान आंदोलन का अनुमान लगाने में चूक गए शिव राज सिंह चौहान!

HIGHLIGHTS

  • मंदसौर में पुलिसिया गोलीबारी में मारे गए किसानों के परिवार वालों से राहुल गांधी को मिलने की नहीं मिली अनुमति
  • इससे पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सहारनपुर हिंसा के बाद राहुल गांधी को वहां जाने से रोक दिया था

Source : Abhishek Parashar

rahul gandhi Shivraj Chouhan Mandsaur Violence Congress vice president Rahul Gandhi
Advertisment
Advertisment
Advertisment