डेढ़ साल से भी ज्यादा वक्त से चल रहा यूक्रेन युद्ध तो अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका है लेकिन इस जंग के चलते पूरी दुनिया में भूख का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. इस संकट की आशंका लिए दो फैसलों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिनमें से एक फैसला लिया है रूस के प्रेजीडेंट वाल्दिमीर पुतिन ने और दूसरा फैसला लिया है भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने. मोदी सरकार का फैसला पुतिन के फैसले के असर से भारत को बचाने के लिए लिया गया है. पुतिन के फैसले ने दुनिया में गेहूं का संकट खड़ा कर दिया है तो वहीं मोदी का फैसला चावल से जुड़ा हुआ है. चावल और गेहूं दोनों ही अनाज है दुनिया के ज्यादातर लोगों को पेट भरने वाले अनाज हैं.पहले बात करते हैं पुतिन के उस फैसले की जिसने भारत को भी अपने चावल का निर्यात बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है.
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दरअसल रूस ने यूक्रेन के अनाज निर्यात को लेकर हुई अनाज डील को रद्द कर दिया है. रूस के इस फैसले के बाद से यूक्रेन का लाखों टन अनाज अब उसके बंदरगाहों में ही पड़ा हुआ है. इस डील को टर्की और संयुक्त राष्ट्र संघ ने करवाया था। इसके तहत रूस ने ब्लैक सी यानी काला सागर में अपने नेवी की नाकेबंदी के बीच से यूक्रेन के बंंदरगाहों से अनाज के निर्यात की इजाजत दी थी. लेकिन अब रूस ने इस इजाजत को वापस ले लिया है क्योंकि उसका कहना है कि उसे इस अनाज डील में वे फायदे नहीं दिए गए जो उसे मिलने चाहिए थे.
भारत ने अपने चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाई
यूक्रेन का अनाज पूरी दुनिया के लिए कितना जरूरी है, इसके आंकड़े बताने से पहले अब हम आपको भारत के फैसले के बारे में बताते हैं क्योंकि चावल निर्यात को रोकने के मोदी सरकार के कदम ने ही रूस के फैसले को इतना खतरनाक बना दिया है. दरअसल भारत सरकार को ये आभास हो गया था कि रूस अब यूक्रेन की अनाज डील को रद्द कर सकता है। लिहाजा भारत ने अपने चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाई है. भारत को पता है कि यूक्रेन से अनाज का निर्यात बंद होने के बाद दुनिया में गेहूं का संकट खड़ा हो जाएगा. भारत में भी इस बार गेहूं का उत्पादन 10 फीसदी कम बताया जा रहा है. अल नीनो के चलते खरीफ की फसल में नुकसान भी हो सकता है, लिहाजा भारत में गेहूं पर दबाव बढ़ सकता है जिसकी भरपाई भारत को इंटरनेशनल मार्केट से गेंहू खरीद के करनी पड़ सकती है. लेकिन काला सागर में रूस की नाकेबंदी के चलते इंटरनेशनल स्तर पर गेंहू के दामों में बढोत्तरी होना लाजिमी है और फिर ये कीमत भारतीय बाजार में भी बढ़ेगी.
निर्यात पर पाबंदी लगाने का दांव चल दिया
भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं लिहाजा 140 करोड़ की आबादी वाले देश भारत के लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और देश में महंगाई की बढ़ने से रोकने के लिए भारत सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने का दांव चल दिया है. अब हम आपको बताते हैं कि चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने के भारत के फैसले का दुनिया पर क्या असर पड़ सकता है.एक वक्त ता जब भारत भले ही अपने देश के लोगों को जो जून की रोटी मुहैया कराने के लिए के लिए अमेरिका जैसे देशों से गेहूं मंगवाता था लेकिन हरित क्रांति के बाद भारत अपने अनाज से दुनिया का पेट भरने वाला देश बन गया है.
सभी तरह के चावल के निर्यात के ग्लोबल मार्केट में भारत की 40 फीसदी की हिस्सेदारी है. बासमती चावल के निर्यात में 25 फीसदी की हिस्सेदारी है. भारत करीब 160 देशों को चावल का निर्यात करता है. भारत के चावल के ग्राहक देशों में अमेरिका, इटली, थाइलैंड, स्पेन और श्रीलंका जैसे देश शामिल हैं.
अनाज संकट के चलते भुखमरी की आशंका
भारत के चावल के ग्राहक देशों में अफ्रीका महाद्वीप के कई ऐसे गरीब देश शामिल हैं जहां अनाज संकट के चलते भुखमरी की आशंका सबसे ज्यादा है. इनमें मेडागास्कर, बेनिन, केन्या और आइवरी कोस्ट जैसे देश शामिल हैं. दरअसल भारत साल 2012 से ही चावल का सबसे निर्यातक देश बन गया है. भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 4.2 मिलियन डॉलर का गैर-बासमती चावल निर्यात किया था. भारत सरकार की पाबंदी गैर बासमती चावल पर ही है लेकिन इसका असर भी बहुत व्यापक है और अमेरिका जैसे देश में तो स्टोर से चावल खरीदकर लोगों ने भंडारण करना भी शुरू कर दिया है.
इंटरनेशनल मोनेटरी फंड यानी आईएमएफ के अधिकारियों ने भी भारत से चावल के निर्यात पर पाबंदी हटाने की गुजारिश की है लेकिन भारत सरकार ने अभी तक इस फैसले को वापस लेने के कोई संकेत नही दिए हैं.जाहिर भारत सरकार रूस -यूक्रेन की अनाज डील रद्द होने के बाद आने वाले संकट से अपने से की आवाम को बचाना चाहती है.अब आपको बताते हैं कि यूक्रेन के अनाज का इंटरनेशनल मार्केट से बाहर होने कितना खतरनाक है.
दरअसल यूक्रेन अनाज का बड़ा उत्पादक है और वहां पैदा होने वाले अनाज से दुनिया के करोड़ों लोगों का पेट भरता है.यूरोपीय यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल अनाज मार्केट में 10 फीसदी गेहूं, 15 फीसदी मक्का और 13 फीसदी ज्वार यूक्रेन से ही आता है. यूरोप के अलावा यूक्रेन का अनाज अफ्रीकी देशों, मिडिल ईस्ट और चीन को भी निर्यात किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के भुखमरी मिटाने के अभियान में भी यूक्रेन के अनाज का उपयोग किया जाता है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले दुनिया भर में करीब 40 करोड़ लोग यूक्रेन से आने वाला अनाज खाते थे.
पुतिन ने ऐसा कोई भी वायदा नहीं किया
यूक्रेन-रूस की अनाज डील के जरिए जो अनाज यूक्रेन से निकाला गया उसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने खरीदकर अपने भुखमरी निवारण कार्यक्रम में लगाया, जिसमें कई अफ्रीकी देश शामिल हैं. रूस के इस फैसले के बाद कुछ अफ्रीकी देशों के लीडर्स ने पुतिन से मुलाकात करते इस फैसले पर फिर से विचार करने की बात भी कही लेकिन पुतिन ने ऐसा कोई भी वायदा नहीं किया. अलबत्ता पुतिन ने छह अफ्रीकी देशों को 25000 से 50,000 टन अनाज मुफ्त भेजने की बात जरूर कही है. जाहिर है पुतिन के फैसले के बाद दुनिया भुखमरी की ओर बढ़ती नजर आ रही है और इसके खतरे के मद्देनजर भारत ने अपनी आवाम के हक में चावल के निर्यात को बैन करने का फैसला कर लिया है.
(Sumit Kumar Dubey)
HIGHLIGHTS
- पुतिन के फैसले ने दुनिया में गेहूं का संकट खड़ा कर दिया है
- भारत ने चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने का दांव चल दिया है
- 40 करोड़ लोग यूक्रेन से आने वाला अनाज खाते थे
Source : News Nation Bureau