Advertisment

कर्नाटक में जोर का झटका कांग्रेस को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भारी पड़ेगा

कांग्रेस को अब इन राज्यों में अपनी राजनीतिक सक्रियता बरकरार रखने के लिए गहरे आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा. इसके अलावा दक्षिण में वापसी का ख्वाब संजो रही कांग्रेस के लिए राजनीतिक सफर तो और मुश्किल भरा हो ही गया है.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जारी की पहली लिस्ट, जानें किसे कहां से मिला टिकट

कांग्रेस के लिए कर्नाटक का हाथ से निकलना गहरे आर्थिक संकट की दस्तक.

Advertisment

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार का गिर जाना सिर्फ राजनीतिक तौर पर ही कांग्रेस के लिए बड़ा झटका नहीं है. इसके दूरगामी असर आने वाले दिनों में पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी देखने को मिलेंगे. कांग्रेस को अब इन राज्यों में अपनी राजनीतिक सक्रियता बरकरार रखने के लिए गहरे आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा. इसके अलावा दक्षिण में वापसी का ख्वाब संजो रही कांग्रेस के लिए राजनीतिक सफर तो और मुश्किल भरा हो ही गया है.

यह भी पढ़ेंः बीएस येदियुरप्पा आज चुटकी बजाने वाले अंदाज में साबित कर लेंगे बहुमत, समझें गणित

कर्नाटक में सरकार के गिरते ही समीकरण भी ध्वस्त
यह कोई गोपनीय बात नहीं रह गई है कि पिछले छह साल से कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस इसी राज्य के बलबूते आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ईकाई को चला रही थी. भले ही राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी रहे हों, लेकिन किसे ठेका दिया जाना है सरीखे महत्वपूर्ण निर्णय कांग्रेस ही कर रही थी. विशेषकर कांग्रेस के संकटमोचक और राज्य में महत्वपूर्ण पोर्टफोलिया कब्जाए डीके शिवकुमार न सिर्फ कर्नाटक बल्कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश कांग्रेस इकाई से जुड़े निर्णय कर रहे थे, लेकिन कर्नाटक में गठबंधन सरकार के गिरते ही समीकरण भी ध्वस्त हो गए हैं.

यह भी पढ़ेंः पाकिस्‍तान ने किया सीजफायर का उल्‍लंघन, 10 दिन के बच्‍चे सहित 3 लोगों को लगी गोली

राज्य प्रभारी की अहमियत होती है बड़ी
राज्य प्रभारी पद की अहमियत और उससे जुड़े आर्थिक पहलुओं को समझते हुए ही अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पदाधिकारियों में उस राज्य का प्रभारी बनने के लिए अंदरूनी प्रतिस्पर्धा चलती है जहां कांग्रेस शासन में है. कांग्रेस महासचिव और सचिव जैसे पद सुनने में भले ही हल्के लगें, लेकिन इस पर बैठे लोगों को ही राज्यों का प्रभारी बनाया जाता है. अगर पार्टी सूत्रों की मानें तो इनका दर्जा मंत्री सरीखा होता है. अभी तक कर्नाटक में सरकार के रहते कांग्रेस आसपास के अन्य दक्षिणी राज्यों में आसानी से संगठनात्मक और राजनीतिक गतिविधियों को अंजाम दे पा रही थी. अब इसमें खासी दिक्कत आएगी.

यह भी पढ़ेंः सपा-कांग्रेस ने उन्नाव गैंगरेप पीड़िता के साथ हादसे को साजिश बताया, राजनीति तेज

पार्टी फंड जुटाने में आएगी दिक्कत
इस दिक्कत को ऐसे समझा जा सकता है कि कर्नाटक में कई पॉवर प्रोजेक्ट्स कांग्रेस के चहेते ठेकेदारों या उद्यमियों के पास थे. चूंकि अब राज्य में बीजेपी सरकार आ गई है, तो वह आसानी से कांग्रेस समर्थित टेकेदारों या व्यवसायियों को काम नहीं करने देगी. ऐसे में कांग्रेस के लिए पार्टी फंड जुटाने में खासी समस्या आ सकती है. तेलंगाना में तो स्थिति उतनी खराब नहीं होगी, जितनी आंध्र प्रदेश में. जहां कांग्रेस बेहद फिसलन भरी जमीन पर खड़ी है. अभी तक आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को पार्टी गतिविधियों के लिए जरूरी फंड कर्नाटक से मिल जाता था. अब उसे इसके लिए जरूरी 2 लाख रुपए जुटाने में भी पसीने आ जाएंगे. कांग्रेस से जुड़े कुछ सूत्र बताते हैं कि कर्नाटक में सरकार गिरने का खामियाजा महाराष्ट्र को भी अपनी चपेट में लेगा. हालांकि कांग्रेस की छत्तीसगढ़ और उसके पड़ोसी राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान में सरकार है तो वहां इतनी समस्या नहीं आएगी.

HIGHLIGHTS

  • कर्नाटक में ठेके आवंटन से जुड़े सारे बड़े निर्णय कांग्रेस के इशारे पर हो रहे थे.
  • अब आंध्र प्रदेश और तंलागाना में पार्टी फंड जुटाने में आएगी समस्या.
  • कांग्रेस शासित राज्यों से ही मिल सकेगी थोड़ी-बहुत मदद.
congress Karnataka South India funding Party Fund
Advertisment
Advertisment