गुजरात (Gujarat) में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन इस बार भाजपा 2017 की तरह कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है. यह माना जाता है कि 2017 विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के आखिरी दौर में अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार की कमान नहीं संभाली होती, तो शायद भाजपा की वहां फिर से सरकार नहीं बनी होती. ऐसे में इस बार भाजपा (BJP) आलाकमान 2017 की तरह कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है और चुनाव से कई महीने पहले ही भाजपा आलाकमान ने मोर्चा संभाल लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) लगातार दिल्ली से लेकर गुजरात तक बैठकें कर चुनावी रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं. गुजरात की धरती पर जाकर रैली, कार्यक्रम और रोड शो कर रहे हैं. वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) और राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष भी गुजरात विधानसभा चुनाव की रणनीति को लेकर बारीक से बारीक मुद्दों पर गहन चर्चा के बाद ही फैसला कर रणनीति को अंतिम स्वरूप देने की कोशिश कर रहे हैं.
150 सीटें जीतने का रखा है लक्ष्य
भाजपा ने राज्य में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अपनी दोनों सरकारों की उपलब्धियों को पूरी तरह से भुनाने के लिए इस बार विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 150 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है. हालांकि 1995 से लगातार राज्य में चुनाव जीतती आ रही भाजपा ने अब तक कभी भी 127 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल नहीं की है. 1995, 1998, 2002, 2007 और 2012 के लगातार 5 विधानसभा चुनावों में भाजपा राज्य की कुल 182 विधान सभा सीटों में से 115 से लेकर 127 के बीच सीटें जीतकर सरकार बनाती रही है, लेकिन 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा 100 से भी नीचे पहुंच गई. 2017 में भाजपा को महज 99 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई इसलिए भाजपा इस बार कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है.
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कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी
अब तक की सबसे ज्यादा 150 सीट जीतने के लक्ष्य को लेकर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही भाजपा ने अपने पारंपरिक शहरी वोटरों के साथ-साथ आदिवासी, ओबीसी, दलित और पाटीदारों को साधने की लिए भी विशेष रणनीति बनाई है. भाजपा की कोशिश कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंघ लगाने की है इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कांग्रेस के दबदबे वाले आदिवासी बहुल क्षेत्र दाहोद का दौरा कर आदिवासी मतदाताओं को साधने का प्रयास किया था. गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 27 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और आदिवासी मतदाता बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटाउदेपुर, नर्मदा, भरूच, तापी, वलसाड, नवसारी, डांग और सूरत जैसे कई जिलों में जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. राज्य में 13 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. राज्य में लगभग 12 प्रतिशत आबादी वाले पाटीदार समुदाय को साधने के लिए हाल ही में उनके युवा चेहरे हार्दिक पटेल को भाजपा में शामिल कराया गया है और बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में विभिन्न समुदायों के कई अन्य लोकप्रिय नेताओं को भी भाजपा में शामिल कराया जा सकता है.
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पिछले विधानसभा परिणामों से लिए कई सबक
समुदाय विशेष तक पहुंचने की रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए जेपी नड्डा ने हाल ही में अलग-अलग मोर्चों के साथ दिल्ली में महत्वपूर्ण बैठक की थी, तो वहीं राज्य के राजनीतिक तापमान का जायजा लेने के लिए मोदी और शाह लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आती जाएगी वैसे-वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरों की संख्या भी बढ़ती जाएगी. दरअसल 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 99 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई थी. इस चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. मतदान प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को 49 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला था, जबकि कांग्रेस ने भी 41.5 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा को राज्य में कड़ी टक्कर दी थी. अपने सबसे मजबूत गढ़ में मिले इस झटके के बाद मौका मिलते ही भाजपा ने राज्य में मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी सरकार को ही बदल डाला और अब भाजपा ने 2022 के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है. यहां यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिए कि गुजरात को भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ के साथ-साथ भाजपा की प्रयोगशाला भी माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण भी गुजरात भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
HIGHLIGHTS
- मोदी के गुजरात छोड़ते ही बीजेपी का पिछली बार रहा कमतर प्रदर्शन
- ऐसे में सबक लेकर इस बार कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं पार्टी
- शहरी वोटरों संग आदिवासी, ओबीसी, दलित-पाटीदारों को साधने की रणनीति