नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से शुरू हुआ साल 2020 अब कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शनों के साथ खत्म हो रहा है. साल 2020 भारत सहित दुनिया के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं रहा है. कोरोना से जूझते संकट के बीच देश कई राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह बना. एक तरफ देश की प्रमुख पार्टी BJP बिहार के साथ कई अन्य राज्यों में सत्ता में वापस आयी तो कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझती रही. कई दशकों से लंबित राम मंदिर की नींव भी साल 2020 में ही पड़ी. चलिए बताते हैं आपको इस साल की बड़ी राजनीतिक घटनाक्रम और राजनीति के फलक में आये कई नए चेहरों के बारे में.
केजरीवाल सरकार की हैट्रिक
साल 2020 की शुरुआत ही नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन के साथ हुआ था. इसी बीच दिल्ली में चुनावी बिगुल बजा और फरवरी 2020 में विधानसभा चुनाव हुए. चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीतकर तीसरे बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ. इस चुनाव में BJP को आठ सीटें और कांग्रेस को शून्य मिली थी.
मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक
2020 के मार्च आते-आते मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में एक नया सियासी उठापटक शुरू हुआ. कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस सरकार को गिरा कर शिवराज सिंह चौहान फिर से सत्ता पर काबिज हो प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस के 25 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफा दे दिया. कोरोना संकट के बीच ही 25 विधायकों की खाली हुई सीटों पर उपचुनाव में BJP 19 सीटें जीत गई.
नए हाथों में बीजेपी की कमान
अमित शाह को मोदी 2.0 की कैबिनेट में शामिल होने के बाद भारतीय जनता पार्टी की कमान वरिष्ठ नेता जगत प्रकाश नड्डा को सौंप दी गयी. उन्होंने अपना ये पदभार 6 अप्रैल 2020 को बीजेपी के स्थापना दिवस पर संभाला. नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया. गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी भाजपाशासित सरकारों को कामयाबी मिली.
दशकों से लंबित राम मंदिर निर्माण की नींव
भारतीय जनता पार्टी के शुरूआती दिनों से ही राजनीतिक एजेंडों में सबसे ऊपर रहने वाला राम मंदिर प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में पूरा हुआ. वैसे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी कानूनी अड़चने तो पिछले साल खत्म हो गई थी लेकिन अन्य कारणों से मंदिर निर्माण की शुरुआत नहीं हो पाई थी. 2020 के 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण की नींव रखी. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरु हो गया है.
बिहार चुनाव में दो नये चेहरों का उदय
कोरोना संकट के बीच बिहार में हुए 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुए जिसमे एनडीए गठबंधन 125 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही. बता दें कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए बिहार चुनाव एक अग्नि परीक्षा थी जिसमे वो सफल हुए. नीतीश कुमार ने सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इस चुनाव में राजद के तेजस्वी यादव बड़े नेता के तौर पर उभरे। उनके तीखे प्रचार और सरकार पर सवाल करने की शैली ने बिहार में बड़े नेता के तौर पर स्थापित कर दिया। इसी चुनाव में एनडीए से बाहर होकर चिराग पासवान ने अलग ताल ठोकी। हालांकि उनकी पार्टी चुनाव में कोई खास कमाल कर नहीं पायी, फिर भी युवा नेता के तौर पर उन्होंने अपनी पिता राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद जगह जरूर बना ली.
22 साल की दोस्ती में दरार
इस साल लगभग 22 सालों से चली आ रही भाजपा और अकाली दल की दोस्ती टूट गई. अकाली दल कृषि विधेयक का नाम पर एनडीए से अलग हो गया. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार सितंबर माह में 3 नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद अब वो कानून बन चुके हैं. लेकिन किसानों को कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान होगा। इसी कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने 17 सितंबर 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया. और इस तरह भाजपा और अकाली दाल का दशकों पुराना रिश्ता खत्म हो गया.
Art 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में पहला चुनाव
आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट कौंसिल (DDC) का चुनाव होना साल की एक प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रम है. धारा 370 हटने के बाद यह पहला मौका है जब वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हुई है. इस चुनाव में वहां की आम जनता ने बढ़ चढ़कर भाग लिया और घाटी में एक बार फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हुई. इस चुनाव में भाजपा में घाटी में भी कमल खिलाने में सफल हुई. इस चुनाव में भाजपा के सामने गुपकर गठबंधन था जिसमे सभी पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रही थी. इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।
किसान आंदोलन की धधक से दिल्ली बेहाल
केन्द्र सरकार के द्वारा सितंबर माह में लाया गया 3 नए कृषि विधेयक जो अब कानून बन चुके हैं, ने एक तरफ तो भाजपा का अकाली दाल के साथ 22 सालों की दोस्ती तोड़ दी, तो दूसरे तरफ देशभर के किसानों को सड़क पर विरोध में उतार दिया. किसान अब कृषि बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा. किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का भी डर है. कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ अक्टूबर के अंत में पंजाब में शुरू हुआ किसान आंदोलन दिल्ली की चौखट पर आ पहुंचा है. किसानों ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघु और टिकरी बॉर्डर को कब्जे में ले लिया है. किसानों और केंद्र के बीच छह दौर की वार्ता के बावजूद कृषि कानूनों पर गतिरोध कायम है.
अगर साल 2020 को आंदलनों का साल कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
Source : News Nation Bureau