रेबीज से बचाव को लेकर अस्पतालों में टीके उपलब्ध हैं. इस बीमारी से संक्रमित होने वाले लोगों की मृत्यु दर सौ फीसदी बताई जाती है. इसके बाद भी लोगों के अंदर इस टीके के प्रति जागरुकता नहीं है. हालांकि दुनिया ने रेबीज को साल 2030 तक पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य तय किया है. शोध में सामने आया है कि कुत्ते के काटने के बाद करीब हर पांचवां शख्स इससे बचाव का टीका नहीं लगवाता है.
60 जिलों में साढ़े तीन लाख लोगों पर सर्वे किया
यह जानकारी इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिचर्स की ओर से किए एक अध्ययन में सामने आई है. आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) ने 15 राज्यों के 60 जिलों में साढ़े तीन लाख लोगों पर सर्वे किया है. इसमें शामिल लोगों से पूछा गया कि क्या उन्हें किसी ऐसे कुत्ते या जानवर ने काटा है. जिससे रेबीज हो सकता है. इसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. मार्च 2022 से अगस्त 2023 तक हुए सर्वेक्षण में आईसीएमआर 78,807 घरों में रहने वाले 3,37808 लोगों से इस बारे में जानकारी हासिल की.
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इसमें से 2053 लोगों ने ये स्वीकार किया कि उन्हें कुत्ते या रेबीज के खतरे वाले जानवर ने काटा है. इन 2052 लोगों में से 77 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें कुत्ते ने काटा है. करीब हजार लोगों में से 66 लोगों ने रेबीज के खतरे वाले जानवर के काटने का पता चला है.
कब लगवाना चाहिए टीका
इस समय अस्पतालों में एंटी रेबीज इंट्राडर्मल वैक्सीन की चार डोज दी जाती हैं. इस डोज को कुत्ते के काटने के तुरंत बाद, तीसरे दिन, सातवें और 28 वें दिन पर दी जाती है. कई बार गंभीर रूप से काटने पर मरीज को एंटी रेबीज सीरम दिया जाता है. यह वैक्सीन के असर तक शरीर में पैसिव इम्यूनिटी को क्रिएट करती है.
मृत्यु दर 100 प्रतिशत
देश में हर साल 5,726 लोगों की मौत रेबीज की वजह से होती है. इन मौतों को टीकाकरण से रोकना संभव है. पूरा कोर्स होने के बाद इसका खतरा बहुत कम हो जाता है. मगर किसी को एक बार रेबीज हो जाए तो उसकी मौत तय मानी जाती है.