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...जब अचानक आतंकवादियों के बीच जा पहुंचे थे रतन टाटा! फूल गई थी सबकी सांस

होटल गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा रहा था और उसी बीच वह वहां पहुंच गए. सिर्फ पहुंचे ही नहीं तीन दिन और तीन रात तक वहां डटे रहे. उस वक्त होटल में स्टाफ के अलावा करीब 300 गेस्ट थे, उन्होंने सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश की कि सभी सुरक्षित रहें.

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Mohit Sharma
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Ratan Tata Passes Away

...जब अचानक आतंकवादियों के बीच जा पहुंचे थे रतन टाटा! फूल गई थी सबकी सांस

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Ratan Tata Passes Away: 86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए भारत के बिजनेस टाइकून रतन टाटा रतन टाटा एक बिजनेसमैन होने के साथ-साथ काफी अच्छे इंसान भी थे. उनकी सादगी उनकी ईमानदारी का हर कोई फैन है, लेकिन 26/11 के मुंबई आतंकी हमले में जो रतन टाटा ने किया वह हर किसी के बस की बात नहीं है. 26/11 का मुंबई आतंकी हमला तो हर किसी को याद होगा. 26 नवंबर 2008 की मनहूस शाम देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाली मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने हमला कर दिया था.

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मुंबई हमले में 60 दिन तक चला तांडव

हमला क्या किया एक तरह से पूरे शहर को बंधक बना लिया था. 60 घंटे तक तीन दिनों तक आतंकवादियों ने जहां-जहां तांडव किया. उनमें से एक था मशहूर ताज होटल वही जिसे 1903 में रतन टाटा के दादा जमशेद जी टाटा ने इसलिए बनवाया था कि नस्ल भेद की वजह से उन्हें मुंबई के वाटसंस नाम के एक होटल में जाने से रोक दिया गया था. मुंबई हमले के दौरान सबसे आखिर में जिस जगह पर आतंकियों का सफाया हुआ वो था ताज होटल. मुंबई आतंकी हमले में 167 लोगों की मौत हुई थी. रतन टाटा को जैसे ही ताज होटल पर हमले की जानकारी मिली वह आतंकियों की गोलीबारी की परवाह किए बिना तुरंत वहां पहुंच गए.

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गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा रहा था होटल 

होटल गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा रहा था और उसी बीच वह वहां पहुंच गए. सिर्फ पहुंचे ही नहीं तीन दिन और तीन रात तक वहां डटे रहे. उस वक्त होटल में स्टाफ के अलावा करीब 300 गेस्ट थे, उन्होंने सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश की कि सभी सुरक्षित रहें. मुंबई आतंकी हमले के बाद ताज होटल के पीड़ितों के लिए टाटा ने जो किया वह सिर्फ वही कर सकते थे. सिर्फ ताज होटल पर हमले में मारे या घायल हुए पीड़ित ही नहीं बल्कि कई दूसरे पीड़ितों और उनके परिजनों की मदद सुनिश्चित की. रतन टाटा होटल के 80 कर्मचारियों के परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिले, जो या तो मारे गए थे या जख्मी हुए थे.

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कर्मचारियों की मदद के लिए बनाया ट्रस्ट

ऐसे कर्मचारी जिनके परिजन मुंबई से बाहर रहते थे, उन्हें टाटा ने मुंबई बुलवाया और ध्यान रखा कि उनका मेंटल हेल्थ प्रभावित ना हो. उन सभी को होटल प्रेसिडेंट में तीन हफ्तों तक ठहराया गया. सिर्फ 20 दिनों के भीतर टाटा की तरफ से एक नया ट्रस्ट बनाया गया, जिसका मकसद कर्मचारियों को राहत पहुंचाना था. रतन टाटा ने आतंकी हमले के पीड़ितों के 46 बच्चों की पढ़ाई लिखाई की पूरी जिम्मेदारी ली. मारे गए हर कर्मचारी के परिवार को 36 लाख से लेकर ₹50 लाख तक का मुआवजा सुनिश्चित किया .इतना ही नहीं मारे गए कर्मचारी यो के परिवारों के एक एक सदस्य को आजीवन हर महीने उतने पैसे देने की व्यवस्था की जितनी कि कर्मचारी की लास्ट सैलरी थी. 

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