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श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन से चीन की बांछे खिली, भारत के लिए बढ़ा खतरा

Sri Lanka New President: श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के साथ भारत के एक और पड़ोसी के साथ रिश्ते खराब होने की संभावना है. क्योंकि श्रीलंका नए राष्ट्रपति बनने जा रहे अनुरा कुमारा दिसानायके वामपंथी विचारधारा और चीनी समर्थक हैं.

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Suhel Khan
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अनुरा कुमारा दिसानायके (Social Media)

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Sri Lanka New President: भारत 'पड़ोसी प्रथम' नीति के तहत लगातार पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर करने में लगा है, लेकिन बांग्लालेश में सत्ता परिवार्तन से दोनों के बीच रिश्तों में थोड़ी सी खटाई आई है. अब ऐसा ही कुछ श्रीलंका के साथ भी होने की आशंका है. क्योंकि श्रीलंका में वामपंथी विचारधारा वाले अनुरा कुमारा दिसानायके राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. उनका झुकाव हमेशा से चीन की ओर रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि बांग्लादेश के बाद भारत के अपने एक और पड़ोसी से रिश्तों में तनाव आ सकता है.

दरअसल, श्रीलंका में हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को हार का सामना करना पड़ा है. नए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके आज शपथ ले रहे है.  वामपंथी विचारधारा की डगर पर चलने वाली दिसानायके की पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) का भारत के साथ दशकों से रिश्ता खट्टा रहा है, जिससे भारत के लिए यह एक नई चुनौती के रूप में उभर रहा है. इस सत्ता परिवर्तन के बाद श्रीलंका में चीन की वापसी की संभावना बढ़ गई है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है. मधुरेंद्र की इस रिपोर्ट में जानें आने वाले समय में भारत-श्रीलंका के रिश्तों में क्या बदलाव आ सकते हैं.

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अनुरा दिसानायके की जीत और श्रीलंका की राजनीति में बदलाव

अनुरा दिसानायके ने मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा को हराकर श्रीलंका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है. विक्रमसिंघे, जो 2022 में आर्थिक संकट के बाद सत्ता में आए थे, ने श्रीलंका की स्थिरता के लिए कई कठोर आर्थिक सुधार किए थे. उनके नेतृत्व में महंगाई कम हुई और आर्थिक विकास फिर से पटरी पर लौटा. इस दौरान भारत ने श्रीलंका की आर्थिक बहाली में अहम भूमिका निभाई.

जिसमें 2022 में दिए गए $4 बिलियन के आर्थिक सहायता पैकेज और IMF से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में सहयोग शामिल था.भारत ने श्रीलंका में कई प्रमुख आर्थिक परियोजनाओं में निवेश किया है, जैसे पेट्रोलियम पाइपलाइन, आधारभूत संरचना सौदे और भारत-श्रीलंका भूमि पुल परियोजना. भारत और विक्रमसिंघे सरकार के बीच मजबूत संबंध बने रहे, जिससे श्रीलंका में चीन का प्रभाव कम हुआ.

चीन के लिए श्रीलंका में सुनहरा अवसर

हालांकि, 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों ने इस समीकरण को बदल दिया है. विक्रमसिंघे की सरकार ने चीन की गतिविधियों पर अंकुश लगाया था, जिसमें चीनी शोध जहाजों को श्रीलंका में प्रवेश करने से रोकना और प्रमुख रणनीतिक परियोजनाओं को भारतीय कंपनियों को सौंपना शामिल था. इससे चीन का प्रभाव काफी कम हो गया था, खासकर राजपक्षे परिवार की सत्ता से बेदखली के बाद.

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अब अनुरा दिसानायके की जीत के साथ, चीन की वापसी की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं. JVP पार्टी का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ करीबी संबंध रहा है. हालांकि, JVP ने चीन की कुछ परियोजनाओं, जैसे हंबनटोटा बंदरगाह, की आलोचना भी की है, लेकिन पार्टी के पास चीन के साथ अधिक अनुकूल नीति अपनाने की संभावना है.

भारत के लिए श्रीलंका में बढ़ती नई चुनौतियां

JVP का भारत के साथ रिश्ता हमेशा से तल्ख रहा है. पार्टी ने अपने शुरुआती दिनों में 'भारतीय विस्तारवाद' के खिलाफ अपने सदस्यों को चेताया था. खासकर 1980 के दशक में जब भारत ने श्रीलंका के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप किया था, तब JVP ने भारत को एक बाहरी शक्ति के रूप में देखा जो श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा था. 

हालांकि, आज JVP ने अपने कट्टरपंथी और हिंसक इतिहास से बाहर निकलने की कोशिश की है. दिसानायके ने साफ-सुथरे शासन का वादा किया है, और उनकी यह छवि उन्हें श्रीलंका के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बनाने में कामयाब रही, जो परिवर्तन चाहते थे. उन्होंने भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश भी की है. 2024 में, उन्होंने भारत आकर विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की और भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार बताया. 

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क्या हो सकती है आगे की रणनीति?

 दिसानायके की पार्टी ने भारत के अडानी एंटरप्राइजेज को दी गई ऊर्जा परियोजनाओं को रद्द करने की बात कही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत के साथ संबंध सहज नहीं होंगे. वहीं, चीन के साथ उनके करीबी संबंध भारत के लिए एक और चुनौती प्रस्तुत करते हैं. 

श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन से भारत-श्रीलंका संबंधों में बदलाव आ सकता है, और चीन एक बार फिर श्रीलंका में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश करेगा. ऐसे में, भारत को अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए नई नीतियों और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. 

भारत का नेबरहूड क्राइसिस

भारत अपने नेबरहूड संकट से लंबे समय से जूझ रहा है जिसका प्रभाव भारत के आंतरिक, सामरिक और आर्थिक हितों पर पड़ता है. चीन और पाकिस्तान जैसे दो पड़ोसी भारत के धुर दुश्मन हैं. नेपाल में भी सत्ता अस्थिर है जिसे चीन प्रभावित करता रहता है और भरता विरोध के बीज समय समय पर छीटें जाते हैं. म्यांमार में भी मिलिट्री जुंटा की हुकूमत है और वह भी चीन परस्त है.

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मोईजू के शासन में आने के बाद भारत मालदीव रिश्ते भी बुरी तरह बेपटरी हुए जो अभी तक संभल नहीं पाएं है. इस बीच पड़ोसी बांग्लादेश में भारत से बेहतर संबंध रखने वाली शेख हसीना की सरकार जन विद्रोह की भेंट चढ़ चुकी है. और अब श्रीलंका के राजनीतिक हालात चीन के ज्यादा नजदीक और भारत से दूरी बनाते दिखेंगे, इसकी संभावना प्रबल है.

श्रीलंका में नए राष्ट्रपति के सत्ता में आने से भारत के लिए एक नई कूटनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है. जबकि भारत ने अब तक विक्रमसिंघे सरकार के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे थे, दिसानायके के साथ यह समीकरण जटिल हो सकता है. साथ ही, चीन की संभावित वापसी से भारत के लिए क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखना और भी महत्वपूर्ण हो गया है.

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