महिला के रूप में विमंस हॉस्टल में रह रही ट्रांसजेंडर टीचर की पहचान जैसे ही खुली, वैसे ही पूरे हॉस्टल में हड़कंप मच गया था. मैनेजमेंट तो यह बात जानता था लेकिन फिर भी टीचर को बर्खास्त कर दिया था. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है जहां इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया. हालांकि इस मामले में मैनेजमेंट ने चौंंकाने वाला जवाब दिया है. इस बात ने देश में बहस पकड़ ली है कि यदि ट्रांसजेंडर होना कानूनी अपराध नहीं तो फिर इसकी सजा क्यों दी जा रही है.
दरअसल, याचिकाकर्ता की वकील ने कहा था कि यह सामाजिक कलंक का मसला है. यह दिखाता है कि कैसे एक टीचर को स्कूल में उसकी लैंगिक पहचान के आधार पर तिरस्कार मिला. सिर्फ तिरस्कार ही नहीं,बल्कि ट्रांसजेंडर टीचर को बर्खास्त भी कर दिया था. यह मामला गुजरात और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग स्कूलों से जुड़ा हुआ था जिसमें लैंगिक पहचान उजागर हो गई थी.
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टीचर ने सुप्रीम कोर्ट का किया था रुख
इस तिरस्कार से आहत होकर टीचर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और याचिका दाखिल की. टीचर का कहना है कि जब मैनेजमेंट को यह पता था कि वह ट्रांसजेंडर है तो फिर इस तरह का एक्शन क्यों लिया गया. टीचर ने इस बात को अपने आत्मसम्मान का मामला बना दिया है.
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राज्यों को नोटिस भेजकर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था जवाब
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आया तो उसने कहा कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है जिसको हमें तय करना है. इस मामले में सभी पहलू देखकर सुप्रीम कोर्ट ने मामला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजरात और उत्तर प्रदेश को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था. जवाब में मैनेजमेंट ने बात घुमा दी और कहा कि वह जवाब दिया था कि वह टीचर समय की पाबंद नहीं थी, इसलिए यह एक्शन लिया गया.
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