पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों को आरक्षण देने वाला मामला सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है. मामले में अदालत ने ममता बनर्जी सरकार से कड़ा सवाल पूछा है. अदालत ने पूछा किस आधार पर उन्होंने मुस्लिमों की 77 जातियों को ओबीसी का दर्जा दिया. अदालत ने राज्य सरकार से एक सप्ताह में इस पर जवाब मांगा है. बता दें, ममता सरकार के फैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, जिसे ममता सरकार ने सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नोटिस जारी करके दो सवाल पूछे. अदालत ने कहा कि सरकार एक हलफनामा दायर कर 77 जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करने की प्रक्रिया समझाएगी. अदालत ने सवाल किया कि क्या 77 जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करने से पहले पिछड़ा आयोग से सलाह नहीं ली गई. वही दूसरा सवाल अदालत ने किया कि ओबीसी का सब क्लासिफिकेशन करने से पहले सरकार ने क्या कोई सलाह ली थी. अदालत ने यह भी कहा कि हमें आप बताएं कि किस आधार पर मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया. अब केस की अगली सुनवाई 16 अगस्त को होगी. बता दें, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की.
हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती
कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस साल 22 मई को 2010 के बाद से जारी सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया. उच्च न्यायालय ने कहा कि 77 जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करना एक समाज का अपमान है. यह सब कुछ वोट बैंक के लिए किया गया है. यह सब कुछ चुनाव के फायदे के लिए किया गया. अदालत ने कहा कि 1993 पिछड़ा वर्ग आयोग कानून के अनुसार, ओबीसी लिस्ट तैयार करते समय सरकार आयोग की सलाह लेने के लिए बाध्य है. अदालत ने 2012 के प्रावधान को भी रद्द कर दिया, जिसमें सरका को ओबीसी लिस्ट में बदलाव करने की इजाजत थी.
अदालत के फैसले का असर
अदालत के इस फैसले से 2010 से 2024 के बीच जारी सभी ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द हो गए. अदालत ने साफ किया कि 77 जातियों को आरक्षण का लाभ अब नहीं मिल सकता. उन्हें अब ओबीसी लाभ देकर नौकरी पर नहीं रखा जा सकता है. हालांकि, अदालत ने राहत दी कि जो लोग इसका लाभ लेकर नौकरी कर रहे हैं, उनकी नौकरी पर असर नहीं पड़ेगा.