Tarakeswar Scandal: तारकेश्वर स्कैंडल बंगाल के इतिहास का सबसे विवादित केस है, जिसके केंद्र तारकेश्वर शिव मंदिर के महंत, नोबिन चंद्र और उसकी पत्नी एलोकेशी है. महंत और एलोकेशी के बीच एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के इस मामले ने तब के बंगाल को हिला कर रख दिया था. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि लोग टिकट लेकर कोर्ट में इस केस की सुनवाई को सुनते थे. आइए जानते हैं कि तारकेश्वर स्कैंडल क्या है और क्यों ये इतना मशहूर है. इस स्कैंडल को महंत-एलोकेशी अफेयर और महंत-एलोकेशी सेक्स स्कैंडल के नाम से भी जाना जाता है.
कम उम्र में हुई थी एलोकेशी की शादी
19वीं सदी की बात है. एलोकेशी नाम की 16 साल की लड़की थी. उन दिनों कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दिया जाती थी, इसलिए एलोकेशी के पिता ने भी उसकी नोबिन चंद्र बनर्जी नाम के युवक से शादी कर दी थी. नोबिन चंद्र बनर्जी कुलीन ब्राह्मण फैमिली से था. वह मिलिट्री प्रेस में सरकारी नौकरी करता था. शादी के कुछ समय बाद नोबिन को नौकरी से बुलावा आ गया. वह अपनी पत्नी एलोकेशी को अपने पिता के घर पर ही छोड़ गया.
एलोकेशी को नहीं होती थी संतान
हालांकि, बीच-बीच में वह छुट्टियों में अपनी पत्नी एलोकेशी से मिलने के लिए आता-जाता रहता था. दोनों की जिदंगी अच्छी चल रही थी, लेकिन बस एक परेशानी थी कि शादी को हुए लंबा समय होने के बाद भी एलोकेशी को कोई संतान नहीं हो रही थी. घर की और गांव की महिलाएं अक्सर इसको लेकर एलोकेशी से पूछा करती थीं. बीतते समय के साथ एलोकेशी बच्चा नहीं होने के चलते परेशान रहने लगी. कई कोशिशों के बावजूद जब एलोकेशी को बच्चा नहीं हुआ तो किसी ने उसके पिता से कहा कि वो एलोकेशी को तारकेश्वर मंदिर के महंत माधव चंद्र गिरी को दिखाएं.
महंत के पास गई एलोकेशी
इसके बाद एलोकेशी के पिता उसे महंत माधव चंद्र गिरी के पास लेकर गए. महंत ने एलोकेशी के पिता को आश्वासन दिया कि जल्द ही एलोकेशी को औलाद होगी. इसके बाद महंत माधव चंद्र गिरी इलाज के नाम पर एलोकेशी को अक्सर ही अपने पास बुलाया करता था. एलोकेशी के बार-बार महंत माधव गिरी चंद्र से मिलने की बात कुछ लोगों के नजर में आ गई. जब नोबिन चंद्र बनर्जी ड्यूटी पर से घर वापस आया तो कुछ लोग उसे ताने मारने लगे कि उसकी पत्नी एलोकेशी महंत माधव गिरी से बार-बार मिलने जाती है.
पति ने की एलोकेशी की हत्या
महंत और एलोकेशी को लेकर जो बातें लोगों ने नोबिन चंद्र बनर्जी बताईं उनसे वो नाराज हुआ. नोबिन की पत्नी एलोकेशी से बहस हुई. आगे चलकर कड़वाहट इतनी बढ़ गई कि नोबिन चंद्र बनर्जी ने पत्नी एलोकेशी को मौत के घाट उतार दिया था. उसने मछली काटने वाले चाकू से एलोकेशी का गला काट दिया. उसने 27 मई 1873 को इस वारदात को अंजाम दिया गया था. कत्ल करने के बाद नोबिन चंद्र बनर्जी खुद पुलिस के पास गया और अपना गुनाह कबूलते हुए फांसी की सजा की मांग करने लगा.
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कोर्ट में पहुंचा मामला
पुलिस ने नोबिन चंद्र बनर्जी को हुगली सेशंस कोर्ट में पेश किया. नोबिन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत पत्नी की हत्या का मुकदमा शुरू हुआ. वहीं दूसरा केस धारा 497 के तहत महंत माधव चंद्र गिरी के खिलाफ व्यभिचार यानी एडल्ड्री (Adultery) दर्ज हुआ. तारकेश्वर महंत का नाम आने के चलते तब ये एक हाईप्रोफाइल केस बन गया. कोर्ट में वकील डब्ल्यूसी बनर्जी ने नोबिन चंद्र का केस लड़ा, जो बाद में कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और उसके पहले भी अध्यक्ष बने. उन्होंने इस केस को लड़ने के लिए नोबिन से कोई फीस नहीं ली थी.
‘मरने से पहले एलोकेशी ने…’
जब वकील डब्ल्यूसी बनर्जी कोर्ट में पहुंचे तो सबकी निगाहें उन पर टिक गईं. सुनवाई के दौरान डब्ल्यूसी बनर्जी ने कोर्ट में दलील थी कि नोबिन को जब महंत और एलोकेशी के अवैध संबंधों का पता चला तो वह अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाया. उसने अपना आपा खो दिया और फिर आवेश में आकर उसने एलोकेशी की हत्या कर दी. साथ ही ये भी बताया कि एलोकेशी ने मरने से पहले महंत के साथ अपने अवैध संबंध होने की बात कबूल कर ली थी. तब बड़ी संख्या में लोग इस केस को सुनने के लिए कोर्ट आते थे.
ज्यूरी ने नोबिन के बताया बेगुनाह
जब ज्यूरी कोर्ट हुआ करता था, तब ज्यूरी सदस्य भारतीय थे उन्होंने नोबिन चंद्र बनर्जी को बेगुनाह करार दिया. इसके पीछे ज्यूरी सदस्यों ने तर्क दिया कि नोबिन ने वही किया जो ऐसी स्थिति में कोई भी आदमी करता. हालांकि जज ने ज्यूरी के फैसले को अस्वीकार कर दिया. जज ने मामले हाई कोर्ट में भेज दिया. इस बीच, नोबिन के समर्थन में बंगाल की जनता आ गई. बड़े पैमाने पर लोगों का मानना था कि नोबिन चंद्र बनर्जी है, क्योंकि महंत ने उसकी पत्नी के साथ अवैध संबंध बनाए थे, इसलिए वो ही असली दोषी होना चाहिए.
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महंत को हुई दो साल की सजा
हुगली सेशंस कोर्ट में दूसरा केस धारा 497 के तहत महंत के खिलाफ चल रहा था, जिसमें महंत को दोषी जबकि नोबिन को पीड़ित बताया था. हालांकि कोर्ट में सुनवाई शुरू होती उससे पहले ही महंत माधव चंद्र गिरी चंदन नगर भाग गया था. तब ये इलाका फ्रेन्चों के अधिन आता था, जिनके कानून में एडल्ट्री क्राइम नहीं माना गया था. हालांकि बिट्रिश पुलिस ने महंत माधव गिरी को अरेस्ट किया और फिर कोर्ट ने दो साल की सजा और 2000 रुपये का जुर्माना लगाया. तब के हिसाब से ये रकम काफी बड़ी थी.
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नोबिन को हुई आवाजीन कारावास
उधर, नोबिन का केस अब हाईकोर्ट पहुंचा. काफी दिनों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने नोबिन को एलोकेशी की हत्या का दोषी माना और उसे आजीवान कारावास की सजा सुनाई. उसे अंडमान-निकोबार की जेल भेजा गया. ये खबर आग की तरह पूरे बंगाल में फैल गई. लोग महंत को कम और नोबिन को अधिक सजा होने की बात से काफी नाराज थे. लोगों को मानना था कि नोबिन इस मामले में पीड़ित है, अगर महंत उसकी पत्नी के साथ गलत काम नहीं करता तो वो ऐसा कदम नहीं उठाता. ऐसे में जो पीड़ित है उसको कैसे सजा हो सकती है. इसके खिलाफ बंगाल में कैंपेन शुरू होने लगे.
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नोबिन को किया गया रिहा
लोगों के बढ़ते आक्रोश को देख अंग्रेजी हुकूमत पशोपेश में आ गई. उनको लगा कि कहीं ये विवाद एक क्रांति की शक्ल ना ले ले, क्योंकि अंग्रेज 1857 क्रांति को पहले ही झेल चुके थे, इसलिए उन्होंने तीन साल की सजा काट चुके नोबिन चंद्र बनर्जी को रिहा कर दिया. वहीं, दो साल की सजा काटने के बाद महंत माधव चंद्र गिरी भी रिहा कर दिए गए और दोबारा तारकेश्वर मंदिर के महंत बना दिए गए. बीतते समय के साथ ये केस शांत हो गया, लेकिन एडल्ट्री और हत्या के ईर्द-गिर्द घूमा यह केस आज भी काफी पॉपूलर माना जाता है.
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