सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी का गुरुवार को 72 वर्ष की उम्र में एम्स दिल्ली में निधन हो गया. वह बीते 23 दिनों से एम्स में भर्ती थे. उन्हें सांस संबंधी समस्या थी. उनकी इच्छानुसार परिवार ने उनकी डेड बॉडी को एम्स में दान कर दिया है. उनके अंतिम दर्शनों के बाद येचुरी के शव को एम्स के एनाटॉमी विभाग को सौंप दिया जाएगा. मगर यह जानना दिलचस्प है कि आखिर अस्पताल में दान की गई डेड बॉडी का होता क्या है. शव को कितने दिनों तक अस्पताल में रखा जाता है या इसे परिजन वापस मांग सकते हैं? क्या अस्पताल वाले उस शव का दाह-संस्कार भी करते हैं या नहीं. आइए इसके बारे में जानने का प्रयास करते हैं.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,जब कोई दान की गई देह अस्पताल में लाता है तो वह अक्सर एनाटॉमी विभाग में ही जाता है. इसका कारण है कि एमबीबीएस करने करने वाला हर छात्र इस विषय को पढ़ता है. शव की चीर-फाड़ यानि डिसेक्शन के जरिए से बेसिक शारीरिक संरचना और विभिन्न अंगों की सर्जरी प्रक्रियाओं को सीखा जाता है.
सबसे पहले बॉडी को करते हैं सुरक्षित
मौत के एक बाद से ही शरीर सड़ने लग जाता है. उसमें बैक्टीरिया पनपने लग जाते हैं. इसलिए देहदान पर सबसे पहले शरीर को सुरक्षित किया जाता है. इसके लिए कई तकनीकों को अपनाया गया है. इनमें से एक है थील तकनीक. शव बचाने के लिए लेप लगाया जाता है. ऐसा करने से शव में नमी बनी रहती है. उसमें बैक्टीरिया नहीं पनप पाते हैं. इस तकनीक की मदद से गंध भी कम आती है. इस तरह से छात्रों के इसे छूने, काटने में दक्कित का सामना नहीं करना होता है. इस तरह से शव पर फॉर्मेलिन भी लगाया जाता है.
साथ ही डेड बॉडी में एक पदार्थ को भी इंजेक्ट किया जाता है. ऐसा करने पर जब तक बॉडी को रखना चाहें, आप रख सकते हैं. इसमें किसी तरह की खराबी नहीं आती है.
शरीर को सुरक्षित कर लिया जाता है. इसके बाद पढ़ाई के लिए छात्रों के बीच शव को लाया जाता है. इसे अलग-अलग ग्रुप के छात्रों के लिए शव को बांट दिया जाता है. शव का अलग-अलग डिसेक्शन होता है. एनाटमी में गर्दन, पेट, पैर सभी की चीर-फाड़ होती है.
उसे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए छात्रों के बीच ले जाया जाता है. यहां अलग-अलग ग्रुपों में छात्रों को बांटकर शव के अलग-अलग डिसेक्शन करने दिया जाता है. एनाटमी में हर अंग की चीर फाड़ होती हैं. अंगों की बारीकियों को समझने की कोशिश होती है. ऐसा तब तक होता है, जब तक शव का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो जाता है. इस तरह छात्र पढ़ाई के संग रिसर्च वर्क भी करते हैं.
शव से निकाल लेते हैं हड्डियां
इसके बाद शव के क्षत-विक्षत होने पर उसकी हड्डियों को निकाल लिया जाता है. इन हड्डियों से भी छात्र आगे पढ़ाई किया करते हैं. इसके बाद बाकी शरीर को डिस्पोज ऑफ कर दिया जाता है. जानकारी के अनुसार, 50-100 छात्र मिलकर पूरे शरीर का डिसेक्शन करते हैं. ऐसे में डेडबॉडी एक ही सेशन चल पाती है. इंग्लैंड में डेडबॉडी को सात साल तक रखने का नियम है. मगर भारत में ऐसा कोई नियम नहीं है. देहदान में शव को वापस नहीं किया जाता है और न ही परिवार से इसे मांग सकता है.