Caste Census: भारतीय जनता पार्टी के जातिगत जनगणना के मद्देनजर राष्ट्रीय स्वयं संघ और कांग्रेस आमने-सामने दिखाई दे रहे हैं. RSS के जाति जनगणना वाले बयान को लेकर कांग्रेस ने पलटवार किया है. कांग्रेस ने संघ पर निशाना साधा है. कांग्रेस के कदम के बाद अब जाति जनगणना को लेकर सियासी पारा और हाई हो गया है. कांग्रेस ने जाति जनगणना को देश में एक बड़ा मुद्दा बना दिया. तो वही पहली बार आरएसएस ने भी इस मुद्दे पर अपना रुख बदल लिया है. आरएसएस के इस बदले रुख पर भी कांग्रेस मुखर नजर आ रही है. जाति जनगणना के बयान पर कांग्रेस नेता गुरदीप सप्पल ने मोर्चा संभाल लिया है.
आरएसएस नहीं चाहती जातिगत जनगणनाः सप्पल
पार्टी के प्रशासन प्रमुख गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा है कि आरएसएस राहुल गांधी का दबाव महसूस कर रही है. यह पूरा देश देख रहा है. उन्होंने ने आगे कहा कि खानापूर्ति के लिए आरएसएस ने राहुल के दबाव में कुछ जातियों के वेलफ़ेयर की बात की, लेकिन हम सशक्तिकरण की राह में हैं. आरएसएस जातिगत जनगणना विरोधी है.
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कांग्रेस ने आरएसएस से मांगा जवाब
कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सप्पल ने आगे कहा- दिक्कत यह है कि आरएसएस का यह बयान इतना उलझा हुआ है कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जब आरएसएस से पूछा कि क्या वो जाति जनगणना के पक्ष में है या विरोध में तो इसको लेकर अब तक संघ की ओर से जवाब ही नहीं आया.
सप्पल ने कहा कि आरएसएस का बयान है जाति जगगणना का समर्थन नहीं करता है. संघ के बयान के मुताबिक कुछ जातियां, सब जातियां नहीं, कुछ जातियां, कुछ समुदाय जो पिछड़े हुए हैं उनकी गिनती के पक्ष में हैं. ये जाति जनगणना की बात नहीं हुई है. जाति जनगणना का मतलब है कि देश में सभी जातियों की गणना की जानी चाहिए.
RSS को किस बात का डर ?
गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा कि आरएसएस अभी डर-डर के धीरे-धीरे आगे बढ़ी, लेकिन अभी भी उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वो यह बोले कि सभी जातियों की गणना की जाएगी. खानापूर्ति के लिए आरएसएस ने राहुल के दबाव में कुछ जातियों के वेलफेयर की बात की है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस के लिए जाती जनगणना सशक्तिकरण के लिए है. सप्पल ने आगे कहा कि आरएसएस जाति जनगणना से इसलिए घबराती है क्योंकि उसे जाति व्यवस्था में यकीन है.
RSS ने क्या कहा था ?
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने जाति जनगणना पर 3 सितंबर को बड़ा बयान दिया था, उन्होंने कहा, हिंदू समाज में जाति और जाति संबंध एक संवेदनशील मामला है. ये राष्ट्रीय एकता के लिए अहम मुद्दा भी है. ऐसे में इसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए. इसे चुनावी मुद्दे और राजनीति मुद्दे की तरह नहीं देखना चाहिए.
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