देश में कार को कबाड़ में देने को लेकर फिलहाल पुराने वाहनों पर अनिवार्य स्क्रैपिंग का नियम लागू है. केन्द्रीय सड़क औऱ परिवहन सचिव की राय इस पॉलिसी से थोड़ा अलग है. उनके मुताबिक सरकार किसी भी गाड़ी की उम्र के बजाय उस गाड़ी का प्रदूषण स्तर के आधार पर उसे स्क्रैप में भेजने के बारे में सोच रही है. जानकार इसे सरकार के स्क्रैप पॉलिसी के यू टर्न के तौर पर देख रहे हैं.
स्क्रैपिंग पॉलिसी में बदलाव क्यों करना चाहती है सरकार
मंत्रालय वाहनों की स्क्रैपिंग को उनकी उम्र के बजाय प्रदूषण स्तर से जोड़ने की संभावना पर अध्ययन कर रहा है. जैन ने सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) की सालाना बैठक में कहा, 'लोगों ने हमसे पूछा कि वे वाहन का अच्छा रखरखाव कर रहे हैं, तो स्क्रैप करना बाध्य क्यों होना चाहिए? इसके बाद यह संभावना तलाशी जा रही है कि क्या वाहन की उम्र की जगह प्रदूषण के ऊपरी स्तर (जैसे बीएस-1 या बीएस-2 से पहले के वाहन) को स्क्रैप का मानक बनाया जा सकता है.' हालांकि इस पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. फिलहाल यह विचार विमर्श के दौर में है.
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जानिए अभी नियम क्या hai
मौजूदा वक्त में दिल्ली में 15 साल से पुराने वाहनों की अनिवार्य स्क्रैपिंग लागू है. 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन और 10 साल से पुराने डीजल वाहन दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर नहीं चल सकते. अदालत ने पुराने और प्रदूषणकारी वाहनों को हटाने के लिए यह आदेश दिया था.
क्या है व्यवहारिक परेशानी
अनुराग जैन ने कहा कि 'इसके लिए प्रदूषण प्रमाणपत्र जारी करने की विश्वसनीय व्यवस्था की जरूरत होगी. इस पर उद्योगों से राय मांगी गई है.' चूंकी ऐसा पाया गया है कि हाल के दिनों में कई गाड़ियां पीयूसी के सख्त नियम नहीं होने की वजह से आसानी से फिटनेस सर्टिफिकेट पा जाते हैं.
(रिपोर्ट: सैय्यद आमिर हुसैन)