Jammu-Kashmir News: नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच संबंधों की एक लंबी और दिलचस्प राजनीतिक यात्रा रही है, जिसकी शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के दौर में हुई थी. यह गठबंधन जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण रहा है और आज भी दोनों पार्टियों के बीच समर्थन का सिलसिला जारी है, हालांकि बीच में कुछ समय के लिए इन संबंधों में खटास जरूर आई थी, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया.
नेहरू और शेख अब्दुल्ला की शुरुआत का दौर
आपको बता दें कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के संबंधों की नींव आजादी से पहले की राजनीति में ही रखी गई थी, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने एक-दूसरे का समर्थन किया. शेख अब्दुल्ला ने 1930 के दशक में नेशनल कॉन्फ्रेंस की स्थापना की, जिसका उद्देश्य कश्मीर के लोगों के अधिकारों और पहचान की रक्षा करना था. नेहरू और शेख अब्दुल्ला के व्यक्तिगत और राजनीतिक रिश्ते ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद की कश्मीर नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वहीं बता दें कि नेहरू और शेख के इस संबंध की वजह से कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस का खुला समर्थन मिला. 1947 में जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ, तब भी कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर वहां राजनीतिक स्थिरता और विकास की कोशिश की. इस दौर में शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का 'शेर' कहा जाता था और नेहरू के साथ उनके करीबी रिश्ते ने भारतीय राजनीति में उनकी अहम भूमिका सुनिश्चित की.
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जानें 1953 का घटनाक्रम
हालांकि, 1953 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच संबंधों में दरार आ गई. शेख अब्दुल्ला पर कश्मीर की स्वतंत्रता के पक्ष में काम करने और भारत से अलग होने के प्रयास का आरोप लगाया गया. इसके परिणामस्वरूप, अब्दुल्ला को गिरफ्तार किया गया और उनके स्थान पर बख्शी गुलाम मोहम्मद को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. इस घटना से दोनों दलों के बीच संबंध काफी बिगड़ गए और यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इसके बाद के कई सालों तक नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच रिश्तों में खटास रही.
इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच सुलह की नई शुरुआत
आपको बता दें कि 1975 में इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे 'इंदिरा-शेख समझौता' कहा जाता है. इस समझौते ने दोनों पार्टियों के बीच एक नई शुरुआत की और शेख अब्दुल्ला फिर से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. इस समझौते के बाद, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच का टकराव समाप्त हुआ और दोनों पार्टियों ने एक बार फिर एक-दूसरे का समर्थन किया. इस दौर में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में स्थिरता आई और दोनों पार्टियों ने मिलकर काम किया.
एक बार फिर समर्थन
इसके अलावा आपको बता दें कि हाल के वर्षों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच रिश्ते फिर से मजबूत हुए हैं. 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद, दोनों पार्टियों ने केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए एकजुट होकर काम किया. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के साथ मिलकर केंद्र की बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष खड़ा किया. बता दें कि 2024 के चुनावों के मद्देनजर, कांग्रेस ने एक बार फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन किया है. दोनों पार्टियां जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और विशेष पहचान की बहाली के मुद्दे पर एक साथ आई हैं. इस नए दौर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन एक बार फिर राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है.
बहरहाल, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच संबंधों की यात्रा ने भारतीय राजनीति में कई मोड़ देखे हैं. नेहरू और शेख अब्दुल्ला की दोस्ती से शुरू हुआ यह सफर, बीच में टकरावों से गुज़रा और अब फिर से मजबूत हो रहा है. आज, दोनों पार्टियां एक बार फिर साथ आकर जम्मू-कश्मीर की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने की कोशिश कर रही हैं, जो आने वाले समय में राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा असर डाल सकती है.