लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की धोखेबाजी का कारण रिटायर सूबेदार मेजर ताशी दोरजे ने बताया. उन्होंने बताया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर रोड और ब्रिज का निर्माण चीन की आंखों में चुभ रहा है. वो नहीं चाहता है कि एलएसी पर भारत की तरफ से कोई निर्माण कार्य किया जाए.
रिटायर्ड सूबेदार मेजर ताशी दोरजे लद्दाख स्क्वाड में तैना थे. वो 36 साल तक सेना में रहकर कारगिल और लेह के बॉर्डर की रक्षा में तैनात रहे. दोरजे के मुताबिक 1962 और उसके बाद सेना के लिए बॉर्डर तक पहुंचना और वहां काम करना बहुत मुश्किलों भरा होता था.
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उस समय चीन के साथ लगे बॉर्डर पर पहुंचने के लिए नुब्रा घाटी से पैदल जाना पड़ता था. गर्मियों में ये सफर ग्लेशियर के रास्ते तय किया जाता था. जिसमें 6 से 7 दिन का वक्त लगता था.
इस दौरान खच्चरों के सहारे समान और हथियार साथ लेकर आगे बढ़ा जाता था. सर्दियों में गलवान घाटी का सफर और भी मुश्किल भरा था. बॉर्डर पर जाने के लिए सेना को 25 से 30 दिन का समय लगता था. इस दौरान सेना को श्योक नदी के करीब 100 अलग-अलग पॉइंट्स से क्रॉस होकर चौकियों तक पहुंचना पड़ता था.
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लेकिन दोरजे के मुताबिक अब हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं. भारतीय सेना ने श्योक और गलवान के बीच जो ब्रिज तैयार किया है रिटायर सूबेदार मेजर के मुताबिक ये ही चीन की आंख में सबसे ज्यादा चुभ रहा है. दोरजे के मुताबिक भारतीय सेना को जहां कुछ साल पहले तक पैदल चीनी सरहद तक पहुंचना पड़ता था. आज वहां कुछ घंटों में हमारी सेना पहुंच जाती है. दोरजे कहते है कि 1962 से अगर आज की तुलना करें तो हालात काफी बेहतर है और भारतीय सेना में आज इतनी काबलियत है कि वो चीन को सरहद के हर हिस्से में करारा जवाब दे सकती है.
Source : News Nation Bureau