Govardhan Puja 2024: हिंदू मान्यताओं के अनुसार चौबीस कोसों की गिरिराज की परिक्रमा करने मात्र से व्यक्ति को हर एक दुख-दर्द से मुक्ति मिल जाती है. ऐसे करने से भक्त भगवान कृष्ण के साथ राधा रानी के प्रिय बन जाते हैं. दीपोत्सव के बीच गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है. भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से मथुरा और वृंदावन भरा हुआ है. अगर आप भी गोवर्धन पूजा पर मथुरा-वृंदावन की यात्रा पर जाने की सोच रहे हैं तो गिरिराज पर्वत के बिना आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है. मथुरा से करीब 21 किमी दूर गोवर्धन पर्वत स्थित है. अगर आप भी यहां पर गिरिराज के दर्शन करने के साथ परिक्रमा (Govardhan Parvat Parikrama)करने का जा रहे हैं, तो कभी भी ये चीज वहां से लेकर न आएं. इस बारे में स्वयं गर्ग संहिता नामक शास्त्र में लिखा गया है. आइए जानते हैं गोवर्धन पर्वत जा रहे हैं, तो क्या चीज बिल्कुल भी न लेकर आएं. अगर आपने ऐसा किया तो आपको भयंकर नरक भोगना पड़ेगा.
गिरिराज पर्वत की महिमा
गर्ग संहिता में श्री गिरिराज खण्ड के अन्तर्गत श्री नारद बहुलाश्व-संवाद में ‘श्रीगिरिराजके तीर्थों का वर्णन’ नामक सातवां अध्याय में इसकी व्याख्या की गई है. उनके मुताबिक, ये गोवर्धन पर्वत सभी तीर्थों में से श्रेष्ठ है. वृंदावन साक्षात् गोलोक है, तो गिरिराज को उसका मुकुट बताकर सम्मानित किया गया है. ये वो पर्वत है, जो साक्षात पूर्ण ब्रह्म का छत्र बन गए थे. इसलिए इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा तीर्थ नहीं है. श्री कृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर ये शिला मुकुट के चिह्न से सुशोभित हो गयी, उस शिला का दर्शन करने मात्र से मनुष्य देव शिरोमणि हो जाता है.
दर्शन मात्र से मिलती परलोक में शांति
श्री गिरिराज खंड के ग्यारहवें अध्याय में नारद मुनि जी ने कहा कि जो व्यक्ति गिरिराज के दर्शन कर लेता है, तो वह स्वप्न में भी कभी प्रचंड यमराज का दर्शन नहीं करता है. वह जीवन में देवराज इंद्र के अनुसार, सुख भोगता है. इसके साथ ही नंदराज के समान परलोक में शांति का अनुभव करता है.
गोवर्धन की उत्पत्ति कैसे हुई?
गर्ग संहिता के गिरिराज खंड के अनुसार, गिरिराज को श्री कृष्ण का मुकुट कहा गया है. इसके साथ ही गोवर्धन श्री कृष्ण के साथ-साथ श्री राधा रानी को अपि प्रिय है. गर्ग संहिता के गोकुलखंड के तीसरे अध्याय में जब सभी देवी-देवताओं के कहने पर श्री विष्णु धरती पर आने लगे, तो उन्होंने राधा रानी से चलने के लिए कहा, तो स्वयं श्री राधारानी ने श्री कृष्ण से कहा कि जहां पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत नहीं है, तो मुझे वहां पर सुख नहीं मिलेगा. इसके बाद ही श्री कृष्ण ने अपने गोकुल धाम से पृथ्वी पर ये सब चीजें भेजी थी. इसलिए राधारानी को गिरिराज अति प्रिय है.
गोवर्धन से क्या चीज नहीं लानी चाहिए ?
अगर आप गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2024) पर गिरिराज के दर्शन के लिए जाने का प्लान बना रहे हैं तो एक चीज भूलकर अपने साथ न लाएं. श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि गिरिराज की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. अगर आप गोवर्धन पूजा के लिए नहीं आ सकते हैं, को घर में ही गोबर से विशालकाय गोवर्धन बनाकर पूजा कें. इसके साथ ही अगर आप अपने घर शिला ले जाना चाहते हैं, तो उतने ही भार का सोना चढ़ाना पड़ेगा, अन्यथा आपको भयंकर नरक भोगना पड़ेगा. इसलिए व्यक्ति को कभी भी अपने घर में गिरिराज की शिला बिल्कुल नहीं लानी चाहिए. इससे श्री कृष्ण के साथ-साथ राधा रानी रुष्ट हो जाती है, जिससे आपके जीवन में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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