Anant-Radhika Wedding: विश्व के जाने-माने उद्योग घराने में गिने जाने वाले अंबानी परिवार में शाही शादी की रस्म शुरू हो गई हैं. बिजनेसमैन मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के शादी समारोह के बारे में जानने के लिए हर कोई उत्साहित नजर आ रहा है. बीते दिनों नीता अंबानी ने धर्म नगरी काशी में बाबा काशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा को बेटे अनंत और बहू राधिका की शादी का निमंत्रण पत्र सौंपा था. काशी पहुंची नीता अंबानी ने परिवार की शादी समारोह के लिए विशेष तौर पर बनारसी साड़ियों में रुचि दिखाई. उन्होंने हजारा बूटी साड़ी में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई. अंबानी परिवार के शादी समारोह में बनारस से बड़ी संख्या में साड़ियां जाएंगी. जानिए क्या है बनारसी साड़ियों की खासियत और क्यों है नीता अंबानी को ये इतनी पसंद.
एक साड़ी की किमत 2 लाख से 6 लाख रुपए
नीता अंबानी ने विशेष तौर पर बनारस की हजारा बूटी साड़ी को पसंद किया. यह साड़ी विशेष तौर पर बनारस में ही तैयार की जाती है. इसके अलावा डार्क रंग और पिंक रंग की साड़ी को खरीदने के लिए नीता अंबानी उत्सुक दिखी. इस साड़ी में 58 फीसदी चांदी और 1.5 फीसदी सोने से जड़ित रहते हैं. इसके दाम 2 लाख से 6 लाख रुपए निर्धारित होते हैं. काशी में नीता अंबानी ने 500 से अधिक बनारस की अलग-अलग साड़ियों का आर्डर दिया था. साथ ही 60 से अधिक साड़ियों को वह खरीद कर अपने साथ मुंबई भी ले गई थीं, जिसे वह अपने गेस्ट को उपहार के रूप में सौंपेगी.
ऐसे पड़ा बनारसी साड़ी नाम
बनारसी साड़ियों को देश और दुनिया में शुरू से ही पसंद किया जाता रहा है. खासतौर पर महिलाएं मांगलिक कार्यक्रमों में बनारसी साड़ियां पहनना पसंद करती हैं. यह भी मान्यता है कि सनातन परंपरा के मुताबिक बनारसी साड़ी को पवित्रता का भी सूचक माना जाता है जो शादी और मांगलिक कार्यक्रम में शुभ होता है . बनारसी साड़ी कैसे पड़ा नाम, उत्तर प्रदेश के बनारस, जौनपुर, चंदौली, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में बनारसी साड़ियां बनकर तैयार की जाती हैं. इन साड़ियों को बनाने का कच्चा माल बनारस से आता है. बनारस में बड़ी संख्या में बुनकर इन साड़ियों को बनाकर तैयार करते हैं. आसपास के इलाकों में यहीं से साड़ियों के लिए जरी और रेशम पहुंचता है. इसीलिए इन साड़ियों का नाम बनारसी साड़ी पड़ा है.
कैसे बनती हैं बनारसी साड़ी ?
बनारसी साड़ी के लिए रेशम की साड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें बनारस में बुनाई और जरी के डिजाइन मिलाकर बुना जाता है. इस साड़ी में पहले सोने की जरी का इस्तेमाल किया जाता था. हाथ से एक साड़ी को बनाने में 3 कारीगरों की मेहनत लगती है. तब जाकर एक सुंदर बनारसी साड़ी तैयार होती है. बनारसी साड़ी में कई तरह के नमूने जिन्हें 'मोटिफ' कहते हैं इनका इस्तेमाल होता है. जो प्रमुख मोटिफ हैं वो बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल और जंगला, झालर हैं जो आज भी बनारसी साड़ी की पहचान हैं.
मुगलों के समय से प्रचलन में
बनारसी साड़ी की ये वस्त्र कला भारत में मुगलों के समय उनके साथ आई. इरान, इराक, बुखारा शरीफ से आए कारीगर इस डिजाइन को बुनते थे. मुगल पटका, शेरवानी, पगड़ी, साफा, दुपट्टे, बैड-शीट, और मसन्द पर इस कला का उपयोग करते थे, लेकिन भारत में साड़ी पहनने का चलन था. इसलिए धीरे-धीरे हथकरघा के कारीगरों ने इस डिजाइन को साड़ियों में उतार दिया. इसमें रेशम और जरी के धागों का इस्तेमाल किया जाता है.
Source : News Nation Bureau