कुछ साल पहले तक बड़े बुजुर्गों और डॉक्टरों के मन में जो डर था आज वह सही साबित हो रहा है. लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका स्मार्ट फोन (Smart Phone) अब उन्हें नशेड़ी बनाने लगा है. लोगों को मानसिक रूप से बीमार बना रही मोबाइल की लत से निजात के लिए अब मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र शुरू होने लगे हैं. बरेली से रांची तक इसकी पहल शुरू हो चुकी है. इससे पहले तक शराब, सिगरेट और बुरी तरह एडिक्ट लोगों का इलाज नशा मुक्ति केंद्रों में होता था.
दरअसल फोन में आठ से दस घंटे का समय देना और बार बार वीडियो देखना, सोशल मीडिया के पोस्ट को बार बार देखना, कमेंट और लाइक का इंतजार करना जैसे लक्षण अगर आप के अंदर है तो यकीन मानिए आपको मोबाइल की लत लग चुकी है. आलम ये है कि अब उत्तर प्रदेश के बरेली, झारखंड के रांची और जमशेदपुर में मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र खुलने जा रहा है. इन केंद्रों में काउंसलिंग कर मोबाइल की लत को छुड़ाने का काम किया जाएगा.
जमशेदपुर व रांची सदर में माइंड सेंटर
झारखंड के जमशेदपुर व रांची में मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए माइंड सेंटर खुलने जा रहा है. इसमें नशे की गंभीरता के आधार पर अलग-अलग विशेषज्ञ जांच करेंगे. मनोवैज्ञानिकों की टीम काउंसिलिंग करेगी. खास मामलों में बच्चों के मां-बाप व परिवार के दूसरे लोगों की भी काउंसलिंग की जाएगी. केंद्र में इलाज के लिए अलग से कोई फीस नहीं ली जाएगी. सिर्फ पर्चे पर ही ओपीडी में चेकअप व काउंसलिंग होगी. दवाएं भी मुफ्त मिलेंगी, केंद्र के लिए एक मोबाइल नंबर भी जारी किया जाएगा.
प्रयागराज में पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम
प्रयागराज में शुरू हो रहे मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र में पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम हफ्ते में तीन दिन ओपीडी करेगी. मोबाइल के नशे की गिरफ्त में बुरी तरह कैद हो चुके लोगों का ख़ास तौर पर बनाए गए माइंड चैंबर यानी मन कक्ष में इलाज किया जाएगा. लोगों की काउंसलिंग की जाएगी तो साथ ही उन्हें उनकी बीमारी के हिसाब से दवाएं भी दी जाएंगी. पांच स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की टीम के अलावा आंख, दिमाग और जनरल फिजिशियन से अलग से चेकअप कराया जाएगा. मोबाइल के नशे की लत तीन चरणों में धीरे धीरे छुड़ाई जाएगी.
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ये लक्षण दिखें तो समझ लीजिए आपको भी है मोबाइल की लत
दिन में 8 से 12 घंटे तक मोबाइल का इस्तेमाल करना, देर रात तक मोबाइल लेकर बैठे रहना, बिना वजह फेसबुक, व्हाट्सएप पर एक्टिव रहना, खाली समय मिलते ही मोबाइल में व्यस्त हो जाना, हर 10 मिनट बाद मोबाइल की स्क्रीन देखना, आठ से दस घंटे सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना, बार बार फोटो पर कमेंट और लाइक देखना जैसे लक्षण अगर आपमे भी है तो आपको भी इलाज की जरूरत है.
स्मार्टफोन की लत का नाम है नोमोफोबिया
स्मार्टफोन की लत का भी एक नाम है. इसे नोमोफोबिया कहते हैं. यह इस बात का फोबिया (डर) है कि कहीं आपका फोन खो न जाए या आपको उसके बिना न रहना पड़े. इससे पीड़ित व्यक्ति को नोमोफोब कहा जाता है.
आंकड़े डरावने हैं
- 84 फीसदी स्मार्टफोन यूजर्स ने दुनियाभर में हुए एक सर्वे में माना कि वे एक दिन भी अपने फोन के बिना नहीं रह सकते हैं.
- अमेरिका की विजन काउंसिल के सर्वे में पाया गया कि 70 फीसदी लोग मोबाइल स्क्रीन को देखते समय आंखें सिकोड़ते हैं. यह कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम बीमारी में बदल सकता है जिसमें पीड़ित को आंखें सूखने और धुंधला दिखने की शिकायत होती है.
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- युनाइटेड कायरोप्रेक्टिक एसोसिएशन के मुताबिक लगातार फोन का इस्तेमाल करने पर कंधे और गर्दन झुकी रहती है, जिससे शरीर को पूरी या गहरी सांस लेने में परेशानी होती है. इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है.
- 75 फीसदी लोग अपने सेलफोन्स को बाथरूम में ले जाते हैं, जिससे हर 6 में से 1 फोन पर ई-कोलाई बैक्टीरिया के पाए जाने की आशंका बढ़ जाती है. इस बैक्टीरिया से डायरिया व किडनी फेल होने की आशंका हो सकती है.
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- 12 प्रतिशत लोगों ने एक सर्वे में माना कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल उनके निजी रिश्तों पर सीधा असर डालता है.
- 41 फीसदी लोग, किसी के सामने मूर्ख ना लगें, इससे बचने के लिए मोबाइल में उलझे होने की नौटंकी करते हैं. इससे उनका आत्मविश्वास घटता है.
- 45 फीसदी स्मार्टफोन यूजर्स ने माना कि फोन खो जाने पर उन्हें घबराहट या चिंता सताती रहती है.
ये होती हैं दिक्कतें
लगातार झुककर मोबाइल देखने से गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है. यहां तक कि इसे भी ‘टेक्स्ट नेक’ का नाम दे दिया गया है. यह परेशानी लगातार टेक्स्ट मैसेज और वेब ब्राउजिंग करने वालों में ज्यादा देखी गई है.