Independence Day 2024: फिर याद आए देश के वो लाल, जिन्होंने हसंते-हंसते बहाया देश के लिए खून

15 अगस्त 2024 को देश 78वां स्वतंत्रा दिवस मनाएंगा. यह दिन पूरे देश के लिए काफी खास दिन है. इस दिन हर किसी में उत्साह और उमंग होता है. वहीं देश के लिए काफी ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी है.

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Nidhi Sharma
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Independence Day 2024

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15 अगस्त के दिन पूरे भारत को ब्रिटिश के चंगुल से आजादी मिली थी और भारत ने नई शुरुआत की थी. करीब 100 साल तक लड़ाई लड़ने के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी. इस लड़ाई में करोड़ों देशवासी अपनी आजादी के लिए लड़े थे. कई लोगों ने देश के लिए हंसते- हंसते कुर्बानी दे दी थी. लोगों ने ना जानें कितनी तकलीफें झेलीं, लेकिन देश को कभी भी अंग्रेजों के आगे झुकने नहीं दिया. वहीं 20 से 25 साल की उम्र ऐसी होती है, जिसमें लोग अपने घर बसाते है. अपना परिवार बसाते है, लेकिन उस उम्र में हमारे फ्रीडम फाइटर्स ने अपनी हंसते- हंसते जान दे दी.  आज हम आपको उन्ही फ्रीडम फाइर्टस के बारे में बताएंगे. 

चंद्रशेखर आजाद 

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर के भाबरा में हुआ था. इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था. लोग इन्हें आजाद कहकर भी बुलाते थे. 14 साल की उम्र में मध्य प्रदेश से आजाद बनारस आ गए. यहां उन्होंने  एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की. यहीं पर उन्होंने कानून भंग आंदोलन में हिस्सा लिया था. 

1920-21 में आजाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े और फिर बाद में क्रांतिकारी फैसले खुद से लिए  1926 में काकोरी ट्रेन कांड, फिर वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास, 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की. 

आजाद ने ही हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन भी किया था. जब वे जेल गए थे वहां पर उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका रहने का स्थान बताया था. 27 फरवरी 1931 को वह प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में अपने क्रांतिकारी साथी से बातें कर रहे थे. इसी दौरान सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर जीप से आ पहुंचा. जिसके बाद चारों तरफ से आजाद को घेर लिया गया था. तब आजाद ने गोली चलाई. इसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए थे. जब आजाद के पास सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद से मौत को गले लगाना ठीक समझा. आजाद ने खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए. जब वह शहीद हुए तब उनकी उम्र 25 साल थी.

मंगल पांडे 

मंगल पांडे उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा गांव में हुआ था. साल 1849 में वह सिर्फ 22 साल के ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे. वह पश्चिम बंगाल के बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सैनिक थे. जहां गाय और सुअर की चर्बी वाली राइफल की कारतूसों का इस्तेमाल शुरू किया गया था. 9 फरवरी 1857 को मंगल पांडे ने इन कारतूस के इस्तेमाल से इनकार कर दिया. 

इसके बाद ये बात अंग्रेजो को पसंद नहीं आई.  29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन मंगल पांडे का राइफल छीनने की कोशिश की और मंगल पांडे ने उन्हें मार डाला. वहीं मंगल पांडे ने अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला था. यहीं से मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी. 8 अप्रैल 1857 को 30 साल के मंगल पांडे को फांसी दे दी गई.

भगत सिंह 

भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ गए थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की जिंदगी पर काफी असर डाला था.  जिसके बाद उन्होंने पड़ाई छोड़ कर नौजवान भारत सभआ शुरू की और आजादी की लड़ाई में कूद गए. 

1922 में चौरी चौरा कांड में महात्मा गांधी का साथ न मिलने के बाद वे चंद्रशेखर आजाद के गदर दल में शामिल हुए. काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को आजीवन कारावास होने के बाद भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 1928 में लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे जेपी सांडर्स को मार डाला. जिसके बाद उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर नई दिल्ली में सेंट्रल एसेंबली की सभा में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी के नारे लगाए. जिसके बाद उन पर लाहौर षड़यंत्र का मुकदमा चला और 23 मार्च , 1931 की रात उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.

सुखदेव 

सुखदेव लाला लाजपत राय से काफ ज्यादा प्रभावित थे. उनके साथ से ही वो चंद्रशेखर आजाद की टीम में शामिल हुए थे. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स को मारने वाले क्रांतिकारियों में शामिल हुए. सुखदेव ने राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे व्यवहार के खिलाफ आंदोलन चलाया. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु के साथ उन्हें भी फांसी दे दी गई. तब उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी.

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राजगुरु 

राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था. बनारस आकर वो चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की हत्या में शामिल हुए. असेंबली में बम ब्लास्ट करने में भगत सिंह के साथ राजगुरु भी शामिल हुए और 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में उन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई. 

 

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