बच्चा रो रहा है... हाथ में मोबाइल दे दो! अगर यही ख्याल आपके भी है तो सावधान, क्योंकि आपका बच्चा खतरे में है. जी हां... दरअसल आजकल के पैरेंट्स, बच्चों को रोता देख, या फिर उनकी जिद की वजह से मजबूर होकर उन्हें शांत कराने के लिए मोबाइल थमा देते हैं. इससे बच्चे शांत तो हो जाते हैं, लेकिन उनके दिमाग पर काफी गहरा असर पड़ता है. ये ट्रेंड इतना आम है कि आज के दौर के तमाम बच्चे इसी का शिकार हैं, जिसके कसूरवार हैं सिर्फ और सिर्फ उनके पैरेंट्स, ऐसे में सवाल है कि आखिर किया क्या जाए?
समझिए, बच्चों के मोबाइल या फिर किसी तरह का अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट चलाने का बुरा असर, सबसे पहले उनके दिमाग पर पड़ता है. इस वजह से उनका मानसिक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है. फिर घंटे दर घंटे बढ़ता उनका स्क्रीन टाइम धीरे-धीरे उनमें वर्चुअल आटिज्म का खतरा बढ़ाता है, जिसे समय रहते नियंत्रित करना बेहद जरूरी है. एक हालिया रिपोर्ट्स की मानें तो हर दिन बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों के भविष्य के लिए खतरा है.
क्या है वर्चुअल ऑटिज्म
जब बूच्चा चार या पांच साल का होता है, तबसे ही उसमें वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण साफ दिखने लगते हैं. मोबाइल फोन, टीवी, कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों को बोलने में परेशानी होती है, वहीं किसी अन्य से बातचीत में भी दिक्कत पेश आती है.
कैसे करें बचाव
अच्छी खबर ये है कि इससे बच्चों को बचाया जा सकता है. दरअसल इस तरह की परेशानियों से बच्चों को बचाने के लिए उनका स्क्रीन टाइम कम करना और स्लीप पैटर्न में सुधार करना जरूरी है. साथ ही उन्हें फोन और टीवी से दूर भी रखना होगा. इसके अलावा खुद पैरेंट्स को भी सुधरना होगा, क्योंकि अपने बच्चों के सामने मोबाइल फोन से दूरी बनानी होगी और बच्चों के साथ स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में भाग लेना होगा.
Source : News Nation Bureau