होली सदियों से मनाए जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है. रंगों का यह त्योहार भारत समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है. यह हिंदू धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक है. इस मौके पर लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं. इस दिन लोग एक दूसरे की बीच बनी दूरिया और मनमुटाव को खत्म कर रंग-गुलाल भी लगाते हैं. वैसे तो रंगों का त्योहार बसंत ऋतु के आगम के साथ ही शुरू हो जाता है. बसंतपंचमी से ही लोग अबीर-गुलाल उड़ाने लगते हैं, लेकिन फाल्गुन मास के बसंत पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन रंगों का उत्सव मनाया जाता है.
रंगों का यह त्योहार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पंचमी तक रहता है. इसलिए पांचवें दिन को रंग पंचमी कहते हैं. इस साल होली का त्योहार 8 मार्च यानी बुधवार को है. वहीं, छोटी होली 7 मार्च को मनाई जा रही है. ऐसे में चलिए जानते हैं होली का पौराणिक महत्व और रंगपंचमी से जुड़ी खास बातें.. होली के दिन लोग आपसी विवाद और लड़ाई को छोड़कर एक दूसरे पर सूखा और गीला रंग डालते हैं और कहते हैं बुरा ना मानो होली है... इस दिन लोग पानी से भरे गुब्बारों और वाटर गन से भी रंग खेलते हैं और होली पर बनने वाली गुजिया और भांग जैसे व्यंजनों का आनंद उठाते हैं.
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होली का क्या है इतिहास
होली मनाने का मकसद बुराई पर अच्छाई की जीत या असत्य पर सत्य का विजय है. होली की शुरुआत होलिका दहन से होती है. फाल्गुन महीने के बसंत पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष के परिवा यानी पहला दिन होली का त्योहार मनाया जाता है. होली मनाने से पहले लोग 'होलिका' की पूजा करते हैं. महिला और पुरुष अलाव के चारों ओर पूजा अनुष्ठान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि असुरों के राजा हिरण्यकशिपु चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा करें, उसके मुताबिक, सृष्टि चले, लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद ही उसकी पूजा का विरोध करता था. वह अपने पिता के फैसले से संतुष्ट नहीं रहता था. प्रह्लाद बचपन से ही धार्मिक प्रवृति का था. वह भगवान विष्णु का उपासक था. ज्यादा ध्यान उसका पूजा पाठ में लगता था. इससे हिरण्यकशिपु परेशान रहता था. कई बार उसे पूजा पाठ करने से मना किया, लेकिन प्रह्लाद ने पिता की एक भी बात नहीं सुनी.
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क्या है पौराणिक महत्व
दरअसल, हिरण्यकशिपु जानता था कि उसे मारना किसी के बस की बात नहीं है उसने वरदान प्राप्त किया था कि उसे ना तो कोई इंसान मार सकता है ना कोई जानवर खा सकता है. उसने ब्रह्माजी से यह भी वरदान हासिल किया था कि वह ना घर के अंदर और न बाहर, न दिन में न रात में, न शस्त्र से, अस्त्र से, न पानी में न हवा में, ना जमीन पर ना आसमान पर कोई मार सकता है. वह यह भी जानता था कि जब भी उसकी मौत होगी तो गोदिल बेला यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले की पहर में होगी. एक दिन हिरण्यकशिपु ने बेटे को क्रूर सजा देने का मन बनाया. हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठने को कहा. होलिका अपने बचाव के लिए चादर ओढ़ ली और प्रह्लाद को जलती आग में फेंक दी, लेकिन प्रह्लाद तो ईश्वर भक्त था. भला उसे क्या हो सकता था. अचानक आई तेजी आंधी में होलिका के शरीर से चादर उड़कर प्रह्लाद में जाकर लिपट गई. प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई. इसी बीच भगवान विष्णु नरसिंह अवतार लेकर उसके महल में पहुंचे. इसमें उनके शरीर का आधा हिस्सा इंसान का और ऊपर का भाग शेर का था. उन्होंने गोदिल बेला में हिरण्यकशिपु के पेट को अपने नाखूनों से चीरकर खत्म कर दिया. इसी तरह बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की जीत होली त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हो गई.
कहा खेली जाती है लठमार होली
वहीं, ब्रज में लठमार होली खेलने की भी परंपरा है. होली से एक सप्ताह पहले ही महिला और पुरुष लठमार होली का आनंद उठाने लगते हैं. देश के सिर्फ ब्रज इलाके में ही लठमार होली खेलने की प्रथा है. इसमें महिलाएं पुरुषों पर लाठी-डंडों से हमला करती हुई नजर आती है. हालांकि, ट्रेंड और कुशल लोग ही लठमार होली खेलते हैं. उन
क्यों मनाई जाती है रंग पंचमी?
मान्यता है कि चैत्र महीने में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाने वाली रंग पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा के संग होली खोली थी. इसलिए इसे कृष्ण पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन राधा कृष्ण की पूजा होती है. इसके अलावा रंगपंचमी को श्रीपंचमी और देव पंचमी भी कहा जाता है. इस दिन अबीर गुलाल उड़ाए जाते हैं.
- होली का सदियों पुराना है पौराणिक महत्व
- बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली का त्योहार
- भगवान कृष्ण ने भी खेली थी होली