बस अब और नहीं! दिन-ब-दिन घटती बाघों की आबादी हमारी प्रकृति, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्रों पर बुरा प्रभाव छोड़ रही है. अवैध शिकार, जलवायु परिवर्तन और बाघों के प्राकृतिक आवास को मनुष्यों द्वारा नष्ट किए जाने के चलते ये लगातार विलुप्त होते जा रहे हैं. हालिया रिपोर्ट की मानें तो 20वीं सदी की शुरुआत तक करीब 95 प्रतिशत बाघों की आबादी खत्म हो चुकी थी, जिसका मतलब फिलहाल जंगलों में महज 5 प्रतिशत यानि केवल 3900 बाघ ही मौजूद है. ऐसे में हमें जरूरत है बाघों के संरक्षण के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूक होने की, ताकि समय रहते हम इस विलुप्त होती प्रजाति पर नियंत्रण कर सकें...
इसी के मद्देनजर हर साल 29 जुलाई के दिन अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day 2023) मनाया जाता है, जिसका मकसद बाघों की प्रजाति की सुरक्षा एवं संरक्षण को ध्यान में रखते हुए, बाघों की निरंतर घटती संख्या पर कंट्रोल करना है. ताकि हम एक ऐसे सुनहरे भविष्य की कल्पना करें, जहां मनुष्य के साथ-साथ बाघ भी सुकून से रह सकें. तो आइये आज इस खास दिन के बारे में ज्यादा जानने के लिए, पढ़ें इसका इतिहास और महत्व...
ये है इतिहास...
साल 2010 में बाघों की घटती आबादी से जुड़ी एक रिपोर्ट सामने आई थी. इसमें जिक्र था कि बीती शताब्दी की तुलना में बाघों की तादाद में करीब 97 फीसदी की कमी आई है. यानि साल 2010 तक महज 3,000 बाघ ही विलुप्त होने से बचे थे, लेकिन अभी भी इसमें गिरावट पूरी रफ्तार से जारी थी. ऐसे में इसी के मद्देनजर जरूरत महसूस हुई बाघों के संरक्षण के लिए एक अभियान चलाने की, जिसे ध्यान में रखते हुए साल 2010 में आयोजन हुआ रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में बाघ सम्मेलन का. यहां तय हुआ कि हर साल 29 जुलाई की तारीख को बाघों की घटती आबादी पर नियंत्रण करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाएगा.
ये है उद्देश्य...
इस खास दिन, पूरी दुनिया में बाघों की कम होती संख्या पर नियंत्रण करना. साथ ही उनके आवासों यानि जंगलों की सुरक्षा करना, साथ ही इसका विकास कर दुनिया को बाघों की घटती संख्या के प्रति जागरूक करना ही इसका उद्देश्य है.
Source : News Nation Bureau