आजकल का वक्त भागदौड़ भरा है. जिसके चलते फुर्सत के दो पल भी निकाल पाना बेहद मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जिस चीज पर इस भागादौड़ी का सबसे ज्यादा असर पड़ता है वो है आपसी रिश्ते और संवाद. परिवारों में साथ बैठकर बिताए जाने वाले वक्त में लगातार कटौती हो रही है और इसका सबसे बुरा असर हो रहा है बच्चों पर. उनके पास अपनी बात कहने, अपनी प्रॉब्लम्स बताने या अपनी क्यूरोसिटीज के जवाब पाने के लिए कोई नहीं है. खासकर सिंगल फैमिलीज में जहां माता-पिता दोनों ही वर्किंग हैं. ये सिचुएशन तब और भी ज्यादा बिगड़ जाती है जब बच्चे टीनएज में आते हैं क्योंकि इस ऐज में उनके दिमाग में सवालों का समंदर होता है और उनको समझाने या समझने के लिए फैमिली मेम्बर्स के पास वक्त नहीं होता.
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तब शुरू होता है टकराव दो जेनरेशन के बीच. माता- पिता अपने जनरेशन के नियम और कानून लादकर बच्चे के मैच्योर होने की उम्मीद भी करते हैं और सवाल पूछने पर उसे बच्चा बने रहने की सलाह भी देते हैं. सैंडविच बना बच्चा समझ ही नहीं पाता कि वो क्या करे. ऐसे में उसके मन में असंतोष, गुस्सा, चिड़चिड़ापन जैसी फीलिंग्स पनपने लगती हैं और इससे बात और भी बिगड़ जाती है. अगर आपके घर में भी टीनएजर बच्चे हैं, तो बस इन 5 बातों पर फोकस करें. इससे आपके और आपके बच्चे के बीच का रिश्ता मजबूत रहेगा और उन्हें सही ग्रूमिंग भी मिलेगी.
1. बच्चों के सवाल टालने से बचें
इस उम्र में बच्चों के दिमाग में हजार सवाल चल रहे होते हैं. अगर पहली बार सवाल पूछने पर उसे जवाब में यह सुनने को मिलेगा- कि फ़िजूल सवाल मत किया करो, ये तुम्हारे मतलब की बात नहीं. तो अगली बार से वह आपसे सवाल पूछेगा ही नहीं. इतना ही नहीं, वह उस सवाल का जवाब घर से बाहर ढूंढने की कोशिश करेगा, जहां उसका फायदा उठाने वाले भी मिल सकते हैं. बजाय इसके अगर उसका सवाल आपको अटपटा लगता है या आप उस वक्त उसको जवाब नहीं देना चाहते तो उसे कारण बताते हुए वक्त मांगें और जवाब जरूर दें. उसे यह भी कहें कि वह अपनी समस्याएं और सवाल हमेशा पूछ सकता है.
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2. घर के काम में बच्चों की बढ़ाएं भागीदारी
घर का बजट हो या कोई महत्वपूर्ण निर्णय, प्रयास करें कि इसमें बच्चा भी शामिल हो और महत्वपूर्ण भूमिका निभाए. उसे महीने का बजट बनाने का काम सौंपें या घर का छोटा-मोटा हिसाब रखने की जिम्मेदारी दें. जैसे दूध वाले का हिसाब या इस्त्री के लिए दिए गए कपड़ों का हिसाब. इससे उसे इस बात की समझ आएगी कि माता-पिता घर को कैसे मैनेज करते हैं. यह भावना उसमें जिम्मेदारी पैदा करेगी और उसे फिजूलखर्च करने से भी बचाएगी.
3. बच्चों पर हावी न हों
हर समय बच्चे के सिर पर सवार न रहें न ही पूरे समय उसकी जासूसी करें. इसकी बजाय उसे थोड़ी निजता दें. वह कहाँ जा रहा है यह अगर वह आपको बता कर जाता है तो उसके लौटने का वक्त आप निश्चित कर सकते हैं. आप सतर्क रह सकते हैं, उस पर नजर भी रख सकते हैं लेकिन इस तरह नहीं कि वह बन्धन महसूस करने लगे. अगर आपको लगता है कि उसकी दोस्ती, रूटीन आदि में कहीं सुधार की जरूरत है तो उसे शांति से बैठा कर समझाएं. डांटने-मारने से बचें. महीने में कम से कम एक बार उससे क्या चल रहा है, यह जरूर पूछें. इससे उसे ये फील होगा कि आपको उसकी परवाह है. यह बात उसे आपसे जोड़े रखेगी.
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4. बच्चों के साथ दायरे में रहकर दोस्ती करें
अक्सर लोग कहते हैं कि बड़े होते बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए. यह एक हद तक सही है लेकिन हमेशा याद रखिए कि दोस्त वही अच्छा होता है जो सही-गलत का फर्क बताए. इसलिए दोस्ती करें लेकिन इस दोस्ती में सही लिमिट बनाए रखें. उसे यह ध्यान रहे कि आप दोस्त के साथ साथ पैरेंट भी हैं, तभी वह आपकी रिस्पेक्ट करना सीखेगा. इस दोस्ती में ट्रांसपेरेंसी की बहुत जरूरत है. इसलिए बच्चे के सामने झूठ बोलने, अपशब्द बोलने, गलत व्यवहार करने से बचें. इससे बाहर भी वह ऐसे ही दोस्त चुनेगा जो इस दायरे में फिट बैठते होंगे.
5. बच्चों की बातों पर ध्यान दें
आजकल बच्चे बहुत तेजी से नई तकनीक और साधनों के बारे में सीख जाते हैं. कोशिश करें कि आप भी उससे नया कुछ सीख सकें. इससे उसे अपनी सीखी हुई चीज पर और खुद पर विश्वास होगा और वह आगे सीखने को प्रेरित होगा. साथ ही जब बच्चा कोई बात बता रहा हो तो उसे ध्यान से सुनें. हो सकता है उसकी जानकारी आपके किसी काम आ जाए. बच्चे को इससे यह एश्योरेंस भी मिलेगा कि आप उसकी बात को इम्पोर्टेंस देते हैं.
Source : News Nation Bureau