समाज को सभ्य और स्वच्छ बनाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की होती है. ऐसे में बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना मां-बाप की प्राथमिकता होती है. जो भविष्य में बेहतरह समाज का निर्माण करने के लिए जिम्मेदार हैं. हिंसक होते बच्चे न सिर्फ अपने परिवार को मुसीबत में डाल सकते हैं बल्कि वे समाज के लिए भी खतरा पैदा कर देते हैं. हाल ही में देश के अलग-अलग राज्यों में हुई हिंसा की ऐसी ही कुछ घटनाओं ने एक बार फिर से लोगों को इस ओर सोचने को मजबूर किया है, कि आखिर बच्चों की परवरिश कैसे की जाए. जिससे वो समाज को सभ्य और स्वस्छ रखने की अपनी जिम्मेदारी को पूरी कर सकें.
बीते साल दिल्ली में श्रद्धा हत्याकांड हो या फिर हाल ही में हुई साक्षी की हत्या का मामला हो. दोनों ही घटनाओं में आरोपियों ने बेरहमी से हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया. इस तरह की हृदयविदारक घटना को अंजाम देना किसी मानसिक रोग की ओर इशारा करता है. क्योंकि इन हत्याओं को उन लोगों ने अंजाम दिया जो उनके बेहद करीब रहे लेकिन पीड़ितों द्वारा थोड़ा सा इग्नोर करने पर वो आगबबूला हो गए और उन्होंने अपनी प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया. बच्चों की ऐसी हिंसक मासिक स्थित का जिम्मेदार कहीं कहीं उनका परिवार और उनकी परवरिश जिम्मेदार होती है. इसी मामले में मानस्थली की संस्थापक-निदेशक एवं वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर का कहना है कि बच्चे के जीवन में माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वह उन्हें जीवन मूल्यों की शिक्षा देने के अलावा समस्याओं से लड़ना और उन्हें समझदारी से हल करना भी सिखाते हैं. इसके साथ बच्चे माता-पिता से ही रिश्तों को निभाना भी सीखते हैं. रिश्तों में अस्वीकृति, नफरत या टकराव सभी को अंदर से परेशान करते हैं, लेकिन माता-पिता को अपने बच्चों को संघर्षों से आगे बढ़ना सिखाना चाहिए. आज हम आपको ऐसे ही कुछ जरूरी टिप्स देने जा रहे हैं जो आपके बच्चे को हिंसक होने से बचाएंगे.
बच्चे को भावनात्मक रूप से बनाएं मजबूत
हर इंसान भावनाओं के अधीन होकर काम करता है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपने बच्चे को भावनात्मक यानी इमोशनली स्ट्रोंग बनाएं. बच्चे को समझाएं कि वह भावनाओं को कैसे पहचान और समझ सकता है. इसे स्वस्थ तरीके से कैसे दूर किया जा सकता है. इसमें उनकी मदद करें, जैसे कि उनकी भावनाओं को व्यक्त करना, समस्याओं को सुलझाना और जरूरत पड़ने पर मदद या समर्थन मांगने पीछे न हटें.
बच्चों को आत्मसम्मान की दें सीख
आत्मसम्मान हर किसी की प्राथमिकता होती है, लेकिन सकारात्मक आत्मसम्मान को बढ़ावा देना जरूरी है. अपने बच्चों को विकसित होने में मदद करें और उनकी क्षमताओं पर विश्वास रखें. बच्चों को उन चीजों का पीछा करने के लिए प्रोत्साहित करें जिनमें उनकी रुचि है, उन्हें लक्ष्य निर्धारित करने और उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाने में मदद करें. साथ ही उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाएं, जिससे वे मुसीबत से निपटना सीखें. उन्हें सिखाएं कि वे अपनी आलोचना या अस्वीकृति को दिल पर ना लें और आलोचना होने पर भी सकारात्मक रहें.
निर्धारित करें व्यक्तिगर सीमाएं
अपने बच्चे को व्यक्तिगत सीमाओं के बारे में समझाएं और सिखाएं कि दूसरों की सीमाओं का सम्मान करना भी महत्वपूर्ण है. उन्हें अपनी सीमाएं तय करने के बारे में सिखाएं. सीमाएं तय करना बहुत जरूरी है, इससे बच्चों को रिश्तों को पहचाने, साथ ही ज्यादती होने पर उनके खिलाफ आवाज उठाने में मदद मिलेगी.
खुले संचार को बढ़ावा दें
घर में ऐसा माहौल बनाएं जिसमें बच्चा अपने विचारों, समस्याओं और अनुभवों को बिना किसी डर और झिझक के आपके साथ साझा करे. इसके अलावा बच्चों को दोस्ती, परिवार और रोमांटिक रिश्तों के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित करें. उन्हें मुखर होकर बोलना और दूसरों की बात सुनना सिखाएं.
एक स्वस्थ रिश्ते की मिसाल बनें
हर बच्चा अपने माता-पिता से प्रभावित होता है. इसीलिए जैसा व्यवहार आप करेंगे, बच्चा भी वैसा ही सीखेगा. इसलिए रिश्तों की अहमियत और खुद के व्यवहार को इस तरह रखें जो आपके बच्चे के लिए मिसाल बन जाए. इसके अलाा आप अपने साथी, परिवार और दोस्तों के साथ एक स्वस्थ रिश्ते का उदाहरण बनें. उन्हें दिखाएं कि संघर्षों को रचनात्मक तरीके से कैसे सुलझाया जा सकता है. साथ ही सहानुभूति और समझ विकसित करने के बारे में भी जानकारी दें.
दिल और दिमाग से मजबूत बनना सिखाएं
बच्चों को बताएं कि असफलता और अस्वीकृति जीवन का हिस्सा हैं. कभी-कभी आपको सफलता मिलेगी और चारों ओर से प्रशंसा मिलेगी. लेकिन कभी-कभी आपको निराशा का सामना करना पड़ेगा. इसीलिए बच्चे को असफलता से भी सीखने के लिए प्रोत्साहित करें. बच्चे को। शांति और समझ के साथ परेशानियों को हल करना सिखाएं.
Source : News Nation Bureau