“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” इस शब्द से भारत में अभी कुछ ही लोग परिचित है लेकिन इस गंभीर समस्या से अधिकतर लोग गुजरे हैं और गुजरते हैं. अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार डिलीवरी के बाद चार में से एक महिला को पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो जाता है, इसे पोस्ट डिलीवरी स्ट्रेस भी कहा जाता है. बच्चे के जन्म के बाद आपके जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन आता है और आपको कई प्रकार के नए अनुभव होते हैं. कई महिलाओं के लिए यह चिंता और अवसाद का कारण भी बन जाता है. नई जिम्मेदारियों के कारण कई मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव आते हैं. ये ज्यादातर डिलीवरी के 2-3 दिन बाद से शुरू होकर 1-2 हफ्ते तक चलते हैं. लेकिन कुछ महिलाओं में यह तनाव, डिप्रेशन का रूप ले लेता है. पोस्टपार्टम डिप्रेशन कोई कमजोरी या पर्सनैलिटी में कोई कमी नहीं है, इसका संबंध सिर्फ एक बच्चे को जन्म देने की जटिलता से है. शुरुआत में तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ज्यादातर लोग बेबी ब्लूज समझ लेते हैं.
"पोस्टपार्टम डिप्रेशन” के लक्षण
स्वयं की उपेक्षा
अपर्याप्त आहार, नींद में कमी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और थायरॉइड हार्मोन के कम स्तर जैसे शारीरिक कारक भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं.
शारीरिक बदलाव
बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हॉर्मोन्स के स्तर में अधिक गिरावट के कारण यह तनाव होते हैं. थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाले हॉर्मोन्स का लेवल भी गिरने से तनाव,, थकान और सुस्ती महसूस होती है. डिलीवरी के बाद स्ट्रेच मार्क्स, बालों का झड़ना, वजन बढ़ना आदि भी महिला में तनाव बढ़ाते हैं.
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भावनात्मक अस्थिरता
गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बीमारी, सामाजिक अलगाव, या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से तनाव संभव है, जिसके कारण भावनात्मक अस्थिरता आ सकती है.
“पोस्टपार्टम डिप्रेशन” के उपाय
लोगों से सलाह लें
अगर आप पहली बार पिता बने हैं तो आपके पास किसी तरह इसका कोई अनुभन नहीं होगा. इसलिए ऐसे लोगों से सलाह करें जो पहले पिता बन चुके हैं. वो आपको कुछ अच्छी सलाह दे सकेंगे. जरूरी नहीं कि आप पिता बनने के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन के शिकार हो जाएंगे या हो गए हों लेकिन अगर आप किसी अनुभवी से बात कर लेंगे तो आपका मन हल्का हो जाएगा.