Triyuginarayan Temple: कहां है उत्तराखंड की धरोहर त्रियुगीनारायण मंदिर, जानें इसका इतिहास

Triyuginarayan Temple: भारत का उत्तराखंड राज्य धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध हैं. यहां के संगम स्थल पर बने इस मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है, और यह धार्मिक और प्राकृतिक विविधता को प्रकट करता है.

Triyuginarayan Temple: भारत का उत्तराखंड राज्य धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध हैं. यहां के संगम स्थल पर बने इस मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है, और यह धार्मिक और प्राकृतिक विविधता को प्रकट करता है.

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Dheeraj Sharma
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Triyuginarayan Temple

Triyuginarayan Temple( Photo Credit : News Nation )

Triyuginarayan Temple: भारत का उत्तराखंड राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है. यहां कई पवित्र मंदिर हैं, जो ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध हैं. उत्तराखंड में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर भी उन्हीं मंदिरों में से एक है, जो यहां के पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है. इस लेख में हम त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे, उसका इतिहास और महत्व. त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड की एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो यहां के लोगों के धार्मिक और आत्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है. यहां के संगम स्थल पर बने इस मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है, और यह धार्मिक और प्राकृतिक विविधता को प्रकट करता है. यहां के पर्यटकों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां वे धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं.

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त्रियुगीनारायण मंदिर का स्थान
त्रियुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है. यह मंदिर रुद्रप्रयाग नगर के पास यमुना और गंगा नदी के संगम पर स्थित है. यहां नदी के संगम को त्रियुग के नाम से जाना जाता है, और इसी के आसपास त्रियुगीनारायण मंदिर है. यहां के ताप्त कुंड में स्नान करने का धार्मिक महत्व है.

मंदिर का इतिहास
त्रियुगीनारायण मंदिर का निर्माण गुरुकुल परंपरा के अनुसार 9वीं शताब्दी में हुआ था. मान्यताओं के अनुसार, यहां के संगम स्थल पर महर्षि पराशर ने तपस्या की थी, और उनके तप के फलस्वरूप यहां एक महात्म्य मंदिर का निर्माण हुआ. मंदिर का नाम त्रियुगीनारायण उन्हीं तीन युगों के प्रतीक हैं जिनमें महात्मा पराशर की तपस्या हुई थी.

मंदिर की स्थापना
त्रियुगीनारायण मंदिर को महर्षि पराशर की तपस्या का स्थान माना जाता है. इसका निर्माण अगस्त महीने के आदिकाल में किया जाता है और त्रियुग के संगम स्थल पर स्थित है. मंदिर के पास ही यमुना, गंगा और सरस्वती नदी का संगम होता है, जो इसे और भी प्राकृतिक और धार्मिक महत्वपूर्ण बनाता है.

मंदिर की विशेषता
त्रियुगीनारायण मंदिर की विशेषता इसकी स्थानिक इमारतों में है. यहां के मंदिर की आर्किटेक्चर को देखकर यह प्रतीत होता है कि यह बहुत ही प्राचीन समय में बनाया गया है. मंदिर के प्रांगण में स्थित यज्ञशाला और यज्ञकुंड इसे और भी प्राचीनता का वातावरण प्रदान करते हैं. मंदिर के अंदर अगरबत्ती के आभास को भी महसूस किया जा सकता है, जो इसे और भी धार्मिक और आत्मिक अनुभूति का संदेश देता है.

मंदिर का धार्मिक महत्व
त्रियुगीनारायण मंदिर का धार्मिक महत्व उत्तराखंड के लोगों के लिए अत्यधिक है. यहां वार्षिक मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु त्रियुगी के संगम स्थल पर आते हैं और वहां त्रियुगी गंगा स्नान करते हैं. मंदिर के पास ही एक प्राचीन गुरुकुल भी है, जो धार्मिक शिक्षा और विद्या केंद्र के रूप में कार्य करता है.

Source : News Nation Bureau

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