Game Addiction: पहले के टाइम में बच्चे बाहर खेलकूद किया करते थे. लेकिन आज के टाइम में बच्चे सिर्फ फोन में घुसे रहते है. बच्चे सारा दिन गेम खेलते रहते है, जिसकी वजह से आंखें तो खराब होती ही है. साथ ही उन्हें तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन दिनों बच्चों को मोबाइल और गेम की आदत हो गई है. पेरेंट्स अपने काम के कारण सारा दिन बिजी रहते है. जिस वजह से उनके पेरेंट्स उन्हें फोन दे देते है. वहीं गेमिंग एडिक्शन एक ड्रग की तरह बच्चों के ब्रेन से खेलने के बाद उनके शरीर से खिलवाड़ करता है.
मेंटल हेल्थ पर असर
गेम में इंसान अपने दिमाग की क्षमता को खराब कर देता है. गेम में रोज नए नए चैलेंज दिए जाते है, जब एक नया चरण खत्म हो जाता है. उसके बाद ही उसे विनर घोषित किया जाएगा. धीरे धीरे ये गेम एडिक्शन का रूप ले लेता है. इससे बच्चे की मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है. वहीं जब कभी हम बच्चे को फोन छोड़ने के लिए कहते है तो उसको फोन के बाहर की दुनिया काफी बोरिंग और अजीब लगती है. जिससे कि वो चिड़चिड़े हो जाते है. वहीं जब उन्हें गेम दिया जाता है, तो वो वैसे ही हो जाते है. वहीं बच्चे जितना ज्यादा गेम खेलते हैं, उन्हें उतना ही एडिक्शन इसका होता चला जाता है.
गेम एडिक्शन को ऐसे करें दूर
अपने बच्चे को रियल लाइफ में ऐसे चैलेंज दें. जिससे वो खुद को व्यस्त रखें और गेमिंग पर ध्यान ना दें. वे असल जीवन की चुनौतियों को समझेंगे और उन्हें हैंडल करना सीखेंगे.
बच्चे जिस भी एप पर गेम खेलता है, उसे ओटीपी या पासवर्ड से कंट्रोल करें, जिसे बच्चा आसानी से न खोल पाए.
अधिकतम एक से दो घंटे की गेम लिमिट तय करें और इसमें किसी भी प्रकार का संशोधन बर्दाश्त न करने का सख्त नियम बनाएं.
गेम खेलने की एज लिमिट खुद समझें और तभी डाउनलोड करने की परमिशन दें.
न्यूडिटी, ब्लडशेड, हिंसक और आक्रामक गेम्स कतई न खेलने दें.
बच्चे को आउटडोर गेम्स, सनलाइट एक्सपोजर और एक्सरसाइज के लिए प्रेरित करें, जिनसे वो स्वस्थ और मजबूत बनें और इतना व्यस्त रहें कि गेम खेलने की उन्हें फुरसत ही न मिले.