Bhopal Gas Tragedy: भोपाल शहर में उस रात कड़ाके की ठंड थी. लोग सर्दी के मौसम में चैन की नींद सोए हुए थे. मगर उन्हें क्या पता था कि यह उनकी आखिरी रात होगी. वे दिन का सूरज नहीं देख पाएंगे. 2-3 दिसंबर 1984 को भयानक रात बनकर सामने आई. इसे आज भी याद कर हर कोई सिहर उठता है. आखें नम हो जाती हैं. इसकी वजह है कि उस रात भोपाल शहर के हजारों बेगुनाह लोग इस दिन दुनिया को छोड़कर चले गए. इस दुर्घटना ने पूरी दुनिया को परेशान कर दिया था. यह औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना मानी जाती है. भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की आज 3 दिसंबर 2024 को 40 वीं बर्सी है.
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भोपाल में गैस लीक होने की भयावह घटना को 40 साल पूरे हो चुके हैं. 2-3 दिसंबर, 1984 की रात अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की भोपाल में मौजूद फैक्ट्री में मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की गैस लीक होने से हजारों लोग मौत मुंह में समा गए. सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस भीषण हादसे में 5,295 लोगों की मौत हो गई. वहीं गैस पीड़ित संगठनों के अनुसार इस दुर्घटना में 22 हजार से अधिक लोगों की मारे गए. जहरीली गैस से 5 लाख 74 हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए.
चारों तरफ बिखरी लाशें
गैस त्रासदी के पीड़ितों को 3 दिसंबर की सुबह जब गैस का असर कम हुआ था,तब सड़कों पर हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं. इंसान का पता नहीं था. इस घातक गैस की वजह से कई जानवरों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी. अस्पतालों में लोगों में जगह मिलना कठिन हो रहा था. चारों तरफ भगदड़ का माहौल देखा गया. उस दिन जब लोग काफी गहरी नींद थे, तब पूरे शहर को गैस ने श्मशान बना दिया. शहर में मौत ने अपने पैर पसार लिए थे. इस तरह का भयावह मंजर हजारों जिंदगियों को खत्म कर गया. वहीं लाखों को घायल किया.
आज भी निशान छूटे
गैस पीड़ित संगठन की रचना ढिंगरा का कहना है कि हादसे में 40 साल बाद भी मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लोगों की जिंदगियों पर असर डाल रही है. गैस पीड़ितों को आज भी इसका असर दिखता है. दूसरी और तीसरी पीढ़ी में भी जन्म से विकृति दिखाई देती है. आपको बता दें कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के कारण यहां पर प्रदूषण अपने चरम पर है. इसकी वजह से 42 बस्तियों का पानी प्रभावित हो रहा है. यह जन्मजात विकृतियां पैदा कर रहा है. इस तरह का रसायन कैंसर, गुर्दे के साथ दिमागी बीमारियों की वजह बन रहा है.