बिहार के समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड में सांपों का मेला एक अनोखा और रोचक आयोजन है. यह मेला हर साल आयोजित होता है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बन जाता है. ये मेला सांपों के प्रति स्थानीय समुदाय की श्रद्धा और उनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है.
क्या है सांपों के मेला का इतिहास?
सांपों का मेला का इतिहास सदियों पुराना है. स्थानीय मान्यता के अनुसार,ये मिथिला में काफी प्रसद्धि मेला है. इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और ये पंरपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है.स्थानीय लोगों को मुतबाकि, गहवरों में बिषहरा की पूजा की जाती है. यहां महिलाएं अपने वंश वृद्धि की कामना को लेकर भी आती हैं. मन्नत पुरी होने पर नाग पंचमी के दिन गहवर में झाप और प्रसाद का भोग लगाती हैं. इन सांपों की पूजा के बाद फिर जंगल में छोड़ दिया जाता है.
सांपों की होती है पूजा
मेले का मुख्य आकर्षण सांपों की पूजा है. लोग सांपों को दूध, फूल, और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करते हैं. यह माना जाता है कि इस पूजा से सुख, समृद्धि और सुरक्षा मिलती है. मेले में विभिन्न प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया जाता है. विशेषज्ञ सर्प-प्रदर्शक सांपों को नियंत्रित और प्रस्तुत करते हैं, जिससे लोग सांपों के व्यवहार और उनकी विशेषताओं को निकट से देखते हैं.
मेले से बढ़ती हैं रोजगार
सांपों का मेला केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय के लिए एक सामाजिक और आर्थिक गतिविधि भी है. इस मेले से स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों को रोजगार मिलता है और उन्हें अपनी उत्पादों को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है. इसके अलावा, यह मेला पर्यटकों को भी आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलता है.
समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड में सांपों का मेला एक अनूठी और आकर्षक परंपरा है. यह मेला सांपों के प्रति लोगों की श्रद्धा और उनके धार्मिक महत्व को प्रदर्शित करता है. इस मेले के माध्यम से स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण होता है और यह मेले स्थानीय समुदाय की आर्थिक समृद्धि में भी योगदान देता है.