Story of Struggle: एकाग्र मन, कड़ी मेहनत और सच्ची लगन से कोई मंजिल मुश्किल नहीं. यही कर दिखाया है बिहार के दानापुर निवासी अनिल सिंह ने. दानापुर निवासी अनिल ने आयुर्वेद के क्षेत्र में ऐसा परचम लहराया है कि हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है. यही नहीं उन्होने राजस्थान जयपुर में करोड़ों का करोड़ों का आयुर्वेद का साम्राज्य भी खड़ा कर दिया है..वर्तमान में आयुर्वेद का नाम यदि कहीं आता है तो उनके द्वारा बनाई गई कंपनी 'नारायण औषधि' का नाम सबसे पहले जहन में आता है. आइये जानते हैं इस शख्स ने किस तरह अपने जिद को करियर में बदल डाला...
यह भी पढ़ें : करोड़ों लोगों की समस्या का हुआ समाधान, खाते में जमा होंगे 4000 रुपए! खुशी हुई दोगुनी
बचपन में देखा था सपना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनिल सिंह का जन्म 10 जुलाई 1974 को बिहार के दानापुर में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता धीरज नारायण सिंह आर्मी में डॉक्टर थे. अनिल को बचपन से ही दवाइयों से लगाव था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा केंद्रीय विद्यालय, दानापुर कैंट से पूरी की और फिर बी.ए. की डिग्री दानापुर बी.एस. कॉलेज से हांसिल की.. हालांकि, पढ़ाई के साथ-साथ उनका मन हमेशा कुछ नया करने, कुछ अलग करने में लगा रहता था. इसलिए ही महज 9वीं कक्षा में ही उन्होंने बिहार रेजिमेंट सेंटर के कोच बी.डी. सिंह के मार्गदर्शन में अपना पहला व्यापार शुरू कर दिया था.
खेल से बना व्यापारी
अनिल सिंह न सिर्फ व्यापार में, बल्कि खेल के मैदान में भी अव्वल थे , राष्ट्रीय स्तर में कई बार भाग लिये और सम्मानित किए जा चुके हैं. अनिल सिंह के बिहार के एथलीट रहे है जो नेशनल एथलीट 200 मीटर दौड़ के प्रतिभागी थे. 1993 में उन्होंने बिहार सरकार द्वारा आयोजित कई खेलों में हिस्सा लिया और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित भी हुए. लेकिन उनकी असली पहचान उन्हें व्यापार की दुनिया में ही मिलनी थी.
जिंदगी में कई उतार चढ़ाव
बताया गया कि अनिल सिंह की जिंदगी हमेशा आसान नहीं रही. उन्होंने कई तरह के व्यापार किए, लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लगी. फिर पैतृक व्यवसाय में उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों की खेती-किसानी में भी हाथ आजमाया, जिसे आज भी कर रहे है , अश्वगंधा, सतवारी, जीरा, सफ़ेद मूसली , एलोविरा सहित तमाम औषधियाओं की खेती कर रहे है.
आयुर्वेद से हुआ गहरा नाता
इन्हीं मुश्किल दिनों में अनिल सिंह का रुझान आयुर्वेद की ओर हुआ. उनके दादा और परदादा भी आयुर्वेदिक औषधियों के किसान थे, जिससे उन्हें इस क्षेत्र में गहरी रुचि पैदा हुई. उन्होंने 25 साल पहले विभिन्न जड़ी-बूटियों की खेती शुरू की, जिसमें एलोवेरा, शतावरी, अश्वगंधा, शार्पगंधा, सफेद मूसली और मुलेठी जैसी महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियां शामिल थीं...