Condom History: कंडोम आज के समय के हिसाब से बहुत आम बात हैं. आज हर कोई आसानी से सस्ते दाम पर खरीद सकता है. लेकिन आपको पता है भारत में इसका इतिहास और इसका नाम कैसे पड़ा. क्या है इसके पीछे की कहानी और कैसे ये भारत में आम लोगों तक पहुंची. आज हम आपको इस बात की ही जानकारी देंगे. हालांकि शुरुआत में इसका नाम कामराज रखने का फैसला हुआ था लेकिन कुछ कारण की वजह से बाद में इसे निरोध नाम दिया गया. शुरुआत में लोगों तक पहुंचा जरूरी था क्योंकि इसके बिना फैमली प्लानिंग कार्यक्रम को सफल नहीं बनाया जा सकता है.
इसका नाम कामराज होता
हम बात कर रहे हैं साल 1940 की उस समय भारत में निरोध तक पहुंच कुछ अमीर लोगों तक ही था. भारत दुनिया में शुरुआती देशों में रहा है जहां फैमली प्लानिंग पूरे देश में लागू किया गया था. हालांकि सरकार के लिए आम जनता तक पहुंचना एक चुनौती भरा कदम था. दरअसल शुरुआत में निरोध का नाम कामराज रखने की बात हुई थी. इस नाम का सुझाव इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की ओर से दिया गया था. इंस्टीट्यूट ने तर्क दिया कि भारत में यौन के भगवान कामदेव को माना जाता है और कामदेव का दूसरा नाम कामराज है. देखा जाए तो ये नाम सबसे सटीक था. लेकिन सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
के. कामराज बने वजह
कंडोम ब्रांड का नाम कामराज न रखने के पीछे की वजह थी तत्कालीन सत्तापक्ष कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष. जिनका नाम के. कामराज था. वो पार्टी के बड़े और मजबूत नेता माने जाते थे. वो 1954 से लेकर 1963 के बीच दो बार तामिलनाडु के सीएम रह चुके थे. इसके अलावा वो गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे और इसका प्रमाण इसी से मिलता है कि इंदिरा गांधी को पीएम बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
विदेश से 400 करोड़ कंडोम आयात
1940 में प्राइवेट कंपनियों से कंडोम खरीदना और लोगों को देना सरकार के लिए महंगे का सौदा था. सरकार को आईआईएम की टीम ने सुझाव दिया है कि इसका दाम कम करने के लिए विदेश से आयात कर लिया जाए. बाद में सरकार ने जापान, अमेरिका और साउथ कोरिया से 400 करोड़ कंडोम आयात किया. इसके बावजूद सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था. केंद्र सरकार ने इसका भी उपाय खोज निकाला और 1960 के दशक में पहली बार केरल में स्वदेशी निर्मित कंडोम तैयार हुआ. इसे बनाने का खर्च प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले काफी कम था. इसकी कीमत मात्र 15 पैसा थी.
Source : News Nation Bureau