पाकिस्तान के हैदराबाद के फली इलाके की गफूर शाह कॉलोनी में लड़के-लड़कियां कंधे पर बैग लेकर मंदिर की ओर चलते दिखाई दे रहे हैं. हालांकि मंदिर पूजा का स्थान है, लेकिन पाकिस्तान की सोनारी बागरी ने इस मंदिर को एक स्कूल में बदल दिया है. सोनारी बागरी अपने परिवार में पहली और कबीले की उन कुछ महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की है. अब उन्होंने खुद नए जोश और उत्साह के साथ बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित कर दिया है. सोनारी सिंध की बागड़ी जनजाति से हैं, जहां शिक्षा को लेकर ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती. महिलाओं सहित इस जनजाति के अधिकांश लोग खेती या अंशकालिक व्यवसाय में लगे हुए हैं.
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बागरी शब्द का प्रयोग राजस्थान के बीकानेर में किया जाता है
बागरी शब्द का प्रयोग भारतीय राज्य राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में रहने वाले हिंदू राजपूतों के लिए किया जाता है. खानाबदोश जनजाति बागरी है. बागरी एक खानाबदोश जनजाति है. इस जनजाति ने काठियावाड़ और मारवाड़ से सिंध में प्रवेश किया था. बागरी शब्द का प्रयोग भारतीय राज्य राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक हिंदू राजपूत के लिए किया जाता है. गुरदासपुर के बागड़ी सुलेरिया हैं, जो अपने कबीले को बगड़िया या भगड़ कहते हैं. यह जनजाति उन राजपूतों में से एक है जो अलाउद्दीन गोरी के काल में दिल्ली से चले गए थे. आज भी इस कबीले की मुखिया एक पुरुष के बजाय एक महिला है, जो घर के सभी मामलों को देखती हैं. जनजाति के अधिकांश पुरुष और महिलाएं एक साथ काम करते हैं या मजदूरी करते हैं. बागड़ी मूल रूप से खानाबदोश हैं, लेकिन कुछ दशकों से स्थायी रूप से बस्ती में बस गए हैं. भारतीय और पाकिस्तानी समाजों में बागड़ी को अभी भी अनुसूचित जाति या निम्न जाति माना जाता है. इस वजह से वह नफरत का भी शिकार हुआ है. दलित बनकर इस समाज के सभी कष्टों को सहना उनके लिए कठिन हो गया है. अगर आप किसी को बुरा या नीचा बताकर उसका उपहास करना चाहते हैं तो उसे बागड़ी कहते हैं, लेकिन आज तमाम नफरत और तिरस्कार के बावजूद यह जनजाति अपनी राह खुद बना रही है और नए-नए तरीके अपनाकर समाज के विकास और निर्माण में अपनी भूमिका निभा रही है.
चौथी कक्षा में ही पढ़ाने को लेकर सोचा
सोनारी को अपने कबीले के बच्चों को शिक्षित करने का विचार तब आया जब वह चौथी कक्षा में थीं. उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई हैदराबाद के हुसैनाबाद इलाके के हाई स्कूल से की. साल 2004 में शादी के बाद वह फली नहर की कॉलोनी में आ गई. शादी के बाद वह घर का खर्च चलाने के लिए पति के साथ काम करती थी. उसने कपास उठाया, गेहूं की कटाई की, और मिर्च की भी खेती की, लेकिन बचपन में देखा सपना सोनारी के दिल में जिंदा था इसलिए उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया, लेकिन उनके पास ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां बच्चों के लिए स्कूल खोले जा सकें और न ही संसाधन उपलब्ध थे. सोनारी ने सबसे पहले ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, लेकिन फिर उसने सोचा कि क्यों न अपने शहर के मंदिर को स्कूल में तब्दील कर दिया जाए. अपने परिवार के बुजुर्गों से सलाह मशविरा करने के बाद उन्हें मंदिर में स्कूल बनाने की अनुमति मिल गई. प्रारंभ में, उनकी केवल तीन लड़कियां थीं, जिनमें से दो उनकी अपनी बेटियां थीं. फिर धीरे-धीरे 'मंदिर वाले स्कूल' में बच्चों की संख्या बढ़ती गई और अब इस स्कूल में 40 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं.
'हमारे समाज में लोग लड़कों को पढ़ाते तक नहीं'
सोनारी बागड़ी का कहना है कि एक स्थानीय परोपकारी व्यक्ति उन्हें 5,500 रुपये प्रति माह वेतन देता है. अब तक उनके स्कूल की पांच लड़कियां प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर हायर सेकेंडरी स्कूल जाने लगी हैं, जिनमें से दो बेटियां सोनारी की हैं. वह कहती हैं कि मेरे समुदाय के लोग लड़कों को पढ़ाते तक नहीं, लड़कियों की तो बात ही छोड़िए. मैं अपने परिवार की पहली लड़की थी जिसने स्कूल जाने का फैसला किया. उन दिनों अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने सोचा था कि अगर मुझे अपने गोत्र में सुधार करना है तो मुझे यहां शिक्षा को सार्वजनिक करना होगा. इस प्रकार लड़कों और लड़कियों को शिक्षित करना मेरा लक्ष्य बन गया. लेकिन मुझे इस बात की चिंता थी कि मैं इस सपने को कैसे सच करूंगी, लेकिन बचपन से ही मेरा इरादा था कि मैं अपने कबीले के उन बच्चों को स्कूल का रास्ता दिखाऊं जो इधर-उधर भटक रहे हैं.
सोनारी के स्कूल की लड़कियां अब नियमित रूप से जा रही स्कूल
सोनारी के स्कूल की लड़कियां अब नियमित रूप से स्कूल जा रही हैं. आज भी उस शहर में शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल है क्योंकि लोग श्रम और व्यवसाय करना पसंद करते हैं और लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है, लेकिन सोनारी ने इसके विपरीत सोचा. उन्होंने वह रास्ता चुना जो मुश्किल तो था लेकिन नामुमकिन नहीं. सोनारी कहती हैं, “यह हमारे शहर का सबसे अच्छा मंदिर स्थल है. अगर कोई मेहमान भी आता है तो उसके ठहरने की व्यवस्था भी यहीं की जाती है. राम पीर उत्सव के लिए आने वाले कई तीर्थयात्री भी यहां कुछ दिन बिताते हैं, क्योंकि यह मंदिर हमारे लिए सब कुछ है. वो आगे कहती हैं, "समझ लो ये हमारे लिए एक ऐसी परछाई है जिसके बिना हम कुछ भी नहीं हैं. यहां से स्कूल बहुत दूर हैं और बच्चों को नहर पार करनी पड़ती है. कई बार बच्चों को कुत्तों ने भी काट लिया. इसके अलावा बच्चों के आने-जाने का भी काफी किराया लिया जाता था.
चार दशक पहले बना था यह मंदिर
इस शिव मंदिर का निर्माण आज से चार दशक पहले हुआ था. बागरी जनजाति के लोग मटियारी जिले से आए और 70 के दशक में यहां बस गए. उस समय फली के चारों ओर घना जंगल था और इतनी तेजी से न तो कोई अतिक्रमण था और न ही कोई आवासीय परियोजना, लेकिन अब सिंचाई विभाग का कहना है कि नहर के दोनों ओर 60 फीट जमीन सरकारी है, जिससे सभी अतिक्रमण हटाने का काम चल रहा है. इनमें बागड़ी, कोहली, भील और जांडारो की बस्तियां शामिल हैं. अधिकारियों के मुताबिक मंदिर भी अतिक्रमण की श्रेणी में आता है. वर्ष 2016 में एडवोकेट शिहाब उसोटू ने सिंध में पीने के पानी पर एक आयोग के गठन की मांग करते हुए पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में एक संवैधानिक याचिका दायर की. उस समय सिंध उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इकबाल कल्होद को एक वर्ष के लिए इस आयोग का कार्यवाहक नियुक्त किया गया था. बाद में कोर्ट के एक आदेश में सिंध सिंचाई विभाग को स्पष्ट निर्देश दिया गया कि मवेशी फार्म, गटर और अन्य आवास योजनाएं समस्या पैदा कर रही हैं, इसलिए जिला प्रशासन को अतिक्रमण हटाना चाहिए.
अतिक्रमण हटाने के आदेश से खतरे में मंदिर
सोनारी इन दिनों अपने मंदिर स्कूल को लेकर चिंतित नजर आ रही हैं. सिंध में स्वच्छ पानी के मुद्दे के संबंध में आदेश में यह भी कहा गया कि सिंचाई विभाग की भूमि पर सभी अतिक्रमण को समाप्त किया जाए. इस आदेश का पालन करते हुए सिंध सिंचाई विभाग वर्ष 2019 से फली के दोनों ओर से अतिक्रमण हटा रहा है. सिद्दीक रेत सिंचाई विभाग में उप अभियंता हैं और वर्तमान में फली नहर पर अतिक्रमण हटाने एवं पुनर्वास कार्य के प्रभारी हैं. उनका कहना है कि वह कोर्ट के आदेश से बंधे हैं. उनका कहना है कि यहां लोग सालों से अतिक्रमण कर रहे हैं. हमें नहर के दोनों ओर से 60 फीट जमीन साफ करनी है, जिसमें हर तरह के अतिक्रमण शामिल हैं. यह मंदिर भी अतिक्रमण के दायरे में आता है. हमने इसे अभी तक छेड़ा नहीं है क्योंकि यहां स्कूल चल रहा है. उन्होंने आगे कहा कि मंदिर को बचाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है, लेकिन समस्या यह है कि मंदिर सिंचाई विभाग की जमीन से 30 फीट अंदर है. सिद्दीक सांद कहते हैं, ''अगर विभाग की ओर से कहा जाए कि मंदिर को बचाना है और किनारे से जितनी जमीन उपलब्ध है, वह रास्ता बनाने के लिए काफी है, तो हमें मंदिर को गिराने की जरूरत नहीं है.
HIGHLIGHTS
- सोनारी बागरी अपने परिवार में पहली महिला हैं जो मैट्रिक की पढ़ाई की है
- पाकिस्तान में बागड़ी को अभी भी अनुसूचित जाति या निम्न जाति माना जाता है
- सोनारी ने नए जोश के साथ बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित कर दिया है
Source : News Nation Bureau