जब आत्मा हमारे शरीर से निकल जाती है तो मृत्यु हो जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जब तक शरीर में आत्मा है, तब तक कोई व्यक्ति या जीव जीवित रहता है, लेकिन जैसे ही आत्मा चली जाती है, शरीर पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है. आत्मा को लेकर कई शोध और अध्ययन हो चुके हैं लेकिन आज तक किसी भी वैज्ञानिक को आत्मा जैसा कुछ नहीं मिला, तो सवाल ये है कि आत्मा क्या है? अगर इस सवाल का जवाब आम लोगों से पूछा जाए तो हर कोई यही जवाब देगा कि हां, आत्मा है. दूसरी ओर ये भी प्रश्न पूछें कि यदि आत्मा है तो वह दिखाई क्यों नहीं देती? इस सवाल का जवाब देना लोगों के लिए मुश्किल होगा. ऐसे में आज इस खबर में जानेंगे कि आखिर आत्मा को लेकर सभी धर्मों, वैज्ञानियों और महान लोगों का क्या राय रहा है. हमने इस संबंध में एआई से पूछा तो जवाब मिला.
1. हिंदू धर्म
हिंदू धर्म में आत्मा को अजर-अमर और शाश्वत माना जाता है. यह शरीर का अंश नहीं है, बल्कि शरीर में रहने वाला एक अनन्त तत्व है. गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा न तो पैदा होती है और न ही मरती है. यह शाश्वत, अजर और अमर है.
2. बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म में आत्मा का सिद्धांत "अनात्म" या "अनत्ता" के रूप में जाना जाता है. इसका अर्थ है कि कोई स्थायी आत्मा नहीं है. बौद्ध धर्म के अनुसार, व्यक्ति का अस्तित्व लगातार बदलता रहता है और इसमें कोई स्थायी तत्व नहीं है.
3. ईसाई धर्म
ईसाई धर्म में आत्मा को ईश्वर का उपहार माना जाता है. ईसाई मान्यता के अनुसार, आत्मा अमर है और मृत्यु के बाद ईश्वर के न्याय का सामना करती है. ईसाई धर्म में आत्मा का महत्व बहुत अधिक है और इसे ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने का माध्यम माना जाता है.
4. इस्लाम धर्म
इस्लाम धर्म में आत्मा (रूह) को अल्लाह की सृष्टि माना जाता है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार, आत्मा शाश्वत है और मृत्यु के बाद कयामत के दिन पुनरुत्थान के लिए इंतजार करती है. इस्लाम में आत्मा का महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.
आत्मा का दार्शनिक दृष्टिकोण
दार्शनिक दृष्टिकोण से आत्मा का अस्तित्व एक जटिल और विवादास्पद विषय है.
1. प्लेटो और अरस्तू
प्राचीन ग्रीक दार्शनिक प्लेटो और अरस्तू ने आत्मा पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए. प्लेटो ने आत्मा को अमर और शाश्वत माना, जबकि अरस्तू ने आत्मा को शरीर की जीवित क्षमता के रूप में देखा.
2. रेने डेसकार्टेस
फ्रांसीसी दार्शनिक रेने डेसकार्टेस ने आत्मा को मस्तिष्क से अलग एक स्वतंत्र चेतन तत्व के रूप में माना. उनका मानना था कि आत्मा और शरीर दो अलग-अलग तत्व हैं, जो एक-दूसरे के साथ संप्रेषण करते हैं.
आत्मा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करना कठिन है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, किसी भी तत्व का अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए उसे मापने और जांचने की आवश्यकता होती है.
1. न्यूरोसाइंस
न्यूरोसाइंस के अनुसार, मानव चेतना और व्यक्तित्व मस्तिष्क की गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं. आत्मा के अस्तित्व के समर्थन में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट्स का मानना है कि आत्मा केवल एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है, जिसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है.
2. क्वांटम भौतिकी
कुछ वैज्ञानिक और विचारक आत्मा के अस्तित्व को समझने के लिए क्वांटम भौतिकी का सहारा लेते हैं. वे मानते हैं कि चेतना और आत्मा को क्वांटम स्तर पर समझा जा सकता है, लेकिन इस पर कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है.
आत्मा का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
मनोविज्ञान में आत्मा की अवधारणा व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक स्थिति से जुड़ी है.
1. सिगमंड फ्रायड
मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने आत्मा की अवधारणा को अवचेतन और चेतन मन के संदर्भ में समझाया. उनके अनुसार, व्यक्ति की चेतना और अवचेतन मन उसकी मानसिक स्थिति और व्यवहार को प्रभावित करते हैं.
2. कार्ल जंग
कार्ल जंग ने आत्मा को मानव मन की गहराई और उसके सामूहिक अवचेतन के हिस्से के रूप में देखा. जंग के अनुसार, आत्मा व्यक्ति के जीवन के अर्थ और उद्देश्य की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
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Source : News Nation Bureau