PM Modi US Visit : भारत और अमेरिका के बीच हुई जेट इंजन की डील बेहद खास है. क्योंकि वो इस इंजन की डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कही जा रही है. यानी भारत को फाइटर जेट का इंजन बनाने वाली वो टेक्नोलॉजी मिलने वाली है जिसे हासिल करने की कोशिश कई दशक पहले भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू भी कर चुके थे लेकिन हिटलर के वक्त के जर्मन इंजीनियर भी भारत को वो टेक्नोलॉजी नहीं दे सके जो अब भारत-अमेरिका की ऐतिहासिक डिफेंस डील के बाद इंडियन एयरफोर्स को हासिल हो जाएगी.
दरअसल भारत को अपने स्वदेशी फाइटर जेट तेजस को और ज्यादा ताकतवर और खतरनाक बनाने के लिए इस जेट इंजन GE-F414 की सख्त दरकार थी. अभी तक तेजस मार्क-1 में इसी कंपनी का GE-F404 इंजन ही लगा है जो ज्यादा मजबूत नहीं है. भारत ने ये इंजन अमेरिका से ही खरीदा है. जनरल इलेक्ट्रिक भारत को तेजस मार्क 1 के लिए अभी तक 75 GE-F404 इंजन की सप्लाई कर चुकी है जबकि ऐसा 99 और इंजन अभी आने बाकी हैं.ये इंजन 1970 में बनाया गया था.
लेकिन भारत को इससे ज्यादा ताकतवर इंजन यानी GE-F414 की दरकार थी जो अब इस डील के बाद पूरी हो जाएगी. खास बात ये है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात कही गई है. यानी ये इंजन भारत में ही तैयार होंगे और भारत इन्हें तेजस मार्क-2 के अलावा भी इस्तेमाल कर सकेगा. इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में लड़ाकू विमानों का संख्या लगातार कम होती जा रही है. भारत को चीन और पाकिस्तान से मिलने वाली दोहरी चुनौती से निपटने के लिए 42 Squadrons की दरकार है. लेकिन फिलहाल उसके पास 31 Squadrons ही हैं. तेजी से रिटायर हो रहे मिग-21 विनों को रिप्लेस करने के लिए तेजस एक विकल्प है और इसके मार्क-2 वर्जन के लिए GE-F414 का मिलना इंडियन एयरफोर्स के लिए बड़ी बात है.
इंडियन एयरफोर्स तेजस मार्क-2 की कम से कम छह Squardons बनाने की योजना बना रही है जिसमें करीब 120 विमान होंगे. 89 किलो न्यूटन की थर्स्ट वाले टर्बोफैन GE-F414 को हासिल करने के बाद ना सिर्फ तेजस मार्क-2 की कॉम्बेट रेंज में बढ़ोत्तरी होगी बल्कि उसमें ज्यादा बॉम्ब और मिसाइल्स भी लोड करे जा सकेंगे. इसके अलावा इंडियन एयरफोर्स इस जेट इंजन की टेक्नोलॉजी को अपनी पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को तैयार करने में भी इस्तेमाल कर सकेगी. GE-F414 दुनिया भर में जांच परखा और खरा इंजन है और अमेरिका इसे अपनी नेवी के विमान F/A-18 में इस्तेमल भी करता है. इस इंजन का खासियत का आलम य़े है कि ये टेक्नोलॉजी अबी तक अमेरिका के अलावा रूस, फ्रांस और ब्रिटेन के पास ही है. यहां तक कि चीन भी अपने लड़ाकू विमानों के लिए रूस के जेट इंजन खरीदता है.
भारत ने जेट इंजन की टेक्नोलॉजी का आना उस ख्वाब के साकार होने जैसा है जो आजादी के बाद पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने देखा था. नेहरू चाहते थे कि भारत अपने एयरफोर्स के लिए लड़ाकू विमान खुद बनाए और इसके लिए उन्होंने हिटलर के दौर के जर्मन इंजीनियर कुर्ट टैंक को भी भारत के साथ जोड़ा था. उन्होंने भारत के लिए जो इंजन बनाया उसके साथ स्वदेशी फाइटर जेट HF-24 मारूत बनाया गया. ये विमान 1967 में इंडियन एयरफोर्स में शामिल हुआ और 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में शामिल भी हुआ. लेकिन इसका इंजन बेहद कमजोर था और 1980 के दशक में एयरफोर्स ने इस विमान को सर्विस से हटाना शुरू कर दिया.
हालांकि इसके बाद भारत ने स्वदेशी कावेरी इंजन भी बनाने की कोशिश की लेकिन वो इंजन भी लड़ाकू विमान के मापदंडो पर खरा नहीं उतर सकता नतीजतन भारत को अपने स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस के लिए अमेरिका से GE-F404 खरीदने पड़े. लेकिन अब भारत और अमेरिका के बीच GE-F414 की डील हो जाने के बाद स्थिति बदल गई है और इसका असर इंडियन एयरफोर्स की ताकत पर पड़ेगा जो और ज्यादा घातक हो जाएगी. उम्मीद है कि अगले साल तक तेजस मार्क-2 के प्रोटोटाइप वर्जन तैयार हो जाएं.
रिपोर्ट- सुमित कुमार दुबे
Source : News Nation Bureau