बॉलीवुड अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला (Siddharth Shukla) हमारे बीच नहीं रहे. उनका पार्थिव शरीर मुंबई के ब्रह्मकुमारी आश्रम में ले जाया जाएगा. कुछ देर वहां पर उनके पार्थिव शरीर को रखा जाएगा. इसके बाद ब्रह्मकुमारी रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा. मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर ब्रह्मकुमारी आश्रम से सिद्धार्थ का क्या कनेक्शन था. तो बता दें कि सिद्धार्थ की मां इस आश्रम से जुड़ी हुई है. इतना ही नहीं सिद्धार्थ भी वहां मेडिटेशन करने के लिए जाते थे. ब्रह्मकुमारी एक आध्यात्मिक संस्था है, जो वक्त के साथ मजबूत होती गई है. ब्रह्मकुमारी आश्रम के संस्थापक ब्रह्म बाबा यानि लेखराज कृपलानी थे.
ब्रह्मकुमारी का मुख्यालय माउंट आबू में है
ब्रह्मकुमारी एक विशाल संस्था है. जहां पर लोग अध्यात्म से सराबोर होने के लिए जाते हैं. मेडिटेशन करते हैं. पॉजिटिविटी के लिए प्रवचन सुनते हैं. ब्रह्मकुमारी का मुख्यालय माउंट आबू में है. ब्रह्मकुमारी के संस्थापक लेखराज का जन्म सिंध के हैदराबाद में 1876 में हुआ था. हालांकि ब्रह्मकुमारी के आधिकारिक साइट में उनका जन्म 1880 बताया गया है. बताया जाता है कि लेखराज कृपलानी अध्यात्म गुरू बनने से पहले कई नौकरियां की थी. इसके बाद ज्वैलरी के बिजनेस में चले गए. हीरे के व्यापार से काफी रुपए कमाये. 1936 में एक ऐसा वक्त आया जब जीवन ने अलग राह पकड़ ली. गहरे आध्यात्मिक अनुभव के बाद उन्होंने रुपए पैसे कमाने का मोह त्याग दिया. अपना पैसा, समय और ऊर्जा को उस संस्था में लगा दिया, जिसे आज ब्रह्म कुमारी के नाम से जानते हैं. उन्होंने 1950 में जब कराची से यहां आए तो अपने अनुयायियों के साथ किराए के मकान में इसे शुरू किया था.
ओम मंडली संस्था से निकला ब्रह्मकुमारी
लेखराज 1936 में एक संस्था बनाई, जिसका नाम ओम मंडली रखा गया. जो कुछ बच्चों, माताओं, युवा और बूढ़े लोगों का एक समूह था, जो शुरुआती समय (1936 के अंत में) थे, जिन्होंने किसी न किसी परमात्मा के बाद भगवान की दिशा में अपना जीवन समर्पित कर दिया था. ओम मंडली, प्रबंध समिति में ज्यादातर ऐसी युवा महिलाएं थीं, जिन्होंने अपनी संपत्ति इस संस्था को दान दे दी थी. बाद में यही ओम मंडली ब्रह्म कुमारी की स्थापक बनी.
ब्रह्मकुमारी का शुरू हुआ विरोध
ब्रह्मकुमारी बनने के बाद इसका विरोध भी शुरू हो गया.ओम मंडली पर आरोप लगने लगे की उसका दर्शन परिवार तोड़ना और महिलाओं को पतियों से दूरी बनाने के लिए प्रेरित कर रहा है. सिंधियों को भी एतराज था. आरोप लगने लगा कि इस संस्था के चलते परिवार टूट रहे हैं. जब ओम मंडली और लेखराज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होने लगी तो वो अपनी मंडली के साथ हैदराबाद से कराची आ गए.
सिंध सरकार ने संस्था को किया था गैरकानूनी
कराची में लेखराज जी ने एक बड़ा आश्रम बनाया. यहां भी उनका विरोध हुआ. सिंध के विधानसभा में इस मामले को उठाया गया. जिसके बाद सिंध सरकार ने इस संस्था को गैरकानूनी घोषित कर दिया. आश्रम को बंद करने और फिर इसे खाली करने का आदेश दिया गया.
अब ये संस्था पूरी दुनिया में फैली
आजादी के बाद 1950 में लेखराज अपनी ब्रह्मकुमारियों के साथ माउंट आबू आ गए. वहां उन्होंने उस संस्था की स्थापना की. वक्त के साथ-साथ इसके फॉलोवर्स ना सिर्फ यहां बल्कि विदेशों में भी बढ़ने लगे. फिलहाल 110 देशों में इसकी मौजूदगी है और लाखों अनुयायी. संयुक्त राष्ट्र एक एनजीओ के रूप में उन्हें मान्यता देता है.
Source : News Nation Bureau