मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर (Gwalior) से एक बेहद ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. ग्वालियर में उपचुनाव की गिनती के बाद झांसी रोड जा रहे डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और डीएसपी विजय सिंह भदौरिया को रास्ते में एक भिखारी दिखा. सड़क किनारे बैठे भिखारी को ठंड में ठिठुरता हुआ देखकर डीएसपी ने वहां अपनी गाड़ी रोक दी. जिसके बाद दोनों अधिकारी गाड़ी से उतरकर भिखाड़ी के पास पहुंचे और उनसे बातचीत करने लगे.
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भिखारी के साथ बातचीत करते हुए डीएसपी को एक ऐसी सच्चाई मालूम चली, जिसे सुनने के बाद उनके पैरों तले जमीन खिसक गई. जी हां, सड़क किनारे ठंड में ठिठुर रहा भिखारी कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि डीएसपी के बैच का ही अधिकारी मनीष मिश्रा था. भिखारी की सच्चाई जानन के बाद रत्नेश ने तुरंत अपने जूते निकालकर उन्हें पहनाए और विजय ने उन्हें अपना जैकेट निकालकर पहनने को दे दिया.
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मनीष मिश्रा मध्य प्रदेश के कई प्रमुख पुलिस स्टेशन में थानेदार के पद पर काम कर चुके हैं. वे आखिरी बार साल 2005 में दतिया में पोस्टेड थे, लेकिन उसके बाद उनकी मानसिक स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई. मनीष के परिजनों ने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए, जहां से मनीष भाग निकलते थे. जिसके बाद उनके परिजन भी तंग आ चुके थे. कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा और एक दिन उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गईं और बाद में तलाक दे दिया.
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खराब मानसिक स्थिति के बीच ही मनीष कहीं चले गए और उनके घर वालों को भी उनका कोई पता-ठिकाना नहीं चला. मनीष मिश्रा बीते 10 साल से ऐसे ही भिखारी के रूप में मध्य प्रदेश की सड़कों पर धक्के खा रहे हैं. मनीष का ऐसा हाल देखकर रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिंह भदौरिया के होश उड़ गए थे. बता दें कि मनीष मिश्रा साल 1999 में रत्नेश और विजय के साथ सब-इंस्पेक्टर के पद पर पुलिस डिपार्टमेंट जॉइन किया था.
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दोनों अधिकारी मनीष को अपने साथ ले जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने साथ में जाने से मना कर दिया. जिसके बाद उन्होंने मनीष को एक एनजीओ को सौंप दिया, जहां उन्होंने पुलिस अधिकारी का ट्रीटमेंट शुरू कर दिया है. बताते चलें कि मनीष के परिवार के कई लोग भी पुलिस विभाग से ताल्लुक रखते हैं. मनीष के भाई भी पुलिस विभाग में थानेदार हैं, जबकि उनके पिता और चाचा एसएसपी रह चुके हैं. मनीष की बहन भी दूतावास में बड़े पद पर हैं.
Source : News Nation Bureau