केरल के एक घने वन क्षेत्र में पुस्तकालय खोलने के लिये जिस बुजुर्ग आदिवासी दंपति की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने “मन की बात” कार्यक्रम में तारीफ की थी, उसे उसके समुदाय के लोगों ने बस्ती से निकाल दिया है. समुदाय के लोगों का आरोप है कि दंपति ने कथित रूप से एक ऐसी पुस्तक लिखने में ‘मदद’ की, जिसमें उसे (समुदाय) को गलत रूप में प्रदर्शित किया गया है.
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इडुक्की जिले के जंगलों में स्थित एदमालकुडी बस्ती के निवासी पी वी चिन्नाथम्पी (77) और मनियम्मा (62) को इस महीने की शुरूआत में वहां की एक सभा ‘‘ओरूकोट्टम’’ ने उन्हें उनके गांव से निकाल दिया. इसके बाद से दंपती मदद मांगते हुए दर-दर भटक रहे हैं. उन्होंने इस मामले में शिक्षक-लेखक पी के मुरलीधरन के साथ गुरुवार को यहां राज्य के अनुसूचित जाति/ जनजाति कल्याण मंत्री ए के बालन से भेंट की और इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया. मंत्री ने हरसंभव मदद का भरोसा दिलया. मुरलीधरन ने कहा, “मंत्री ने हमने कहा है कि वह देवीकुलम के विधायक एस राजेंद्रन से बात करेंगे.
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फिलहाल वे अपने गांव नहीं जा सकते हैं.” मुरलीधरन ने 2012 में पुस्तकालय खोलने के लिए इस दंपत्ति की मदद की थी. चिन्नाथम्पी और उनकी पत्नी यहां के निकट स्थित मुरलीधरन के घर में रह रहे हैं. उन्होंने कहा, “वे दूसरों की दया के भरोसे कब तक रह सकते हैं.” गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पुस्तकालय खोलने के उनके प्रयासों की इस साल जून में अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘‘मन की बात’’ में तारीफ की थी. चिन्नाथम्पी और मनियम्मा पर आरोप है कि उन्होंने मुरलीधरन को एक ऐसी पुस्तक लिखने में मदद की, जिसमें उनके मुथुवन आदिवासी समुदाय को गलत तरीके से दर्शाया गया है.
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मुरलीधरन ने कहा कि उन्होंने अपनी पुस्तक “एदामलाक्कुदी : ओरुम, पोरुलुम” 2014 में लिखी थी और अब तक इसे लेकर कोई समस्या नहीं थी. इस बारे में राजेंद्रन ने कहा कि किसी को कहीं से बहिष्कृत करने का अधिकार किसी के पास नहीं है और वह ग्राम पंचायत से इस बारे में बात करेंगे. उल्लेखनीय है कि एदमालकुडी बस्ती देवीकुलम ताकुल में स्थित है. 2010 में राज्य में बना यह पहला आदिवासी ग्राम पंचायत है.
Source : Bhasha