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जंगली भैंसों से खत्म होगी ज़हरीली हवा! बाइसन से साफ होगा गैस से भरा आसमान!

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सिर्फ 170 जंगली भैसों का एक झुंड 20 लाख गाडियों से निकलने वाले कार्बन को खत्म कर सकता है. ये दावा हैरान करने वाला है. अगर ये सच है तो सोचिये सिर्फ जंगली भैंसों की संख्या बढ़ा कर हम न सिर्फ हवा को साफ रख सकते हैं, बल्कि

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Prashant Jha
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BISON

जंगली भैस( Photo Credit : फाइल फोटो)

 वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सिर्फ 170 जंगली भैसों का एक झुंड 20 लाख गाडियों से निकलने वाले कार्बन को खत्म कर सकता है. ये दावा हैरान करने वाला है. अगर ये सच है तो सोचिये सिर्फ जंगली भैंसों की संख्या बढ़ा कर हम न सिर्फ हवा को साफ रख सकते हैं, बल्कि अपने आस-पास हरियाली भी बढ़ा सकते हैं. इससे प्रदूषण के कारण बढ़ते तापमान को न सिर्फ रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि गर्मी के कारण पिघल रहे ग्लेशियर भी बचेंगे. यानी जंगली भैंसे जलवायु परिवर्तन को रोकने में हीरो साबित हो सकते हैं. इससे गैस चैंबर बने दिल्ली जैसे शहर स्वर्ग बन जाएंगे. दिल्ली स्टैटिस्टिक हैंडबुक 2023 के अनुसार 31 मार्च 2023 तक दिल्ली में कुल रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या करीब एक करोड़ 20 लाख थी. यानी सिर्फ 1020 जंगली भैंसे देश की राजधानी की ज़हरीली हवा को साफ कर सकते हैं. और लाखों गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के कारण दिल्ली के आसमान में बना गैस चैंबर खत्म हो सकता है.

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 ये दावा अमेरिका के येल स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट के वैज्ञानिकों ने किया है. अपने रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने रोमानिया के सार्कू पहाड़ों को चुना. इस इलाके बाइसन 200 साले पहले ही गायब हो चुके थे.  वैज्ञानिकों ने 2014 में यहां बायसन का एक झुंड छोड़ दिया था. वैज्ञानिकों को हैरानी तब हुई जब हाल ही में ये पता चला कि इस इलाके में कॉर्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 2014 के मुकाबले 9.8 गुना कम हो गई है. इस दौरान इलाके में 54,000 टन कॉर्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण हुआ.  पिछले 10 सालों में ये बाइसन इतनी तेजी से बढ़े कि अब वो यूरोप के सबसे बड़े झुंडों में से एक हो गए हैं. और इलाके में हरियाली भी बहुत ज्यादा बढ़ गई है. 

बायसन घास के मैदानों और जंगलों के लिए क्यों अहम हैं और ये जीव कैसे जंगलों को बढ़ने में मदद करता है, इसे समझना भी ज़रूरी है. रिसर्चर्स का दावा है कि बाइसन एक समान तरीके से घास चरते हैं. इससे हर जगह नई घास को उगने के लिए जगह मिलती है. साथ ही, उनके गोबर के जरिए जमीन को पोषक तत्व भी मिलते हैं जो मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं. इससे घास और पौधों को बढ़ने में मदद मिलती है. यही नहीं, बाइसन के फरों पर पेड़-पौधों के बीज चिपक कर एक जगह से दूसरी जगह फैल जाते हैं. इससे नए पेड़-पौधों को भी उगने में मदद मिलती है.  अपनी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने ये भी दावा किया कि बाइसन जैसे जानवर अपने प्राकृतिक व्यवहार से जमीन में अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड जमा करने में मदद करते हैं. सवाल है कैसे.. वैज्ञानिकों के मुताबिक  बाइसन के चरने से हरी-भरी जमीन रहने के साथ मिट्टी की कसावट बनी रहती है. और मिट्टी जब कसी हुई होती है तो जमीन के अंदर जमा कार्बन बाहर नहीं निकल पाता है.

 क्या जंगली भैंसों की मदद से कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन को रोका जा सकता है?

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दरअसल, बाइसन करोड़ों साल से घास के मैदानों और जंगलों में रहते आए हैं. लेकिन इनके शिकार और जंगलों की कटाई के कारण इनकी संख्या कम होती चली गई. वैज्ञानिकों का दावा है कि इस जीव के खात्मे से बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन जमीन से बाहर आ गया. इससे हवा में कार्बन की मात्रा में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. रही-सही कसर गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और फैक्ट्रियों की चिमनियों ने कर दिया. लेकिन अगर बाइसन की आबादी बढ़ाई जाए तो जंगली परिवेश फिर से आबाद होगा और इस तरह वातावरण फिर से संतुलित हो सकता है. और बाइसन इस संतुलन को लाने में बहुत मददगार है. 

 पर्यावरण को बचाने में जंगली भैंसे किस तरह मदद करते हैं?

 पर्यावरण के रक्षक बाइसन या जंगली भैंसे भारत में भी पाए जाते हैं.  यहां पाई जाने वाली प्रजाति का नाम गौर है. दुनिया में इस प्रजाति के बाइसन की संख्या लगभग 13,000 से 30,000 बची है. जिनमें से लगभग 85% भारत में मौजूद हैं. इस ताकतवार जीव 1500 किलोग्राम तक होता है. भारत में बाइसन मुख्य रूप से पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं. इसके अलावा छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और अन्य राज्यों के जंगलों में भी पाए जाते हैं.  ये साफ है कि हमारे आसपास के वातावरण को स्वस्थ रखने के लिए जंगली जानवरों और उनके परिवेश को बचाना कितना आवश्यक है. और बाइसन जलवायु परिवर्तन से लड़ने में हीरो साबित हो सकते हैं. 

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Source : News Nation Bureau

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