पुराने जमाने में दुनिया के ज्यादातर देश ताकतवर देशों के गुलाम थे, फिर चाहे भारत हो या अमेरिका. ज्यादातर देशों में वहां के मूल निवासियों का विदेशी तानाशाहों ने जमकर शोषण किया और उन्हें सैकड़ों साल तक गुलाम बनाकर रखा. कहीं संपत्तियां लूट ली गईं तो कहीं लूटपाट के लिए जमकर खून बहाया गया. लाखों लोगों को गुलाम बनाया जाता और उनसे दिन-रात काम कराया जाता. उस दौर में गुलामों की खरीब फरोख्त की बातें में सामने आती है. आज हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आज भी सैकड़ों गुलामों की खपड़ियों को संजोकर रखा गया है. जिन्हें आजतक न तो नष्ट किया गया और ना ही किसी को दिया गया.
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दरअसल, जर्मनी में गुलामों की खोपड़ियों का एक म्यूजियम है. जिसमें पूर्वी अफ्रीकी देशों के एक हजार से ज्यादा गुलामों की खोपड़ियां आज भी रखी गई हैं. ये खोपड़ियां औपनिवेश काल के दौरान की याद दिलाती हैं. जिन्हें सरकार वहां से अपने साथ लेकर आई थी. इन खोपड़ियों का संग्रहालय जर्मनी की राजधानी बर्लिन में स्थित है. इन कंकालों को जर्मनी की वजह अलग अलग नस्ल के लोगों का वैज्ञानिक अध्ययन करना थी. जिससे इस बात का पता लगाया जा सके कि वे इतने मजबूत कैसे होते थे. इस बारे में कई बार कोशिश की गई लेकिन इनके बारे में और इनकी ताकत को समझने में कामयाबी नहीं मिली.
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आज भी मौजूद हैं 5000 से ज्यादा कंकाल
बता दें कि जर्मनी की सरकारी संस्था प्रशियन कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन के पास आज भी 5,600 कंकालों का संग्रह है. इन कंकालों में 1000 रवांडा के लोगों के हैं तो वहीं 60 कंकाल तंजानियाई मूल के नागरिकों के हैं. बता दें कि इन दोनों देशों पर जर्मनी ने 1885 से 1918 तक शासन किया. ये कंकाल उसी दौर में जर्मनी लाए गए थे. यानी इन कंकालों को जर्मनी लाए हुए 100 साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है लेकिन इन्हें आज तक संरक्षित करके रखा गया है. ऐसा कहा जाता है कि ये कंकाल उन लोगों के हैं, जिन्होंने जर्मन सेनाओं से बगावत की. लेकिन युद्ध के दौरान जर्मनी के सैनिकों ने उन्हें मार गिराया. कहा जाता है कि ये कंकाग गुलाम विद्रोहियों के हैं. ये लोग इतने ताकतवर थे कि जर्मनी की सेना को उनसे भिड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.
रवांडा कर चुका है खोपड़ियों को वापस करने की मांग
बता दें कि कुछ समय पहले रवांडा के राजदूत ने जर्मनी से इन खोपड़ियों को वापस मांगा था लेकिन जर्मनी सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई. फाउंडेशन के प्रमुख ने इसे लेकर कहा था कि उन्हें कंकालों को वापस देने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन सबसे जरूरी है कि अवशेषों को लौटाने से पहले उनका मिलान करना होगा कि ये खोपड़ियां उन्हीं के देश के नागरिकों की हैं. इस बात की पुष्टि साइंटिफिक रूप से होनी चाहिए. बता दें कि इससे पहले जर्मनी पैराग्वे और ऑस्ट्रेलिया के अलावा अपनी पुरानी कॉलोनी नामीबिया के लोगों के भी अवशेष वहां की सरकार को लौटा चुका है.
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Source : News Nation Bureau