दुनिया में तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका गया तो धरती पर मानव जीवन बहुत ही जल्द अपना अंत देखेगा. धरती पर मौजूद सूक्ष्म कीड़े-मकौड़े और कीटों की संख्या में काफी तेजी से गिर रही है. धरती पर कीड़े-मकौड़ों की जनसंख्या को लेकर किए गए एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है. इस रिपोर्ट को तैयार करने में दो वैज्ञानिकों फ्रैंसिसको संचेज और क्रिस एजी वायकुयस ने बीते 40 सालों की रिपोर्ट की समीक्षा की है, जिसके बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि धरती पर कीड़े-मकौड़ों की घटती जनसंख्या मानव जीवन के लिए भी बड़ा खतरा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले कुछ दशकों में धरती पर मौजूद कीटों की करीब 40 फीसदी से भी ज्यादा प्रजातियां खत्म हो सकती हैं.
वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए इसे भयावह करार दिया है. फ्रैंसिसको संचेज और क्रिस एजी वायकुयस ने इस स्थिति को ईकोसिस्टम के लिए बेहद ही खतरनाक बताया है. उन्होंने कहा है कि इस रिपोर्ट की सच्चाई हमारे लिए किसी विपत्ति से कम नहीं है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी फॉर कन्वर्सेशन बायोलॉजी के अध्यक्ष पॉल राल्फ एहरलिच ने रिपोर्ट पर रहा है कि यह किसी भी जीवविज्ञानी को अंदर तक झकझोर सकती है. उन्होंने कहा कि कीटों के अंत के साथ मनुष्यों का अंत भी हो जाएगा. इस घोर विपत्ति को समझाते हुए उन्होंने कहा कि कीट-पतंगे और कीड़े-मकौड़े कृषि के लिए बहुत जरूरी हैं. कीटों की गैरमौजूदगी में खेती करना संभव नहीं है. ऐसे में इंसान के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचेगा.
ये भी पढ़ें- पत्नी समझकर जिस महिला के साथ गुजार लिए 9 साल, सच से उठा पर्दा तो पैरों तले खिसक गई जमीन
कीट पतंगे खेती के लिए वरदान की तरह हैं. इनके खत्म होने की वजह से फूड चेन के साथ-साथ लाइफ साइकिल पर भी बुरा असर पड़ेगा. रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के अलावा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग भी इस विपत्ति का कारण है. धरती पर बेशक कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन फसलों को खड़ा करने में भी कई कीटों का हाथ है. ऐसे कीटों को किसान का मित्र कीट कहा जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक कीटनाशक की अधिकता की वजह से मित्र कीट भी नष्ट होते जा रहे हैं. धरती पर मौजूद कीट पेड़-पौधों और फसलों को परागण के साथ ही मिट्टी और पानी को शुद्ध करने का भी काम करते हैं. इसके अलावा ये कचरे को उपयुक्त बनाने और खतरनाक कीट को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल इनकी संख्या में 2.5 फीसदी तक की कमी आ रही है.
Source : Sunil Chaurasia