वेदों और पुराणों में रहे मानसखण्ड क्षेत्र की धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ आधुनिक युग में तीर्थस्थलीय पर्यटन क्षेत्र की अवधारणा पर मंथन करने के लिए नेपालमें तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद भारत के विशेष पहल पर नेपाल की सुदूरपश्चिम प्रदेश के सुदूरपश्चिम विश्वविद्यालय एवं उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय के संयुक्त आयोजना में मानसखण्ड क्षेत्र : नेपाल भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत के विषय पर यह सम्मेलन केन्द्रित रहा. दोनों देशों के बीच रहे रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट की तरह मानसखण्ड क्षेत्र को भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटकीय क्षेत्र के रूप में विकसित कर इस क्षेत्र के प्रति ना सिर्फ दोनों देशों के आम जनमानस में अपितु विश्व पटल पर इसकी अलग पहचान दिए जाने के लिए विगत कुछ वर्षों से अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मार्गदर्शन में नेपाल अध्ययन केन्द्र इस पर शोध कर रहा है.
नेपाल के सुदूरपश्चिम प्रदेश के धनगढीमें इस तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन प्रदेश के मुख्यमन्त्री कमल बहादुर शाह ने कहा कि भारत के उत्तराखण्ड और नेपाल के सुदूरपश्चिम प्रदेश की साझा सांस्कृतिक विरासत के विकास से दोनों क्षेत्र की आर्थिक उन्नति में काफी सहायक हो सकता है.
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मुख्यमंत्री शाही ने कहा कि रामायण कॉरिडोर और बुद्ध सर्किट कॉरिडोर के तर्ज पर मानसखण्ड कॉरिडोर के विकास के लिए यह आयोजन काफी सहायक सिद्ध होने वाला है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जिस तरह से मानसखण्ड क्षेत्र में समान संस्कृति, समान वेशभूषा, समान पर्व त्यौहार, समान रीति रिवाज अब तक कायम है उससे आने वाले समय में मानसखण्ड कॉरिडोर की इस अवधारणा से इस क्षेत्र का बहुआयामिक विकास होगा और सभी इससे हर तरह से लाभान्वित होने वाले हैं.
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए सूदूरपश्चिम प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री राजेन्द्र सिंह रावल ने कहा कि भूराजनीतिक रूप से भले ही सूदूरपश्चिम प्रदेश और उत्तराखण्ड प्रदेश दो अलग अलग देशों में है लेकिन धार्मिक रूप से सांस्कृतिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे से जुडा हुआ है. इस क्षेत्र से जुडे अनेक आध्यात्मिक और पौराणिक उदाहरण देते हुए इतिहासकार समेत रहे निवर्तमान मुख्यमंत्री रावल ने बताया कि भौगोलिक सीमा रेखा होने के बावजूद इस क्षेत्र के सभी लोगोंमें आज भी अद्भुत और अटूट संबंध है.
अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद भारत के महासचिव श्याम पराण्डे ने बताया कि इस सम्मेलन के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य ही मानसखण्ड कॉरिडोर की अवधारणा को वास्तविकता में परिणत करना है. ताकि इस क्षेत्र की आम जनमानस को ना सिर्फ आर्थिक रूप से सबल होने का मौका मिलेगा बल्कि मानसखण्ड की विश्वव्यापी पहचान बनने में सहायक सिद्ध हो सकता है.
उद्घाटन सत्र के प्रमुख वक्ता के रूप में बोल रहे श्याम पराण्डे ने कहा कि भौगोलिक और राजनीतिक कारणों से इस क्षेत्र के शासकों के बीच भले ही अनेकों बार युद्ध हुआ हो लेकिन समान संस्कृति और समान परम्परा की वजह से मानसखण्ड क्षेत्र के लोगों में सुदृढ सम्बन्ध बना हुआ है. मानखण्ड कॉरिडोर कनेक्टिविटी को बढाने के उपायों पर प्रकाश डालते हुए श्याम पराण्डे ने कहा कि इस क्षेत्र के समग्र विकास में यह कॉरिडोर काफी सहायक सिद्ध हो सकता है. इस तीन दिवसीय सम्मेलन में नेपाल और भारत के कई शिक्षाविद्, संस्कृतिविद्, शोधकर्ताओं ने अपना शोधपत्र भी प्रस्तुत किया. इनमें भारत से आए वरिष्ठ प्राध्यापक वसुधा पाण्डे, डा अनुराधा गोस्वामी, प्रो हेमा उनीयाल, डा रितेश शाह, प्रज्ञा वासुदेव पाण्डे, डा निहार नायक, डा दिव्येश्वरी जोशी, डानारायण भट्ट प्रमुख हैं.
Source : News Nation Bureau