अलग-अलग वजहों से दो महीने के दौरान गांव के तीन लोगों की मौत हुई थी. इसे लेकर एक पंचायत बैठी. गांव के तकरीबन 80 लोग इकट्ठा हुए. इनमें तंत्र-मंत्र करनेवाले एक ओझा भी था. उसने गांव वालों से कहा कि ये मौतें निकोदिन टोपनो और उसके घरवालों के कारण हो रही है. उस परिवार में एक डायन है. वही गांव के लोगों को 'खा' रही है. पंचायत ने तय किया कि पूरे परिवार का सफाया कर देना है. फैसले पर तत्काल अमल हुआ. इसके लिए आठ लोग तैयार हुए. सबने शराब पी और देर रात निको दिन टोपनो के घर पर हमला कर दिया. 60 वर्षीय निकोदिन टोपनो, उनकी पत्नी जोसपिना टोपनो, जवान पुत्र विनसेन्ट टोपनो, बहू शीलवंती टोपनो और पांच साल का पोते अल्बिन टोपनो को कुल्हाड़ी से काट डाला गया. परिवार में सिर्फ निकोदिन की आठ साल की पोती अंजना टोपनो बच गयी, क्योंकि उस रोज वह अपने एक रिश्तेदार के यहां रांची में थी. यह वारदात झारखंड के गुमला जिला मुख्यालय से कोई 80 किलोमीटर दूर कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातू आमटोली गांव में पिछले साल 23 फरवरी की है. बाद में पुलिस ने वारदात को अंजाम देने वाले आठ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा.
दरअसल, झारखंड में इस तरह की घटनाओं का अंतहीन सिलसिला है. झारखंड को अलग राज्य बने 22 वर्ष हुए हैं और इस दौरान राज्य में डायन-ओझा के संदेह में एक हजार से भी ज्यादा लोगों की हत्या हुई है. डायन हिंसा और प्रताड़ना का शिकार हुए लोगों में 90 फीसदी महिलाएं हैं. पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से नवाजी गयीं सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहनेवाली छुटनी देवी भी उन महिलाओं में हैं, जिन्होंने डायन के नाम पर बेइंतहा सितम झेले हैं. पड़ोसी की बेटी बीमार पड़ी थी और इसका जुर्म छुटनी देवी के माथे पर मढ़ा गया था, यह कहते हुए कि तुम डायन हो. जादू-टोना करके बच्ची की जान लेना चाहती हो. पंचायत ने उनपर पांच सौ रुपये का जुर्माना ठोंका. दबंगों के खौफ से छुटनी देवी ने जुर्माना भर दिया, लेकिन बीमार बच्ची अगले रोज भी ठीक नहीं हुई तो चार सितंबर को एक साथ चालीस-पचास लोगों ने उनके घर पर धावा बोला. उन्हें खींचकर बाहर निकाला. उनके तन से कपड़े खींच लिये गये. बेरहमी से पीटा गया. इतना ही नहीं, उनपर मल-मूत्र तक फेंका गया. खुद के ऊपर हुए जुल्म के बाद छुटनी देवी ने डायन कहकर प्रताड़ित की जाने वाली महिलाओं के हक की लड़ाई को अपने जीवन का मकसद बना लिया. उनके अभियान का असर रहा कि समाज द्वारा डायन करार दी गयीं तकरीबन 500 से ज्यादा महिलाओं ने सम्मान की जिंदगी हासिल की. 25 वर्षों से चल रहे उनके इस अभियान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान से नवाजा. छुटनी देवी का अभियान आज भी जारी है, लेकिन डायन-बिसाही की कुप्रथा की जड़ें झारखंड में इतनी गहरी पैठी हुई हैं कि हिंसा और प्रताड़ना की घटनाएं थम नहीं पा रही हैं.
पुलिस के आंकड़े बोलते हैं कि पिछले सात वर्षों में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 35 हत्याएं हुईं हैं. अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई. साल 2016 में 39, 2017 में 42, 2018 में 25, 2019 में 27 और 2020 में 28 हत्याएं हुईं. 2021 के आंकड़े अभी पूरी तरह कंपाइल नहीं हुए हैं, लेकिन इस वर्ष भी हत्याओं के आंकड़े करीब दो दर्जन बताये जा रहे हैं. इस तरह सात वर्षों का आंकड़ा कुल मिलाकर 230 से ज्यादा है. डायन बताकर प्रताड़ित करने के मामलों की बात करें 2015 से लेकर 2020 तक कुल 4556 मामले पुलिस में दर्ज किये गये. यानी हर रोज दो से तीन मामले पुलिस के पास पहुंचते हैं. बीते छह वर्षों में सबसे ज्यादा मामला गढ़वा में आये. यहां 127 मामले दर्ज किये गये, जबकि पलामू में 446, हजारीबाग में 406, गिरिडीह में 387, देवघर में 316, गोड्डा में 236 मामले दर्ज किये गये हैं. झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता और कई सामाजिक संगठनों से जुड़े योगेंद्र यादव आईएएनएस को बताते हैं डायन प्रताड़ना के लगभग 30 से 40 प्रतिशत मामले तो पुलिस के पास पहुंच ही नहीं पाते.
HIGHLIGHTS
- डायन हिंसा के खिलाफ अभियान चलाने वाली को पीएम ने दिया सम्मान
- डायन प्रताड़ना के 40 फीसद मामले तो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते