Lok Sabha Election 2024: संसद के मानसून सत्र (Monsoon Session) में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिल रही है. संसद में होने वाले हंगामे और बहिष्कार के चलते अब तक समय और सत्र की बर्बादी हुई है. इस बीच विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को मणिपुर (Manipur) पर बयान देने के लिए मजबूर करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) लाया है. पीएम मोदी विपक्षी गठबंधन को दिशाहीन बताते हुए कह चुके हैं कि, क्या नया नाम गठबंधन में शामिल पार्टियों के चरित्र को बदल सकता है.
2024 के लिए तैयार हो चुका है मंच
देश में बन रहे सियासी माहौल को देखा जाए तो अब यह साफ नजर आ रहा है कि 2024 के लिए मंच तैयार हो चुका है. पार्टियां चुनाव के लिए अपना-अपना एजेंडा तय करने की कोशिश कर रही है. इस बीच 'एनडीए' से 'इंडिया' बना गठबंधन लोगों को एक विकल्प जरूर प्रदान करता है, लेकिन लोगों को इस नए नाम पर किस कदर भरोसा होगा ये बहस का मुद्दा है.
जानें बनते-बिगड़ते समीकरण
तो क्या यह माना जा सकता है कि 2024 की लड़ाई बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में हो चुकी है. फिलहाल लोकसभा चुनाव में अभी दस महीने का समय बचा है और मुद्दों को सेट करने के लिहाज से ये लंबा समय होता है. खासकर तब जब 25 से 30 प्रतिशत वोटर चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में तय करता हैं कि किसे वोट देना है. इसलिए चुनाव में कयास लगाना अभी जल्दबाजी होगी. हालांकि, तमाम सर्वेक्षणों में बीजेपी को सत्ता बरकरार रखने का प्रबल दावेदार बताया जा रहा है लेकिन बहुमत 2019 की तुलना में कम होगा. तो चलिए नजर डालते हैं उन संभावना ओं पर जिनकी वजह से चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ
पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ कम हो ये बात विपक्ष के वश में नहीं है, लेकिन वो प्रार्थना करेंगे कि ऐसा हो. आंकड़ों के मुताबिक 2019 में बीजेपी के 31 प्रतिशत मतदाताओं और उसके 25 फीसदी सहयोगियों ने मोदी के कारण एनडीए को वोट दिया था. इसका मतलब है कि मोदी फैक्टर ने एनडीए को मिले 27.5 करोड़ वोटों में से 8.5 करोड़ वोट दिलाए।. 2019 में यूपीए के खिलाफ एनडीए की बढ़त 11 करोड़ वोटों की थी, जिसका अर्थ है कि मोदी कारक ने इसमें लगभग 80 प्रतिशत योगदान दिया. मौजूदा सर्वेक्षणों में मोदी की लोकप्रियता में कोई गिरावट नहीं दिख रही है हालांकि, राजनीति में 10 महीने का समय बहुत लंबा होता है. किसने सोचा होगा कि बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद 1972 की शुरुआत में अपनी लोकप्रियता के चरम पर इंदिरा गांधी 1975 में आपातकाल लगा देंगी जिससे 1977 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. यदि पीएम मोदी का कोई भी निर्णय उल्टा पड़ता है, तो इससे उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ सकता है.
गठबंधन सहयोगियों के बीच वोट का हस्तांतरण
'इंडिया' गठबंधन का प्रभाव सकारात्मक होगा. अगर गठबंधन का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर कराने में सक्षम होती हैं तो बात बन सकती है. 2019 में 190 बीजेपी बनाम कांग्रेस मुकाबलों में 19 सीटें ऐसी थीं जहां तीसरे स्थान पर रहने वाली पार्टी को जीत के अंतर से अधिक वोट मिले. इनमें से 13 सीटें बीजेपी ने जीतीं. 2019 में 185 बीजेपी बनाम क्षेत्रीय दलों के मुकाबलों में 55 सीटें ऐसी थीं जहां तीसरे स्थान पर रहने वाली पार्टी को जीत के अंतर से अधिक वोट मिले. इनमें से 35 सीटें बीजेपी ने जीतीं. तो ऐसी सीटों पर एनडीए को गठबंधन की ताकत का एहसास हो सकता है. सटीक गणित सेट होने पर 2024 में बीजेपी के लिए लगभग 50 सीटों पर मुकाबला करीबी हो सकता है.
सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर
राजनीति में स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर के लिए दस साल एक लंबा समय है. हालांकि पीएम मोदी लोकप्रिय हैं, लेकिन बीजेपी के सभी संसद सदस्यों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. 2019 में बीजेपी ने इस तरह की सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए 45 प्रतिशत सांसदों के टिकट काट दिए थे. 2024 में भी बीजेपी के सामने ये संकट होगा लेकिन पार्टी इसे लेकर रणनीति तैयार कर सकती है. ऐसे में 'इंडिया' गठबंधन की भूमिका भी बढ़ जाती है देखने वाली बात होगी कि वो अपने पक्ष में माहौल बना पाता है या नहीं.
HIGHLIGHTS
- लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे सियासी दल.
- सियासी दलों के बीच जारी है वार-पलटवार.
- NDA Vs I.N.D.I.A के बनते बिगड़ते समीकरण.
Source : News Nation Bureau