बरसात और फूलों की बरसात के बीच नरेन्द्र मोदी और अमित शाह बीजेपी कार्यालय के प्रांगण में उत्साहित कार्यकर्ताओं के बीच चल रहे थे. देश और विदेश (कम से कम एनआरआई भारतीय देख रहे होगे- बौंनों के गैंग मुझे ट्रोल न करे) में करोड़ों लोग टीवी सेट्स से चिपके हुए इस सीन को देख रहे थे. देश की वो आबादी जिसने मोदी को वोट किया था वो यकीन झूम रही होगी. राजनीति विज्ञान (हिंदुस्तान में ये विज्ञान है या नहीं पता नहीं क्योंकि यहां एक पार्टी के खिलाफ नफरत का हिसाब रखने वाले ही इसको स्कूलों और कॉलिजों में पढ़ा रहे है) और जिन्हें पॉलिटिकल पंडित कहां जाता है (रिटार्यड और दलाली परंपरा में पगे हुए बौंने जिनका जनता और चांद दोनों से एक जैसा रिश्ता है यानि दोनों उनको दिखाई देते है) वो सब पिछले पांच सालों में अपना कहा-लिखा समेटने में जुटे हुए थे और स्क्रीन पर या फिर एडिटोरियल में ये बता रहे थे कि मोदी सरकार क्यों वापस लौट आई हालांकि उनका पूरा पांच साल ये बताने में गुजरा कि मोदी सरकार क्यों वापस नहीं आयेगी. खैर मैं उन पर अगले आलेख में बात करूंगा, इस वक्त तो इस जनादेश के मायने समझने की कोशिश करता हूं. टीवी पर मदमस्त ऐँकर ( सरकार कोई आएं या जाएं उनके मुंह से उल्टी हुई बातें पूरी उलट जाएं या फिर उनकी समझ उलटी हुई छतरी दिखे इसकी कोई परवाह नहीं) और वही ज्ञानी मित्तल ( मोदी के कामकाज को जीरो और एनडीए को 160-180) फिर से इस पूरे जनादेश को समझाने में जुटे हुए थे.
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ये शायद हमारी मजबूरी भी है कि दोनों तरह के प्रोग्राम के पहले ही तैयारी करनी होती है कि सौहर गाना हो तो वो गा दे नहीं तो मर्सिया भी लिखा रखा है. तो खैर सौहर ही गाया जाना तय हुआ. टीवी की हैडलाईंस पर और अखबारों की सुर्खियों से अगर कोई समझना चाहे तो ये मोदी का मैजिक है उनकी जीत है और रणनीतिक तौर पर खूबसूरती से बनाई गई एक व्यूह रचना की जीत है. हो सकता है कि इसमें कुछ सच्चाई हो लेकिन सब कुछ इसी के इर्द-गिर्द बुना जाएं तो भी ये एक जनादेश को समझने से इंकार करना है. यकीनन देश के एक बड़े हिस्से में घूमने के बाद जो बात सबसे पहले सामने आ रही थी वो ये थी कि जनता मोदी मोदी कह रही है. सहारनपुर के एक किसान ने खेत में खड़े होकर कहा कि "भाई हम्मे तो यूं लगे कि यो ही जो घर में जाकर जूत मार सके" तो यात्रा को खत्म कर रहा था गंगासागर में एक बार फिर महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति बना रहे कारीगर ने "साहब कुछ भी कहे लेकिन घोर में घऊस के तो वो ही मारता है" भी यही बोल दिया. सहारनपुर से चला. गोमुख से शुरू हुई मां गंगा की यात्रा दोआब पार करती हुई कलकत्ता में ही रूकती है और यहां तक एक ही तरह का मैसेज दिख रहा था. लेकिन यात्रा के इस आंकड़े को बीजेपी के मुखर मतदाता और बीजेपी के विरोध में जो बहुतायत वोटर है वो मौन है बताकर कुचलने में जुटे हुए स्टूडियों वीर अभी उन्हीं bytes का सहारा लेकर इसको मोदी सुनामी साबित करने में जुटे हैं. कुछ-कुछ लोग अब अंग्रेजी के आर्टिकल्स में दमित हिंदु आकांक्षाओं का स्फुटन लिख रहे है. कुछ लोगों को लगता है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर हिंदुओं को सांप्रदायिक हो गया है. मसलन अंधों के गांव के हाथी की तरह इस जनादेश की व्याख्या भी हो रही है. लेकिन क्या सिर्फ इतना सा ही जनादेश है. इन सवालों और अपनी यात्रा में मिले जवाबों के सहारे में मुझे लगता है कि ये जनादेश मोदी के नाम और चेहरे पर ही नहीं बल्कि ये जनादेश एक बिलकुल अलग किस्म का जनादेश भी है. दरअसल सहारनपुर के किसान और गंगासागर के उस मूर्तिकार के बीच एक चीज का रिश्ता है वो रिश्ता है देश को राज्य से अलग समझने का. देश को राज्य से बड़ा समझने का और देश को जाति से थोड़ा हटकर समझने का. ये बिलकुल अलग बात है जो 70 साल से दिख नहीं रही थी. अंग्रेजी बौंनों के गैंग के सरदारों में शामिल एक साहब अपने ही चैनल के सर्वे से चिढ़ कर सर्वेयर से सवाल कर रहे थे कि क्या देश का वोटर इतना समझदार हो गया है कि एक राज्य में हो रहे दोनों चुनाव यानि विधानसभा और लोकसभा में अलग अलग वोट देगा, और वो बेचारे देश भर में घूमने का दावा भी कर रहे थे और घूमते हुए दिख भी रहे थे. ममता बनर्जी से इंटरव्यू लेना चाह रहे थे तो उन्होंने जानबूझ कर वो कपड़ा रखा जिसकी पहचान मुसलमानों से जुड़ती हो. मुझे समझ में नहीं आया कि वो ये मैसेज दीदी को दे रहे था या किसी पार्टी को या किसी वोटर को. खैर जनता ने इसका जवाब दिया साफ तौर पर दिया. जिस राज्य में जनता ने पटनायक को विधानसभा में छप्परफाड़ बहुमत दिया उसी राज्य में जनता ने बीजेपी को लगभग आधी लोकसभा सीट थमा दी. ( आठ सीट दी है बीस में से और बाकि पर कैंडीडेट बहुत कम मार्जिन से हारे है)
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क्या य सिर्फ मोदी मैजिक है?
ये बीजेपी के लिए एक दम नई चीज थी. यानि मोदी के तौर पर ऐसा नेता चुना जिसको वो मानते है कि देश की सीमाओं की रक्षा करने में ज्यादा सक्षम है तो दूसरी ओर राज्य में पटनायक घर का नेता सही माना. उसी तरह तेलंगाना जहां महज कुछ दिन पहले ही केसीआर को महाबली बना दिया था, विधानसभा के चुनाव में और बीजेपी का कोई अता-पता नहीं था, वहां उसको चार सीटें थमा दी. ये बिलकुल अलग जनादेश है. तेलंगाना के पत्रकार दोस्तों को इसका कोई इल्हाम नहीं था बल्कि वो इस बात को दूर दूर तक खारिज कर रहे थे कि बीजेपी को एक सीट भी हासिल हो सकती है क्या. वापस उसी बात पर क्या ये सिर्फ मोदी मैजिक है? नहीं ये उस देश का जनादेश है जो राज्यों से ऊपर देश के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है. एक ऐसा जनादेश है जो देश को एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर देखना चाहता है. वो जातियों के नेताओं के साथ भी खड़ा है लेकिन राज्य के मसले पर बिजली पानी के मुद्दे पर उसको राज्य की पार्टियों से आशा और निराशा हो सकती है लेकिन देश के नेतृत्व के लिए उसको ऐसा शख्स चाहिए जो देश के लिए लड़ सकता हो और इस सोच ने एक चेहरे को आकार दिया और वो आकार बन कर ऊभरे चेहरे के तौर पर नरेंद्र मोदी दिखाई दिया.
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इस सब को समझने के लिए सबसे बड़ा उदाहरण है मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़. इन राज्यों के चुनाव कवर करते वक्त मैंने एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों का इंटरव्यू लिया. उस दौरान वहां एक युवा से पूछा कि आप यहां कांग्रेस को वोट कर रहे हो तो आप को लगता है कि इस बार राहुल प्रधानमंत्री बनेंगे. इतना सुनते ही अचानक कांग्रेस का पक्ष ले रहे तमाम लोग जैसे बदल गए हो, कैमरे पर बोलने लगे कि नहीं प्रधानमंत्री तो मोदी ही चाहिए देश के लिए वही ठीक है. ऐसे ही मंदसौर में किसानों के बीच उसी जगह पर जहां गोलियों से किसानों की जान गई थी वहां किसानों ने राज्य से उलट देस के लिए मोदी की तरजीह देने की बात की. मेवाड़ में एक रिहायशी जगह पर दर्जन भर लोगों से बात की तो उनका दिमाग एक दम साफ था कि लोकसभा में वो मोदी को वोट देंगे.
इन सब बातों को उस वक्त नहीं समझ पा रहे थे लेकिन धीरे-धीरे ये बात साफ होती जा रही थी कि लोगों की समझ एक बात की ओर जा रही है कि देश को जो आगे ले जा सके या दुश्मनों का मुंह तोड़ जवाब दे सके और ये दुश्मन उनके नहीं देश के उसको वो चुनना चाहते है. इस बार वो चेहरा मोदी है तो लोग मोदी के साथ है अगर आगे कोई और नेता उनको देश के लिए आगे की ओर कुछ करता हुआ दिखेगा तो लोग उसके साथ चल देने से गुरेज नहीं करेंगे क्योंकि ये एक नया देश है ये एक नया जनादेश है.
और आखिर में महिषासुरमर्दिनी कि पूजा को अपमानित करने का जेएनयू का शगल भी इस बार दूर होता हुआ दिखा. चैनलों पर अंग्रेजी मीडिया के बौंनों का पैदा किया हुआ कन्हैया अपनी ही जमीन पर अपनी जाति के बीच लड़ने पहुंचा और वहां से उसकी औकात को वहीं के लोगों ने नाथ दिया. उसके लिए देश को सराय समझने वालों की पूरी जमात उसके लिए रंगीनियों से लद कर पहुंची थी क्योंकि उन अनपढ़ गांव वालों ने उनको राष्ट्र की परिभाषा पढ़ा दी.
मोहन साहिल की एक प्यारी सी कविता आप पढ़ सकते है.
उनके षड्यंत्रों के बावजूद
नदी अपने उद्गम से निकली
और लहलहाती फसलों को सींचती चली गई
हल और मिट्टी ने छेड़े रखा
देस राग
कवि निरंतर लिखता रहा मीठा गीत
गुलाबी फूलों के सौंदर्य पर
किसान जमकर नाचा
पंछी आकाश में चहका उड़ा
और उड़ता चला गया
सब गर्वित थे अपने देश पर
सिवाय उनके जो
देश प्रेम का ढोंग रचाकर
इन सब की खुशियाँ छीन लेना चाहते थे.
(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NewsState और News Nation उत्तरदायी नहीं है. इस लेख में सभी जानकारी जैसे थी वैसी ही दी गई हैं. इस लेख में दी गई कोई भी जानकारी अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NewsState और News Nation के नहीं हैं तथा NewsState और News Nation उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)
Source : Dhirendra Pundir