Tripura Assembly Election : देश में इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस कड़ी में त्रिपुरा पहला रणक्षेत्र है, जहां सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष अपनी-अपनी ताकत आजमाएंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह त्रिपुरा के अपने दो दिवसीय दौरे की शुरुआत कर रहे हैं. इस दौरे में अमित शाह अपनी पार्टी के कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे और राज्य की 60 विधानसभाओं में रैलियों और रथ यात्राओं की शुरुआत करेंगे. इस दौरान 10 केंद्रीय नेताओं के शामिल होने की योजना है. 200 रथ यात्राओं के सहारे बीजेपी अपनी सफलता को दोहराने की कोशिश में है.
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राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन के करीब आधा दर्जन विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. विपक्षी पार्टियां बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए अपने पारंपरिक मतभेदों को भूलकर एक साथ आने को तैयार दिख रही हैं. त्रिपुरा का ये चुनाव (Tripura Assembly Election) कितना तनावभरा होगा, इसकी पहली बानगी गृहमंत्री अमित शाह के दौरे की खबर से पहले दिन ही अखबारों की सुर्खियों में ही छिपी है. मंगलवार की रात उन्हीं की पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के पुश्तैनी घर पर एक भीड़ ने हमला किया और घर में आगजनी एवं तोड़फोड़ की गई.
मौजूदा राज्यसभा सांसद बिप्लब देब के घर में बुधवार को एक धार्मिक आयोजन होना था. उससे पहले ही भीड़ ने घर पर हमला कर उनके पुजारियों के साथ मारपीट और संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया. भाजपा ने इस हमले का आरोप विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी पर लगाया है. इस हमले के बाद इस बात के संकेत मिलने लगे हैं कि फरवरी-मार्च 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक हिंसा की और घटनाएं सामने आ सकती हैं.
राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार ने 2018 में अप्रत्याशित तौर पर राज्य में जीत हासिल की थी. चलो पलटाई के नारे और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के साथ गठबंधन कर बीजेपी ने त्रिपुरा की राजनीति को एकदम से पलट दिया था. त्रिपुरा में जीत के साथ ही बीजेपी ने असम से आगे बढ़कर नार्थ ईस्ट में एक और महत्वपूर्ण राज्य में जीत हासिल की थी, लेकिन इस जीत में भाजपा के लिए खुशी का एक और कारण मौजूद था कि वो त्रिपुरा में चल रहे पच्चीस सालों के वामपंथियों के एकछत्र राज को हटाने में कामयाब हुई. बंगाल के बाद इसी राज्य में वामपंथियों ने लगातार दो दशक से ज्यादा झंडा गाढ़ रखा था.
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त्रिपुरा में मानिक सरकार को हटाने के बाद बीजेपी ने अपने युवा चेहरे बिप्लब देव को मुख्यमंत्री बनाया. मुख्यमंत्री बनने के बाद बिप्लब देव अपने कार्यों से ज्यादा बयानों को लेकर देशभर के मीडिया में छाए रहें. पार्टी ने जीत तो हासिल कर ली थी, लेकिन राज्य की राजनीति में राजनैतिक हिंसा की परिपाटी पर रोक लगाने में नाकामयाब रही. तीन तरफ से बांग्लादेश से घिरे इस राज्य में बांग्लाभाषी और आदिवासियों के बीच संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है.
वामपंथी शासित राज्यों की तरह इस राज्य में विपक्षियों से निपटने के लिए हिंसा के इस्तेमाल के लगातार आरोप लगते रहे. त्रिपुरा में सत्ता बदलने के बाद हिंसा की घटनाएं सामने आती रहीं. वामपंथियों और कांग्रेस के बीच झूलती त्रिपुरा की राजनीति में बीजेपी की जीत से काफी समीकरण बदल गए. ममता बनर्जी जहां अपनी पार्टी के विस्तार की संभावना देख रही हैं उन राज्यों में त्रिपुरा भी शामिल है. गोवा में ताकत फूंकने के बावजूद कुछ हासिल न करने का दाग पार्टी त्रिपुरा में बदलना चाहती है. पार्टी में कांग्रेस से आई सुष्मिता देव और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने अपनी पूरी ताकत त्रिपुरा में झोंक दी. यहां तक की स्थानीय निकाय के चुनावों में पार्टी ने अपने कद्दावर नेताओं की टीम को त्रिपुरा में उतार दिया.
उधर, बीजेपी ने अपने मुख्यमंत्री को बदल कर हालात को संभालने की कोशिश की है. बीजेपी ने स्थानीय निकाय चुनावों में जीत हासिल की है, लेकिन उसके सहयोगी संगठन को अब बड़ी चुनौती त्रिपुरा के राजपरिवार से सदस्य प्रद्योत माणिक्य देववर्मा की नई पार्टी से मिल रही है. तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (टिपरा मोथा) ने आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ को बनाया है. इसकी धमक राजनीति में अहसास कर भाजपा ने इसकी काट के लिए अपने गठबंधन को वहां तक पहुंचाने की कोशिश की है.
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बीजेपी की वापसी की तैयारी को रोकने के लिए राज्य में कांग्रेस वामपंथी और मोथा पार्टी के साझा सेक्युलर फ्रंट की तैयारी चल रही है. वामपंथी पार्टियां मानिक सरकार की छवि के सहारे वापसी की राह कठिन मानकर एक ऐसे गठबंधन के लिए तैयार दिख रही है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो. कांग्रेस ने बीजेपी में जा चुके कई जमीनी नेताओं को वापस अपनी पार्टी में खींचा है, इनमें सुदीप वर्मन और आदिवासी नेता दीबाचन्द्र हरंगखाल शामिल हैं. दीबाचन्द्र ने हाल ही में बीजेपी से अपना इस्तीफा दिया है. (Tripura Assembly Election)