एक कहावत है कि दोस्त कितना ही अच्छा क्यों ना हो वो खुद से आगे दोस्त को देखना पसंद नहीं करता, अफगानिस्तान के मामले में रूस और चीन के बीच कुछ ऐसा ही हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में ब्रिक्स देशों की बैठक में रूस के राष्ट्रपति ने चीन के साथ कुछ ऐसा ही किया, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने अप्रत्याशित रूप से बैठक के दौरान बिना नाम लिए चीन को कड़ा संदेश दे दिया, व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अफगानिस्तान में बाहरी दखल से चिंतित हूं, उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में जो हुआ वो आपत्तिजनक है, अफगानिस्तान के हालात से पड़ोसी देशों पर असर होगा, दुनिया के सामने सुरक्षा की चुनौतियां होंगी लिहाजा आतंकवाद पर नियंत्रण बेहद जरूरी हैं. राष्ट्रपति पुतिन की ये बातें चीन को चुभी जरूर होंगी क्योंकि चीन और रूस मित्र साझेदार देश हैं, दोनों देशों के बीच दोस्ती के साथ-साथ बड़े स्तर पर व्यापारिक रिश्ते भी हैं। फिलहाल रूस ने अफगानिस्तान को लेकर जो बातें कही हैं उसके कई मायने हैं । पहला ये कि रूस को पता है कि अफगानिस्तान पर चीन गिद्ध की तरह नजर गड़ाए बैठा है, चीन पाकिस्तान की तरह अफगानिस्तान में भी कॉरिडोर बनाकर अफगानिस्तान पर प्रभुत्व जमाना चाहता है, पाकिस्तान पर चीन का जोर चलता है तो अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता का सरपरस्त पाकिस्तान है ऐसे में चीन के लिए अफगानिस्तान तक पहुंचना बहुत आसान है. चीन अफगानिस्तान में निवेश कर एशियाई देशों के व्यापार रूट को हथियाना चाहता है, इसमें उसको पाकिस्तान और तालिबान का साथ आसानी से मिल जाएगा.
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अफगानिस्तान क्यों है महत्वपूर्ण
जिस तालिबान का जन्म रूस की मुहिम के खिलाफ हुआ आज उसी तालिबान की रूस तारीफ करता है और उसे बदला हुआ तालिबान मानता है लेकिन इसके पीछे रूस की रणनीति क्या है, यह जानना भी जरूरी है। जानकार मानते हैं कि रूस अपने एसेट्स को बचाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सवाल है कि वो एसेट्स कौन से हैं । अगर आप वर्ल्ड मैप में अफगानिस्तान पर नजर डालेंगे तो देखेंगे कि अफगानिस्तान का रास्ता मध्य एशियाई देशों में सीधा खुलता है, इसमें तुर्केमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान आते हैं। रूस को ऐसा लगता है कि अफानिस्तान के उत्तरी बॉर्डर पर अगर किसी प्रकार की दिक्कत आएगी तो इसका असर अफगानिस्तान से लगे देशों पर देखने को मिलेगा । दरअसल कजाकिस्तान और किर्गिस्तान के इलाकों में रूस के कई सैन्य बेस हैं। इसी इलाके में भारत का भी विदेश में एक मात्र सैन्य बेस है । इसके साथ ही मध्य एशियाई देशों के मिनरल रिसोर्स पर भी चीन और रूस दोनों की नजरें हैं । यही वजह है कि दोस्त ने दोस्त को बता दिया है कि आगे बढ़ो लेकिन इतना भी नहीं कि हमारे घर में घुस जाओ।
चीन के पास बीआरआई पूरा करने का मौक़ा
अफ़ग़ानिस्तान में चीन, तालिबान सरकार के ज़रिये बीआरआई को पूरा करना चाहता है, चीन का मक़सद सीपीईसी का विस्तार अफ़ग़ानिस्तान तक करना है, सीपीईसी का विस्तार कर चीन साउथ ईस्ट एशिया, सेंट्रल एशिया तक पहुंचना चाहता है, सीपीईसी का विस्तार कर चीन खाड़ी देशों, यूरोप, अफ्रीका तक पहुंचना चाहता है । अमेरिका की वापस ने चीन को बीआरआई प्रोजेक्ट पूरा करने का मौक़ा दे दिया है ।
चीन की नज़र अफ़ग़ानिस्तान की पाताल लोक पर
अफ़ग़ानिस्तान के पास 3 खरब डॉलर की खनिज सम्पदा है, कॉपर, सोना, चांदी, बॉक्साइट, आयरन, तेल, गैस का बड़ा भंडार है, रेयर अर्थ मैटेरियल लीथियम, क्रोमियम, लीड, ज़िंक का भंडार है। सल्फ़र, जिप्सम, मार्बल और बेशक़ीमती पत्थरों के खदान भी अफगानिस्तान में हैं, अगर इन खनिजों को निकला जाए तो अफ़ग़ानिस्तान मालामाल हो जाएगा । चीन की नज़र अफ़ग़ानिस्तान की इन्हीं खनिजों पर है, चीन के लिए इन खनिजों में सबसे ख़ास है रेयर अर्थ मैटेरियल लीथियम ।
लीथियम पर होगा चीन का क़ब्ज़ा
दुनिया में लिथियम का सबसे बड़ा भंडार बोलिविया में है, अमेरिका का अनुमान है की बोलीविया से भी बड़ा भंडार अफ़ग़ानिस्तान के पास है, आने वाले वक़्त में लिथियम दुनिया को बदलने की ताक़त रखता है, दुनिया की क्लीन इनर्जी का सपना लीथियम के बगैर मुमकिन नहीं है। क्लीन एनर्जी प्रोजेक्ट अफगानिस्तान को अमीर बनाने की ताकत रखता है. साल 2040 तक दुनिया में लिथियम की मांग 40 गुना तक बढ़ जाएगी । 2040 तक दुनिया की सड़कों पर चलने वाली आधी कारें लीथियम बैटरी से ही संचालित होंगी । मोबाइल की बैटरी से लेकर इलेक्ट्रिकल व्हीकल में लीथियम का इस्तेमाल होता है। इलेक्ट्रिक कार की कीमत में 40-50 फीसदी हिस्सा इसी लीथियम बैटरी का होगा । चीन अफ़ग़ानिस्तान की खदान से लीथियम निकाल कर सुपर पावर बन जाएगा । अभी 75 फीसदी लिथियम का उत्पादन चीन, कांगो और ऑस्ट्रेलिया में होता है, लिथियम का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल चीन में ही होता है। फिलहाल चीन को अपनी लीथियम ज़रूरत पूरी करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से आयात करना पड़ता है । अफ़ग़ानिस्तान से लीथियम निकाल कर चीन पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन जाएगा.
अफ़ग़ानिस्तान में चीन का निवेश
चीन-अफगानिस्तान की सीमा सिर्फ 76 किलोमीटर लंबी है। चीन अफ़ग़ानिस्तान में 14 अरब डॉलर का निवेश करेगा, दोनों देशों के आर्थिक संबंध अब से पहले भी रहे हैं। 2019 तक अफगानिस्तान में चीन का 400 मिलियन डॉलर से ज़्यादा निवेश था । 2019 तक ही अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका का निवेश सिर्फ 18 मिलियन डॉलर था। दोनों देशों के बीच वखान गलियारा परियोजना 50 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण पहले से ही जारी है, वखान गलियारा परियोजना चीन के बेल्ट-रोड परियोजना का हिस्सा है, इस परियोजना के तहत 350 किलोमीटर लम्बी सड़क बननी है, अभी तक सड़क का 20 फीसदी काम ही हुआ है, लेकिन अब चीन की मदद से इस काम में तेज़ी आएगी । इस परियोजना के पूरा होने के बाद अफगानिस्तान चीन की खनन परियोजनाओं के लिए भी सहूलियत हो जायेगी.
क्या है ब्रिक्स ग्रुप और इसमें कौन-कौन शामिल हैं?
ब्रिक्स पांच देशों ब्राजील, रूस, इंडिया, चाइना, साउथ अफ्रीका का एक ग्रुप है। यह 2011 में बना था। इस ग्रुप को बनाने का मकसद वेस्टर्न कंट्रीज के इकोनॉमिक और पॉलिटिकल दबदबे का मुकाबला करना है। ब्रिक्स ने वॉशिंगटन में मौजूद इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड और वर्ल्ड बैंक के मुकाबले अपना खुद का बैंक बनाया है.
(विद्यानाथ झा एंकर/डेप्युटी एडिटर, न्यूज़ नेशन)
HIGHLIGHTS
- ब्रिक्स सम्मेलन में रूस ने चीन को दिया कड़ा संदेश
- पुतिन ने कहा, अफगानिस्तान में बाहरी दखल से चिंतित
- आतंकवाद मुद्दे पर रूस का साथ आने से चीन को लगा झटका