एक बेहद लोकप्रिय शेर है-दिल के फफोले जल उठे दामन की आग से, इस घर को आग लग गई घर के चिराग से, जो इस वक्त दिल्ली कांग्रेस नेताओं समेत पार्टी हाईकमान पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है. कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections 2020) में अपनी इस दुर्गति का मानो पहले से ही इलहाम हो गया था. दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के सुपुत्र संदीप दीक्षित ने मतगणना की पूर्व संध्या पर ही भविष्यवाणी कर दी थी कि कांग्रेस का बुरा प्रदर्शन रहेगा. इसे मैं सितंबर से ही जानता हूं. उन्होंने इसके लिए दिल्ली कांग्रेस और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के दो-तीन लोगों को सीधे तौर पर जिम्मेदार भी ठहराया. कुछ कांग्रेसी नेता तो अपनी शर्मनाक शिकस्त के बजाय भारतीय जनता पार्टी की हार से कहीं ज्यादा खुश दिखे.
कांग्रेस के उठने की संभावना नगण्य
इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस ने नारा दिया था-'फिर से कांग्रेस वाली दिल्ली लाएंगे.' लेकिन एक भी पोस्टर में शीला दीक्षित की फोटो नजर नहीं आईं. यहां तक कि उनके तीन कार्यकालों के बड़े और महत्वपूर्ण कामों की भी चर्चा कांग्रेस के पोस्टरों में नहीं दिखी. शीला दीक्षित के दौर की कांग्रेस का इस चुनाव में सिर्फ सूपड़ा ही साफ नहीं हुआ, बल्कि कांग्रेस का वोट शेयर भी घट कर पांच फीसदी से कम पर आ गया. यहां से कांग्रेस का ग्राफ ऊपर उठने की संभावना भी लगभग नगण्य हो गई है. इतिहास गवाह है कि जब-जब और जिस-जिस राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर 20 फीसदी से कम हुआ है, वह उस राज्य में डूब ही गई है. ऐसे राज्यों में बीजेपी या कोई तीसरी पार्टी ही लाभ में रही है. आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पूर्वोत्तर समेत अब दिल्ली इसका सबसे ताजा उदाहरण बना है.
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बीजेपी की हार से खुश कांग्रेस
भले ही कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला इस शर्मनाक हार पर कह रहे हों कि दिल्ली में हार एक नया सबक है. साथ ही इस हार से कांग्रेस निराशा के सागर में गोते लगाने के बजाय कहीं अधिक मजबूत बन कर उठेगी. जमीनी धरातल पर ऐसा कतई नहीं लग रहा है. कांग्रेस के लिए दिल्ली में मिली शर्मनाक हार 'मोदी मैजिक' के कम होते असर पर तंज कसने का एक अवसर भर लग रहा है. इस कड़ी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी का दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों में हार के बाद की प्रतिक्रिया ही बताती है. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की जीत विकास की जीत है. यह बेहद अजीब बात है कि कांग्रेस अब इस मौके पर खुद को विकास को समर्पित बता रही है.
बिहार-बंगाल और कड़ी चुनौती
कह सकते हैं कि कांग्रेस एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस तरह की बयानबाजी कर रही है. बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं तो पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे. इन दिनों ही राज्यों में कांग्रेस अपना वजूद लगभग खो चुकी है. बिहार में वह राष्ट्रीय जनता दल के साथ है. हालांकि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रदर्शन के साथ इतना तय हो गया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस को बहुत ज्यादा सीटें मिलने वाली नहीं हैं. कथित महागठबंधन कतई नहीं चाहेगा कि बीजेपी विरोधी वोट बंटे. यही बात पश्चिम बंगाल पर भी लागू होती है. बंगाल में वाम मोर्चा खत्म हो चुका है, तो ममता बनर्जी बीजेपी से मुकाबले में व्यस्त हैं. वह कांग्रेस को वहां भी भाव देने के मूड में नहीं हैं. यहां यह दावा अभी से किया जा सकता है कि बिहार और बंगाल के चुनाव भी कांटे के होने जा रहे हैं.
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भितरघात और गांधी परिवार पर निर्भरता
कांग्रेस हाल-फिलहाल अपनी जड़ों से कट हो चुकी है. उस पर देर से उठाए जाने वाले कदमों या निर्णयों ने कांग्रेस के लिए करेला वह भी नीम चढ़ा वाली स्थिति ला दी है. नेतृत्व का संकट और गांधी परिवार पर कहीं ज्यादा निर्भरता ही कांग्रेस की इस गति के लिए जिम्मेदार है. अगर ऐसा नहीं होता तो दिल्ली कांग्रेस कम से कम शीला दीक्षित के कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों को मुजाहिरा प्रस्तुत करती. रही सही कसर भितरघात ने पूरी कर दी. कांग्रेस ऐसा लगता है कि हर हार के साथ आत्ममंथन की प्रक्रिया से दूर होती जा रही है. इसके बजाय वह बीजेपी की हार से कहीं ज्यादा आत्ममुग्ध होती जा रही है. दिल्ली की ही बात करें तो कांग्रेस कहीं भी और कभी भी चुनाव लड़ती नहीं दिखी. जनवरी में तो यह आलम था कि दिल्ली कांग्रेस के कई दिग्गजों ने चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया.
सामने से हमला करना सीखे कांग्रेस
अगर कांग्रेस आलाकमान राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब महाराष्ट्र में अपनी जीत से आल्हादित है, तो उसे भूलना नहीं चाहिए कि बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा अभी भी भोथरा नहीं हुआ है. इसके जवाब में एआईसीसी की बैठक में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि कांग्रेस एक विचार और विचारधारा है, जो कभी नहीं मरेगा. इस बयान के आलोक में आज की कांग्रेस प्रतिक्रिया संकट की ओर इशारा करती है. आज कांग्रेस दिल्ली में आप की जीत को बीजेपी की हार से जोड़कर खुश हो रही हो. वह भूल रही है कि राजनीति में विपक्ष पर हमला आमने-सामने होता है ना कि किसी दूसरे के कंधे का इस्तेमाल किया जाए. अगर कांग्रेस यह बात अभी भी नहीं समझी तो उसके लिए आने वाला समय भी दिल्ली सरीखा ही होगा.
HIGHLIGHTS
- जिस-जिस राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर 20 फीसदी से कम हुआ है, वह उस राज्य में डूब ही गई है.
- आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पूर्वोत्तर समेत अब दिल्ली इसका सबसे ताजा उदाहरण बना है.
- राजनीति में विपक्ष पर हमला आमने-सामने होता है ना कि किसी दूसरे के कंधे का इस्तेमाल किया जाए.