2020 में हुए हिंदू-विरोधी दिल्ली दंगों को गुजरे चार वर्ष हो गए हैं लेकिन इस पूर्व नियोजित दंगे में जान गंवा चुके दिलबर और अंकित जैसे नौजवानों और आम लोगों के दिलों में इस दंगे के जख्म आज भी हरे हैं. इन दंगों के दौरान और इसके बाद मजहब विशेष और कथित लिबरल लोगों द्वारा यह नेरेटिव गढ़ने की कोशिश की गई कि इन दंगों के लिए दरअसल हिंदू या फिर हिंदू समुदाय से जुड़े कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे नेता जिम्मेदार थे. अब प्रश्न यह है कि इन दंगों की सच्चाई क्या है?
बता दें कि मोदी सरकार ने 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किया. यह अधिनियम इसलिए लाया गया ताकि भारत के पड़ोस में मजहब विशेष को प्रमुखता देने वाले तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अपने धर्म के कारण प्रताड़ित होने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई धर्म से संबंधित अल्पसंख्यक लोगों को भारत की नागरिकता देने में प्राथमिकता दी जाए. इस अधिनियम के बाद देश में मुसलमानों और कथित लिबरल लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. आखिर इन लोगों को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता है कि गैर-मुसलमानों को मुस्लिम देशों की मजहबी कट्टरता से बचने की कोई राह मिले. ऐसे में सीएए के विरुद्ध कई जगह विरोध-प्रदर्शन किए गए और दिल्ली इन विरोध-प्रदर्शनों के केंद्र में था.
सबसे पहले शाहीन बाग में कथित विरोध के नाम पर सड़क रोकी गई और महीनों तक आम लोगों को उनके रास्ते से गुजरने के अधिकार से वंचित रखा गया. फिर फरवरी में जाफराबाद में भी इसे दोहराने की कोशिश की गई. जाफराबाद में जब सड़कें बंद करने की कोशिश की गई और मेट्रो आने-जाने का रास्ता भी रोका गया तब हिंदू समुदाय से जुड़े नेता कपिल मिश्रा ने इसका विरोध किया. कपिल मिश्रा के सड़कें बंद करने के विरोध और आम लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश को इस तरह गढ़ा गया कि ऐसा करके उन्होंने मजहब विशेष को हिंसा पर उतरने के लिए मजबूर किया. अनुराग ठाकुर के कई दिनों पहले दिए गए “देश के गद्दारों” वाले बयान को भी दंगों का कारण बताया गया.
अब चार साल बीतने पर पुलिस जांच और न्यायालयों में दंगों से जुड़े मामलों पर फैसले आने के बाद धीरे-धीरे इस प्रपंच की कलई खुलने लगी है. मजहब विशेष के लोग किस तरह हमलावर थे, इसके फोटो अखबारों-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. शाहरुख पठान नाम का शख्स हेड कांस्टेबल दीपक दहिया पर रिवॉल्वर तानकर खड़ा था. पुलिस चार्जशीट में यह बात सामने आई है कि इस हमले में शाहरुख अकेला नहीं था, दो अन्य आरोपी कलीम अहमद और इश्तियाक मलिक भी उसके साथ थे. इतना ही नहीं शाहरुख ने जिस रिवाल्वर को पुलिस कर्मी पर ताना था, वह रिवाल्वर बिहार में बना था और उसने दो साल पहले लिया था. ऐसी भी खबरें है कि शाहरुख इस घटना के बाद किसी कथित ड्रग सप्लायर के पास छिपा था. साफ है कि 2020 के दंगों का कारण कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के कथित भड़काऊ बयान नहीं है बल्कि शाहरुख जैसे लोगों की सालों की तैयारी इसका कारण है.
इसी तरह दिल्ली पुलिस की एक अन्य चार्जशीट से यह पता चला है कि कुछ इलाकों में हिंसा से पहले तीन किलोमीटर के दायरे में सुनियोजित ढंग से सीसीटीवी कैमरे तोड़े गए या उन्हें ढक दिया गया. पुलिस के अनुसार चांदबाग और जाफराबाद जैसे इलाकों में सीसीटीवी कैमरों को नकारा करने के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई. सीधी सी बात है कि कुछ लोगों द्वारा पहले पूरी तैयारी की गई और फिर हिंसा को अंजाम दिया गया. इस मामले में एक अन्य चार्जशीट से यह बात सामने आई है कि सीएए के खिलाफ माहौल बनाने की रणनीति दिसंबर से ही शुरू हो गई थी.
इस प्रकरण में दिल्ली में हिंसा की पहली घटना 13 दिसंबर को हुई. इस हिंसा में 20 पुलिसकर्मी घायल हुए. इसके बाद हर्ष मेंदर जैसे लोगों के ऐसे कई बयान कैमरों में कैद हैं जिनमें मुसलमानों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया जा रहा है. दिल्ली दंगों में मुस्लिमों को पीड़ित और हिंदुओं को हमलावर बताने की कई कोशिशें की गई हैं लेकिन सच दरअसल आईने की तरह साफ है. मजहब विशेष और कथित लिबरल लोगों द्वारा इन दंगों की साजिश रची गई, पहले से तैयारी की गई लेकिन उन्हें हिंदू समाज से आत्मरक्षा में प्रतिकार की उम्मीद नहीं थी. हिंदू समाज के प्रतिकार को ही हमला बताया जा रहा है.
प्रेरणा कुमारी
स्तंभकार और लेखक
Source : News Nation Bureau